प्रकृति के संकेतों की अनदेखी मानव जाति को पड़ सकती है भारी: सीमा त्यागी

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  • भूकंपों के माध्य्म से धरती मां दे रही है संभलने की चेतावनी
    गाजियाबाद। जब धरती पर मानव जाति का आगमन हुआ तब मानव की जरूरतों को देखते हुये प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे लेकिन जैसे जैसे धरती पर जनसंख्या बढ़ी तो अत्यधिक मात्रा में भोजन और रहने के लिए रहने के लिए प्राकृतिक संशाधनों की जरूरत पड़ने लगी और यहीं से पर्यावरण का दोहन शुरू हो गया जिसका एक सबसे बड़ा कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या है। निरन्तर प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से वैश्विक पर्यावरण की परिस्थियां तेजी से बदल रही है जैसे भूमंडलीय तापमान का तेजी से बढ़ना, पर्यावरण में तेजी से बढ़ता प्रदूषण,ओजोन परत का तेजी से क्षींण होना मानव जाति अपनी असीमित जरूरतों की पूर्ति के लिये प्रकृति का दोहन करके पूरे तंत्र को असंतुलित कर रही है। जंगलों, वनों की कटाई, पहाड़ों के चट्टानों को डायनामाइट लगाकर उड़ाना अब आम बात हो गई है क्योंकि विकास के नाम पर अब यह इंसानों को आम जरूरत हो गई है। प्रकृति के लगातार दोहन ने मनुष्य और प्रकृति, वायुमंडल के बीच एक असंतुलन पैदा कर दिया है। दिन प्रतिदिन गाड़ियों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषण ने हवा को प्रदूषित कर दिया है तो वहीं उस जल को भी इंसान ने नहीं बख्शा जिसकी वजह से धरती पर जीवन संचालित हो रहा है। देश में अनेकों जगह जल का स्तर तेजी से घट रहा है जो आने वाले समय में एक बड़े खतरे का संकेत है। विकास की इस अंधी दौड़ में इंसान हर उस चीज का दोहन कर रहा है जो उसकी प्रगति की राह में रोड़ा बन रही है। हम सभी अच्छी तरह से जानते हंै कि वन प्राकृतिक संसाधन हैं, लेकिन मनुष्य खेती करने के लिये और घर बनाने के लिये एवं अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वनों को लगातार काटता जा रहा है। जिस हिसाब से वृक्ष तेजी से काटे जा रहे हैं, वह वृक्षों को उगाने की दर से काफी अधिक है जो शीघ्र ही वन वृक्ष रहित हो जाने का एक बड़ा कारण होगा। पेड़ों के वाष्पोत्सर्जन द्वारा पानी भी पर्यावरण में पहुंचता रहता है, जिससे वर्षा वाले बादल बनते हैं। पेड़ों की कटाई और वनों के काटे जाने के कारण उन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है। वनों के कटान और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से देश में बाढ़ की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी के साथ-साथ भूमंडलीय तापमान में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। इतना ही नहीं भूकंपों का बार-बार आना एक बड़े खतरे की चेतावनी दे रहा है। धरती मां बार-बार विश्व की सम्पूर्ण मानव जाति को संभलने के संदेश के रूप में चेतावनी दे रही है अगर समय रहते हम नहीं संभले तो वो दिन दूर नहीं जब मानवजाति एक बड़े संकट का सामना करेगी।

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