स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के 75 वर्ष पर संगोष्ठी आयोजित

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  • इंद्रप्रस्थ भारती: अजादी के अमृत महोत्सव विशेषांक पर आधारित
    नई दिल्ली।
    हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के 75 वर्ष विषय पर संगोष्ठी का आयोजन स्वानंद किरकिरे (उपाध्यक्ष, हिंदी अकादमी) के सान्निध्य में किया गया। संगोष्ठी में डा. कुमुद शर्मा, मनोज बिसारिया, डा. राजपाल शर्मा ‘राज’ तथा संजय गर्ग ने वक्ता के रूप में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की प्रस्तावना में अकादमी सचिव डा. जीतराम भट्ट ने कहा कि हिंदी अकादमी नाट्य कर्मियों के लिए रंगमंच, जिज्ञासुओं के लिए कार्यशाला, साहित्यकारों के लिए साहित्य उत्सव, शिक्षकों व छात्रों के लिए हिंदी रचना प्रतियोगिता , कवियों के लिए कवि-सम्मेलन तथा विचारकों के लिए परिचर्चा, संगोष्ठी का आयोजन करती है। हिंदी अकादमी की मासिक पत्रिका इंद्रप्रस्थ भारती में आजादी का अमृत महोत्सव विशेषांक निकाला जाएगा जिसमें महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बातचीत के लिए संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि, हिंदी अकादमी मुख्यमंत्री व भाषा, कला एवं संस्कृति मंत्री तथा अकादमी के अध्यक्ष मनीष सिसोदिया के संरक्षण और मार्गदर्शन में काम कर रही है और गतिशील है। हम अपनी गतिशीलता बराबर दर्ज करते रहते हैं। वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय व पुष्प गुच्छ के साथ हार्दिक स्वागत कर कार्यक्रम का आरम्भ किया गया।
    संजय गर्ग ने अपने वक्तव्य में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में दिल्ली की भूमिका का जीवंत परिचय दिया। स्वतंत्रता संग्राम में दिल्ली की सड़कों पर चरखा व तकली के साथ प्रदर्शन हुआ। खादी का प्रचार हुआ। विदेशी सामान बेचने वालों का बहिष्कार हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में दिल्ली की जनता जिनमें लगभग सभी गांवों व शहरों में रहने वाले सभी वर्ग के व्यक्तियों- महिलाओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों ने भाग लिया।
    मनोज बिसारिया ने अपने मीडियाकर्मी दृष्टिकोण से विचार रखते हुए कहा कि आजादी तो हमें मिली पर बहुत से व्यक्ति अभी भी ऐसे हैं जो देश को कोसते हैं वही भ्रष्टाचार भी करते हैं। राजनीति की बात करते हुए कहा, कुछ लोगों को बिना वजह महिमा मंडित कर दिया गया। कुछ क्रांतिकारियों को भुला दिया गया। आजादी के अमृत महोत्सव में कम से कम इतिहास का पुनर्लेखन तो हो रहा है। भूले-बिसरे शहीद तो सामने आ रहे हैं। देश की जनता को अगर कोई आह्वान करे तो तभी आप जागृत होंगे। देश की जनता को स्वयं अपना आह्वान करना होगा। देश को जाति, धर्म, संप्रदाय इन सबसे उपर उठना होगा। आजादी के 75 वर्षों में हमने एक विकास यात्रा तय की है और आगे भी करते रहेंगे। राजपाल शर्मा ‘राज’ ने अपने वक्तव्य में स्वतंत्रता संग्राम में नरम दल और गरम दल के नेताओं की भूमिका को उजागर किया। भगत सिंह, अशाफाकउल्ला खां, दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद के कार्यों को याद करते हुए कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने जनमानस में एक अपार शक्ति को संचारित किया। 75 वर्षों में भारत को सशक्त गणराज्य मिला, विश्व में शक्तिशाली और लोकतांत्रिक देश मिला। भारत के नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति सचेत हैं। अंत में उन्होंने कहा – जवान ज्योति बन गई जवानी सुभाष की/पहेली अमर हो गई कहानी सुभाष की/हजारों हुए शहीद मगर सच है यही/ये आजाद हिंद फौज है निशानी सुभाष की।
    डा. कुमुद शर्मा ने कहा कि उस समय स्वतंत्रता के लिए अखबारों की भूमिका भी विशेष रही। पयामे आजादी नाम के अखबार के संपादक और उसके पढ़ने वालों पर भी राजद्रोह चलाया जाता था पर पत्रकारिता की ताकत बहुत बड़ी थी। अखबारों के संपादक देश को समर्पित थे। जनता के बीच में उस समय प्रकाशित किए जाने वाले इन अखबारों के माध्यम से स्वतंत्रता की अलख जगाई जाती थी। मैथिलीशरण गुप्त की भारत भारती ने करोड़ों लोगों में राष्ट्रीय चेतना को जगाया। डा. एस.एस. अवस्थी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भाषा और संस्कृति का गहरा संबंध है। जहां अपनी भाषा होगी वहां अपनी संस्कृति भी होगी। मैकाले ने भारत में अंग्रेजी संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जिससे कि यहां कि भाषा को विलुप्त किया जाए। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस बात को पहचाना और देश में हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार किया। और इसी लोकप्रिय भाषा हिंदी ने देश के सभी भागों में जन-जन में राष्ट्र चेतना को जगाया।
    अकादमी के उप सचिव ऋषि कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा, देश के समग्र प्रयासों के कारण भारत को आजादी मिली जिसे अक्षुण्ण रखना आज हम सभी का कर्तव्य है। हिंदी अकादमी के अध्यक्ष मनीष सिसोदिया का धन्यवाद करते हुए कहा कि आपकी प्रेरणा से ही यह कार्यक्रम हो पाते हैं। सारगर्भित वक्तव्य के लिए सभी वक्ताओं का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम का समापन किया गया।

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