यूपी में निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, तीन माह टल गए चुनाव

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नई दिल्ली। यूपी में निकाय चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची उत्तर प्रदेश सरकार को तीन माह तक के लिए निकाय चुनाव टालने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हाईकोर्ट के आदेश को रोक दिया गया, हाईकोर्ट ने शीघ्र चुनाव कराने के आदेश दिए थे।
ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव कराने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को निकाय चुनाव तीन महीने के लिए टालने की इजाजत दी है। इस तीन महीने के समय में पिछड़ा वर्ग के लिए बनाया गया आयोग अपनी रिपोर्ट फाइल करेगा। इस दौरान कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं लिया जा सकेगा। यूपी में निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना ही कराने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। बुधवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में (पॉइंट-सी) के बारे में निर्देशित किया है, इस पर रोक लगाई जाती है। इस पर कोर्ट ने संबंधित पक्षों से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।

यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आरक्षण बिना चुनाव कराने के आदेश पर रोक की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। सरकार की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता केस लड़ रहे हैं। 2 जनवरी को हुई सुनवाई में मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार का पक्ष रखा था। उन्होंने कहा कि सरकार ने ओबीसी आयोग का गठन कर दिया है। स्थानीय निकाय चुनाव आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही कराया जाना चाहिए।
यूपी नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 26 दिसंबर को बड़ा फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया था। ऐसे में ओबीसी के लिए आरक्षित सीट अब जनरल मानी जाएगी। वहीं, कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया सामने आई थी। उन्होंने मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि पहले ओबीसी आरक्षण देंगे, फिर चुनाव कराएंगे।
बता दें कि रायबरेली के सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय की जनहित याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि यूपी सरकार सर्वे या आयोग की रिपोर्ट के बगैर ही नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण दे रही है। इसके बाद यूपी सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए।


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