पोषण पाठशाला : विशेषज्ञों ने बताया, कैसे करें बच्चों का पोषण

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  • सही समय पर ऊपरी आहार की शुरूआत रही पोषण पाठशाला की थीम
  • बेहतर स्वास्थ्य और शारीरिक विकास के लिए जरूरी होते हैं 40 पोषक तत्व
    हापुड़।
    बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग की सचिव अनामिका सिंह के निर्देशन में बृहस्पतिवार को लखनऊ में पोषण पाठशाला का आयोजन किया गया। पोषण पाठशाला का लाइव प्रसारण एनआईसी के माध्यम से हापुड़ समेत तमाम जनपदों में किया गया। जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) ज्ञानप्रकाश तिवारी ने बताया कि पोषण पाठशाला का प्रसारण कलेक्ट्रेट स्थित एनआईसी सभागार समेत तमाम आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी देखा गया। इस मौके का लाभ बाल विकास परियोजना अधिकारियों, मुख्य सेविकाओं और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं समेत काफी संख्या में लाभार्थियों ने भी उठाया।
    डीपीओ ज्ञानप्रकाश तिवारी ने बताया कि आॅनलाइन पोषण पाठशाला में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों ने पोषण और खासकर सही समय पर ऊपरी आहार की शुरूआत पर अपनी राय रखने के साथ ही यह भी बताया कि छह माह की आयु पूरी करने पर बच्चों को स्तनपान जारी रखते हुए ऊपरी आहार पर कैसे लाएं। कैसे उनमें ऊपरी आहार के प्रति रुचि पैदा करें। इस कार्यक्रम के पोषण विशेषज्ञों के पैनल में डा. रूपल दलाल, डा. दीपाली फर्गडे और डा. देवजी पाटिल के अलावा बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य शामिल रहीं।
    पाठशाला में सबसे पहले डा. रूपल दलाल ने शारीरिक विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों की जानकारी देते हुए बताया हमारे शरीर को 40 पोषक तत्वों की जरूरत होती है। टाइप-दो में जो पोषक तत्व आते हैं वह शरीर में जमा नहीं होते, इसलिए उन्हें रोज लेना जरूरी है। यदि इन पोषक तत्वों को रोज नहीं लेंगे तो शरीर स्नायु से इनकी पूर्ति करेगा और बच्चा तीव्र कुपोषण का शिकार हो जाएगा। उसकी लंबाई रुक जाएगी। उन्होंने कहा पहले 1000 दिन बच्चे के समुचित विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। गर्भवती यदि रोजाना टाइप-दो पोषक तत्व नहीं लेंगी तो उसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ना स्वभाविक है। प्रोटीन सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, सभी कोशिकाओं के निर्माण में प्रोटीन की जरूरत होती है। यह लोबिया और सोयाबीन में पर्याप्त होता है। सोडियम, पोटेशियम, सल्फर, फास्फोरस, जिंक और क्लोराइड पोषण के जरूरी तत्व हैं। छह माह पूरे करने पर बच्चें को अंडा, दूध दही और पनीर दें। राजमा और छोले जिंक का अच्छा स्रोत हैं, जो प्यूरी बनाकर बच्चे का चम्मच से दिया जा सकता है। बच्चे के लिए खिचड़ी बनाएं तो हल्दी जरूर डालें ताकि उसे प्रचुर आयरन मिल सके।
    डा. दीपाली फर्गडे ने बताया कि छह माह पूरे होते ही बच्चे को स्तनपान के साथ-साथ मसला हुआ भोजन दें। एक चम्मच सुबह और शाम देना शुरू करें और उसे पतले से गाढ़ा करते जाएं। छह माह के बाद बच्चे के लिए केवल स्तनपान पर्याप्त नहीं है। उसे मस्तिष्क के विकास के लिए टाइप-दो पोषक तत्वों की जरूरत होती है। छह माह से पहले ऊपरी आहार इसलिए नहीं देते क्योंकि उसकी आंतें और किडनी इस लायक नहीं होतीं।
    आहार में विविधता बनाए रखें।
    डा. दीपाली ने बताया कि एक तरह का आहार तीन दिन तक लगातार देने से यह पता लगता है कि उस आहार से बच्चे को एलर्जी तो नहीं है। पहले तीन दिन सुबह-शाम एक-एक चम्मच राजमा दें तो चौथे दिन एक चम्मच रागी दे सकते हैं। ऊपरी आहार देते समय स्वच्छता का ध्यान रखना जरूरी है नहीं तो बच्चे को दस्त हो सकते हैं। आठ माह के बच्चे को आधी कटोरी ऊपरी आहार दें, साथ में 30 से 50 एमएल तक उबला हुआ पानी देना शुरू करें। सेरेलैक, पेस्ट्री और बिस्कुट जैसे जंक फूड कतई न दें। एक साल तक ऊपरी आहार में नमक और दो साल तक मीठा बिल्कुल न डालें। शक्कर, शहद गुड़ कुछ भी नहीं।
    कुपोषण का सबसे बड़ा कारण दूध की बोतल : डा. पियाली
    बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य ने बोतल से दूध पिलाने का सख्त विरोध किया। उन्होंने अपनी बात की शुरूआत अपनी ओपीडी के अनुभव से करते हुए बताया कि अधिकतर माताएं इस बात का रोना रोते हुए आती हैं कि बच्चे के लिए उनका दूध पूरा नहीं पड़ता। पूछने पर पता चलता है कि उनमें 90 फीसदी इस चक्कर में पड़कर बोतल से दूध पिलाना शुरू कर चुकी होती हैं। बोतल से दूध पिलाना कुपोषण का सबसे बड़ा कारण है। सबसे पहले यह देखें कि बच्चा छह से आठ बार पेशाब करता है और दूध पीने के बाद दो घंटे सोता है तो उसे पर्याप्त दूध मिल रहा है। यदि ऐसा नहीं होता तो दूध कम है। उस स्थिति में दूध पिलाएं तो पूरी स्वच्छता के साथ कटोरी-चम्मच से। सुपोषित मां का बच्चा कुपोषित नहीं हो सकता। इसलिए मां के खानपान पर ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
    छह माह का बच्चा नौ किलो का होना चाहिए : डा. देवजी
    जन स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ डा. देवजी पाटिल ने बताया कि यदि कोई मां छह माह तक अच्छे से अपने शिशु को स्तनपान कराती है तो छह माह की आयु पर शिशु का वजन नौ किलोग्राम होना चाहिए। यदि वजन इससे कम है तो स्तनपान में कहीं कमी रह गई है। छह माह तक केवल स्तनपान ही कराना है। छह माह की आयु पूरी होने के साथ ही ऊपरी आहार देना शुरू कर दें और इस बात का ध्यान रखें कि जब बच्चा भूखा हो तभी उसे ऊपरी आहार दें।

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