गाजियाबाद। कविनगर रामलीला में अहिल्या उद्धार के उपरांत दोनों राजकुमार राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वमित्र संग जनक नगरी में राजा जनक के महल में पहुंचते हैं जहां पर लक्ष्मी स्वरुप जानकी का स्वयंवर आयोजित हो रहा था। राजकुमारों की आलौकिक छवि सभी नगरवासियों को बर्बस आकर्षित कर रही थी। सभागार में भगवान शिव का प्राचीन धनुष सुराभ विद्यमान था। सभी राजाओं और राजकुमारी ने धनुष उठाने का भरसक प्रयास किया, यहां तक कि शिव भक्त रावण भी उस धनुष को हिला तक नहीं सका। इस परिस्थिति में राजा जनक निराश हो गए तब ऋषि विश्वमित्र की आज्ञा पाकर श्री राम धनुष की ओर बढ़े और जैसे ही राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई, भगवान शिव का प्राचीन धनुष भंग हो गया। चारों ओर श्री राम के जय उद्घोष होने लगे और राजा जनक सहित समस्त जनक नगरी खुशी एवं उल्लास से झूमने लगी। धनुष भंग की गर्जना से भगवान परशुराम अत्यंत क्रोध के साथ सभागार में प्रवेश करते हैं जहां परशुराम जी और लक्ष्मण में जोरदार संवाद होता है। इस स्थिति को भगवान श्री राम राम बड़ी ही सूझबूझ एवं शांत भाव से संभालते हुए परशुराम को क्रोध को शांत करते हैं। परशुराम जी श्री राम के वास्तवितक श्री विष्णु हरि के दर्शन पाकर तृप्त हो जाते हैं और उन्हें प्रणाम कर सभागार से चले जाते हैं। सीता ने जयमाला पहनाकर श्री राम को अपना वर चुन लिया। चारों ओर सीता राम की जय-जयकार गूंज उठी। यह समाचार दूत के द्वारा अयोध्या नगरी में पहुंचाया जाता है। राजा दशरथ, भरत, शत्रुधन एवं ऋषि वशिष्ठ जनकपुरी आते हैं। स्वागत सत्कार के उपरांत श्री राम के साथ-साथ तीनों राजकुमारों लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुधन का विवाह भी सीता जी के बहनों के साथ निश्चित कर दिया जाता है। चारों भाइयों के विवाह एवं बारात की जोरदार तैयारी शुरू हो जाती है।