कमल सेखरी
कश्मीर घाटी को लेकर केन्द्र सरकार के रवैये में अचानक आए लचीले व्यवहार को लेकर देशभर में हैरानी जताई जा रही है। देशभर के राजनीतिक गलियारों में बड़ी ही शंका की नजर से अटकलें लगाई जा रही हैं कि अचानक कश्मीर घाटी पर सख्त रवैया अपनाने वाली केन्द्र सरकार को आखिर अचानक हो क्या गया है। घाटी में पुन: लोकतंत्र बहाल करने, धारा 370 को हटाए या रखे जाने को लेकर और विधानसभा चुनाव की संभावनाएं तलाशते हुए वहां अन्य कई विकास की योजनाओं पर विचार करने के लिए कल राजधानी दिल्ली में घाटी के सभी विरोधी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया। तीन घंटे से अधिक चली इस मैराथन बैठक के खत्म होने के बाद विभिन्न विरोधी दलों के जो भी नेता बाहर निकले सभी ने मीडिया से लगभग एक सी बात कही कि वे सभी इस बैठक से काफी संतुष्ट हैं और घाटी में लोकतंत्र की बहाली की संभावनाओं को साकार होते देखने का अनुमान लगा रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ राजनैतिक विशेषज्ञ केन्द्र सरकार के इस प्रयास को अलग नजर से देख रहे हैं। उनके विचार से कि घाटी के सभी विरोधी नेताओं को फिलहाल अभी तो मीठा गपगप सा नजर आ रहा है और वो अपनी जीभ घुमा घुमाकर इस शुरूआती मिठास का मजा ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इन विशेषज्ञों की यह भी धारणा है कि जल्द ही खुश नजर आ रहे घाटी के इन नेताओं की काल्पनिक आशाओं पर पानी फिरने वाला है। जल्द ही वो कड़वा थू-थू करने की स्थिति में आ सकते हैं। इस बैठक के मुख्य उद्देश्य को विशेषज्ञ इस नजर से आंक रहे हैं कि केन्द्र सरकार ने विश्व स्तर पर कश्मीर को लेकर अपनी छवि सुधारने और अपने इस तरह के प्रयासों की एक तस्वीर सामने रखी है। अब अगर विचार किए गए इन बिन्दुओं में से अधिकांश पर कोई सकारात्मक काम नहीं हो पाता तो केन्द्र सरकार तो दो टूक कह देगी कि हमने अपनी तरफ से पूरे प्रयास किए लेकिन घाटी के विरोधी दलों के नेता ही नहीं चाहते कि वहां शांति बहाल हो और लोकतंत्र पुन: स्थापित हो पाए। ऐसे में केन्द्र सरकार अपना दामन साफ कर ले जाएगी और सभी आरोप विपक्षी दलों पर मढ़ दिए जाएंगे। ऐसे में जो विरोधी दल अब मीठा गपगप कर रहे हैं बाद में कड़वा थू-थू करते दिखाई दे सकते हैं।