सियासी आरियां और आम नागरिकों की गर्दनें

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दोनों पक्ष आए हैं तैयारियों के साथ।
हम गर्दनों के साथ वो आरियों के साथ।।

राष्ट्रीय कवि स्वर्गीय डा. कुंअर बेचैन की ये दो उम्दा पंक्तियां देश के मौजूदा सियासी माहौल पर बड़ी सटीक बैठती दिखाई दे रही हैं। डा.कुंअर बेचैन ने जिन आरियों व गर्दनों का जिक्र किया है अगर हम उन्हें मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़कर देखें तो स्थिति कुछ ऐसे बनकर ही सामने आएगी। गर्दनों के साथ कौन है और आरियां हाथ में लेकर कौन आ रहा है हमें इस बात का मूल्यांकन 2024 के आम चुनाव से पहले करना ही होगा। हालांकि एक पक्ष कह रहा है कि हम गर्दनों के साथ हैं और नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। वहीं दूसरा पक्ष इस आरोप को गलत बता रहा है कि वो आरियों के साथ है और नफरत की दुकान खोले हुए है। अब हम कैसे मानें कि मोहब्बत की दुकान खोलने का जो दम भर रहे हैं क्या वो सही मायनों में मोहब्बत की बात कर रहे हैं या फिर जिन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वो नफरत का बाजार खोले बैठे हैं और अपने बचाव में उन सब आरोपों को झूठा बता रहे हैं जो उन पर लगाए जा रहे हैं। क्योंकि आने वाला 2024 का आम चुनाव किसी भी नजर से जनहित या राष्ट्रहित के मुद्दों से नहीं जुड़ा है और न ही विकास, बेरोजगारी और महंगाई के कोई ठोस आधार जनता के हित में लेकर सामने आ रहा है। आने वाले चुनाव से पहले जो वातावरण देश में बन रहा है वो स्पष्ट संकेत दे रहा है कि इस चुनाव में कोई भी राजनीतिक दल चाहे वो सत्ता से जुड़ा हो या विपक्ष की बात कर रहा हो। ये संकेत जरूर सामने आ रहे हैं कि आने वाला 2024 का चुनाव पूर्व की तरह सामान्य आम चुनावों की तरह तो नहीं होगा। संभावनाएं बन रही हैं या यूं कहें कि बनाई जा रही हैं कि अगला चुनाव पूरी तरह से धार्मिक व जातीय आधार पर ही आधारित होगा। डर इस बात का भी है कि ऐसी संभावनाएं बनाने के प्रयासों में कहीं ऐसा न हो जाए कि देश धार्मिक और जातीय मतभेदों में उलझकर इस हद तक भी पहुंच जाए कि हमें अनिष्ठता का वो नंगा नाच भी देखना पडे जिसमें सड़कों पर खून-खराबे के गदर से देश घायल हो जाए। अब ऐसे में हम क्या मूल्यांकन कर पाएंगे कि सत्ता दल और विपक्षी दल का गठजोड़ अगर चुनावों तक कायम रहता है तो इन दोनों में से कौन नफरत का बाजार खोले बैठा होगा और कौन उस बाजार के सामने मोहब्बत की छोटी सी दुकान लगाकर बैठ जाएगा। अभी तो यही लग रहा है कि दोनों पक्ष आम चुनाव के पहुंचते-पहुंचते मैदान में आरियां लेकर ही उतर आएंगे और इन आरियों के सामने जो गर्दनें भी होंगी वो देश के आम नागरिक की ही होंगी। हमें यही प्रार्थना करनी चाहिए कि दोनों पक्ष चाहे वो सत्ता पक्ष सत्ता में फिर से काबिज रहने के लिए जुटा हो या फिर विपक्षी पक्ष गठबंधन बनाकर सत्ता में आने का अंतिम मौका पाने की कोशिश में लगा हो। देश सुरक्षित रहना चाहिए। ऐसा कोई प्रयास किसी भी पक्ष द्वारा नहीं किया जाना चाहिए जिससे राष्ट्र का अहित हो, आम नागरिक का नुकसान हो और अंतर्राराष्ट्रीय स्तर पर देश के दामन पर कोई दाग लगे।


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