‘पितृ पक्ष भय या शोक नहीं अपितु बड़ों के सेवा सत्कार का विषय है’

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गाजियाबाद। आर्य केन्द्रीय सभा एवं आर्य समाज राजनगर एक्सटेंशन के संयुक्त तत्वावधान में श्राद्ध का वैदिक स्वरुप विषय पर सेन्ट्रल पार्क, राजनगर एक्सटेंशन में यज्ञ एवं प्रवचन का कार्यक्रम संपन्न हुआ। महायज्ञ के ब्रह्मा आचार्य रामेश्वर शास्त्री रहे।
बिजनौर से पधारे सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक पंडित मोहित शास्त्री ने भजनोंपदेश के माध्यम से बहुत ही सुंदर संदेश लोगों को दिया जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो गए।
मेरठ से पधारे आचार्य पुनीत शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध का अर्थ होता है श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्म और तर्पण का अर्थ होता है तृप्ति करना। यह केवल जीवित पितरों के लिए किए जाने का विधान है। मृत्यु पश्चात हमारे द्वारा दिए गए किसी भी पदार्थ को मृतक ग्रहण नहीं कर सकता है। इसलिए श्राद्ध-तर्पण द्वारा हम अपने जीवित पितरों माता-पिता, दादा-दादी, ताऊ ताई, चाचा-चाची, गुरुजन, अतिथियों और धार्मिक व परोपकारी लोगों का यथायोग्य आदर सत्कार करते हैं। इससे कि वे प्रसन्न होकर हमें अच्छे मार्ग पर चलने, धर्म पालन के लिए, शारीरिक आत्मिक व सामाजिक उन्नति के लिए उपदेश देकर प्रेरित करते रहें और हमें बुराइयों से, अज्ञानता से बचाते रहे। उन्होंने यजुर्वेद के द्वितीय अध्याय के 21, 22, 23, 24 वें मंत्रों में पितर कौन होते हैं, उनका कर्तव्य और उनके प्रति हमारा कर्तव्य क्या होता है, इस पर विस्तार से लोगों को समझाया। मुख्य अतिथि माया प्रकाश त्यागी ने पितृपक्ष भय या शोक का विषय नहीं अपितु बड़ों के सेवा सत्कार विषय है। उन्होंने वर्तमान में बुजुर्गों की हो रही उपेक्षा और अवहेलना पर चिंता व्यक्त की ओर आग्रह किया कि बच्चों को संस्कारवान बनाएं बिना परिवार लंबे काल तक समृद्ध और खुशहाल नहीं रह सकता।
आर्य केंद्रीय सभा के प्रधान सत्यवीर चौधरी ने बताया कि पितृपक्ष में जमीन घर आदि ना खरीदने का भय केवल भ्रम है। पितर लोग अपने बच्चों की उन्नति होते देख, उनको जमीन घर आदि की खरीद पर, उनकी आर्थिक और सामाजिक प्रगति को देखकर खुश होते हैं ना की कुपित। अति विशिष्ट अतिथि न्यायाधीश वी.के. जैन ने न्यायालयों में बढ़ते पारिवारिक कलहों के मुकदमों की बढ़ती संख्या पर समाज का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने आह्वान किया कि बच्चों को सोशल मीडिया के जंजाल से बचाकर उनको अपने बड़ों के साथ बैठाना चाहिए और बड़ों को भी सिर्फ धन प्राप्ति की अंधी दौड़ से बचकर कुछ समय दिन प्रतिदिन बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए निकालना चाहिए। सिर्फ सरकार नहीं, संस्कार ही अपराध की गति को कम कर सकते हैं। ए.ओ.ए अध्यक्ष धर्मेंद्र चौधरी ने सभी विद्वानों एवं विभिन्न आर्य समाजों के पदाधिकारियों का सम्मान और धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि ऐसे जागृति के कार्यक्रम समय समय पर होते रहने चाहिए जिससे की समाज किसी भी भय, भ्रांति,भ्रष्टाचार में ना फंस जाए। इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रवीण आर्य, केके यादव, नरेश चन्द्र, त्रिलोक शास्त्री, राम निवास शास्त्री, राकेश चौहान, विजेश कर्णवाल, ध्यान सिंह, कर्मवीर सिंह, उमेश जायसवाल, उमेश त्यागी, जय नारायण त्यागी, एमपी गुप्ता, डा. जीडी अग्रवाल, राजकुमार अरोड़ा, विजय लूथरा, गंगाशरण गुप्ता, केएस डोगरा, हिम्मत सिंह, अविनाश, वेदप्रकाश वर्मा, वीरेन्द्र खारी, सूर्यभान यादव, संदीप महरोत्रा, सुरेन्द्र गुप्ता, जोगेन्द्र सिंह, सुदर्शन कुमारी आदि की गरिमामई उपस्तिथि रही। श्रद्धानंद शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आज समाज में अंधविश्वास, कुरीतियां, पाखंड और पाश्चात्य सभ्यता के कारण आज का युवा अपने माता-पिता की सेवा ना करके उनको वृद्ध आश्रम में भेज रहे हैं जो समाज के लिए बहुत ही हानिकारक है अत: सभी युवाओं को अपने माता-पिता आचार्य की प्रतिदिन सेवा करनी चाहिए। मंच का संचालन आर्य समाज राजनगर एक्सटेंशन के मंत्री गौरव सिंह आर्य ने किया। प्रधान प्रमोद धनकड़ ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। शांतिपाठ एवं ऋषिलंगर के साथ कार्यक्रम समोन्न हुआ


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