- अगर नई पीढ़ी ने सवाल नहीं किया तो आचार्य कृपलानी का संघर्ष अधूरा रह जाएगा
- आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान का आयोजन
- जनता नहीं उठाया सवाल तो बढ़ती जाएगी तानाशाही
नई दिल्ली। देश की शासन व्यवस्था में जिस तरह ‘तंत्र’ यानी सिस्टम ‘लोक’ यानी जनता पर हावी हो रहा है, वह आज के समाज के लिए एक गंभीर चिंता है। इसको दुरुस्त करने के लिए नई पीढ़ी को सवाल करने होंगे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो वह संघर्ष अधूरा रह जाएगा जिसे आचार्य कृपलानी ने पंडित नेहरू के शासन काल मेँ शुरू किया था।
ये बातें भोपाल स्थित देश में पत्रकारिता के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित संग्रहालय माधव राव सप्रे संग्रहालय के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने कही। वह प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी एवं महात्मा गांधी के अनन्य सहयोगी आचार्य जेबी कृपलानी की स्मृति में दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान-2022 में बोल रहे थे। व्याख्यान का विषय तंत्र बने सेवक, जनता हो स्वामी था। व्याख्यान का आयोजन आचार्य आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट ने किया था।
विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया मानते थे कि जनता की बगावत ही संसद को अनुशासन में रख सकती है। डॉ. लोहिया के हवाले से उन्होंने कहा कि अगर जनता ने सवाल नहीं उठाया तो तानाशाही बढ़ती जाएगी। डॉ. लोहिया कहते थे कि ‘अगर सड़कें खामोश हो जाएंगी तो संसद आवारा हो जाएगी।’
विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि हमारे यहां संवैधानिक पदों पर बैठे लोग और राजनेता जब रिटायर हो जाते हैं तो उसके बाद भी उनको गाड़ी, मोटर, बंगला आदि सुख-सुविधाएं जनता के पैसे से मिलती रहती हैं, जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति रिटायर होने के बाद आम नागरिक जैसा रहता है। दूसरी तरफ भारत में एक जिंदा व्यक्ति 25 वर्ष से यह साबित करने के लिए संघर्ष कर रहा है कि वह जिंदा है। उसकी धन संपत्ति उसके परिजनों ने भ्रष्ट नौकरशाहों की मिलीभगत से हड़प ली है।
पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने अपने व्याख्यान में कई दृष्टांतों के जरिए रोचक जानकारियां दीं। उनका कहना था कि लोकतंत्र में लोक यानी जनता के हिसाब से तंत्र यानी सिस्टम बनने चाहिए, लेकिन भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों ने तंत्र यानी सिस्टम के जाल में लोक यानी जनता को ऐसा फंसा दिया है कि जिसे राजा होना चाहिए वह प्रजा बन गया है और जिसे प्रजा होना चाहिए वह राजा हो गया है।
अपने व्याख्यान के क्रम में विजय दत्त श्रीधर ने महान साहित्यकार और पत्रकार माखन लाल चतुवेर्दी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, रामधारी सिंह दिनकर जैसे लोगों को याद किया। उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता में मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकार नहीं है तो वह कूड़ा है। उनका कहना था कि पहले जिसे नेता कहते थे उसको बहुत सम्मानित, प्रतिष्ठित और बौद्धिक माना जाता था, अब नेता कहने पर भ्रष्ट और बेइमान जैसी भावनाएं सामने आती हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जनता को पूछना होगा कि जिस देश में 25 सौ साल से, बुद्ध-महावीर से लेकर महात्मा गांधी तक, अहिंसा के सिद्धांत को बढ़ावा दिया गया, वहां इतनी हिंसा क्यों हो रही है। अगर आज सवाल नहीं पूछे गए तो कल तानाशाह राजनेताओं की जमात खड़ी होती रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह बात समझ में नहीं आ रही है कि नागरिक नियम-कानून के लिए हैं या नियम-कानून नागरिक के लिए है। आज के समाज में जनता के पैसे से ही जनता को मुफ्तखोरी की आदत डालकर कामचोर बनाया जा रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 1947 में महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक आजादी तो मिल गई है, लेकिन यह मुकम्मल आजादी नहीं है।
अध्यक्षीय उद्बोधन के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी के सामने अतीत की गलतियां सुधारने की गंभीर चुनौती है। इसका सामना करने के लिए आचार्य जेबी कृपलानी के संघर्षों और उनके कार्यों को पढ़ना और समझना होगा।
इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार संत समीर ने पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर का परिचय दिया और बताया कि कैसे उन्होंने अखबार के संपादन का दायित्व छोड़कर पत्रकारिता संग्रहालय की स्थापना जैसा कठिन कार्य अपने हाथों में लिया।
कार्यक्रम की शुरूआत बापू के प्रिय भजनों से हुई। संचालन वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुवेर्दी ने किया और मुख्य अतिथि तथा कार्यक्रम मेँ शामिल अन्य सभी लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने किया।
इस मौके पर दिल्ली वि. वि. के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर डॉ. रामचंद्र प्रधान, एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जगमोहन सिंह राजपूत, वरिष्ठ पत्रकार जय शंकर गुप्त, डॉ. राकेश पाठक, श्यामलाल यादव, मनोज मिश्र, वरिष्ठ गांधीवादी सतपाल ग्रोवर, मंजुश्री मिश्रा, संदीप जोशी, मुजफ्फरपुर के डॉ. विकास नारायण उपाध्याय व डॉ॰ अरुण कुमार सिंह तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. शिवानी सिंह, डॉ. राजीव रंजन गिरी, डॉ. अरमान अंसारी, डॉ. मनीषचंद्र शुक्ल, डॉ. सुभाष गौतम, अच्युतनंद किशोर नवीन, डॉ. राघवेंद्र शुक्ल जैसे अनेक महत्वपूर्ण लोग मौजूद रहे।