गाजियाबाद। देश के कई राज्यों में पशुओं में तेजी से फैल रही लम्पी नामक बीमारी के चलते जिला पशु चिकित्सा अधिकारी ने पशुपालकों को सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने पशु पालकों की सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है। पशु पालक पशुओं में बीमारी से संबंधित कोई भी लक्षण दिखने पर हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर सकते हैं।
बता दें कि डंपी नामक बीमारी के चलते देश में 18 हजार से अधिक पशुओं की मौत हो चुकी है जबकि बड़ी संख्या में पशु बीमार हैं। पूरे देश में दूध की किल्लत का अंदेशा जताया जा रहा है। प्रमुख दूध की कंपनियां भी दूध के दाम बढ़ा चुकी हैं। ऐसे में जिले के अधिकारियों ने भी सतर्कता बरतना शुरू कर दिया है।
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. महेश कुमार ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज बीमारी एक संक्रामक रोग विषाणु जनित बीमारी है। यह बीमारी गोवंशीय एवं महीषवंशीय पशुओं में पाई जाती है। रोग का संचरण/फैलाव/प्रसार पशुओं में मक्खी, चिचड़ी एवं मच्छरों के काटने से होता है।
बीमारी के ये हैं लक्षण तो तुरंत संपर्क करें
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. महेश कुमार ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज बीमारी के मुख्य लक्षणों में पशुओं में हल्का बुखार होना, पूरे शरीर में जगह-जगह नोड्यूल गांठों का उभरा हुआ दिखाई देना। बीमारी से ग्रसित पशुओं की मृत्यु दर अनुमान 1 से 5 प्रतिशत होना। इस संबंध में उन्होंने बीमारी की रोकथाम एवं नियंत्रण के उपाय की जानकारी देते हुए बताया कि बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखना। पशुओं में बीमारी फैलाने वाले घटकों की संख्या को रोकना अर्थात पशुओं को मक्खी, चिचड़ी एवं मच्छरों के काटने से बचाना। पशुशाला की साफ-सफाई दैनिक रूप से करना तथा डिसइन्फैक्शन (जैसे चूना आदि) को स्प्रे करना। संक्रमित स्थान की दिन में कई बार फोरमेलिन, ईथर, क्लोरोफॉर्म, एल्कोहल से सफाई करना। संक्रमित पशुओं को खाने के लिए संतुलित आहार तथा हरा चारा दें। मृत पशुओं के शव को गहरे गड्ढे में दबाना होता है।
पशुओं को संक्रमण से बचाने को खिलाएं ये आहार
जिला मुख्य पशुचिकित्साधिकारी ने बताया कि संक्रमण से बचाव के लिए आवला अश्वगन्धा, गिलोय एवं मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिलाकर सुबह लड्डू बनाकर खिलाये। अथवा तुलसी के पत्ते एक मुट्ठी, दालचीनी 5 ग्राम, सोठ पाउडर 5 ग्राम, काली मिर्च 10 नग को गुड़ में मिलाकर सुबह शाम खिलाएं। संक्रमण रोकने के लिए पशु बाड़े में गोबर के कंडे में गुग्गल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते, लोबान को डालकर सुबह-शाम धुआ करें। पशुओं के स्नान के लिए 25 लीटर पानी को एक मुट्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एंव 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर प्रयोग करें। घोल के स्नान के बाद साढ़े पानी से नहलाये। उन्होंने बताया कि संक्रमण होने के बाद देशी औषधि व्यवस्था- नीम के पत्ते 1 मुट्ठी, तुलसी के पत्ते 1 मुट्ठी, लहसून की कली 10 नग, लौंग 10 नग, काली मिर्च 10 नग, जीरा 15 ग्राम, हल्दी पाउडर 10 ग्राम, पान के पत्ते 5 नग, छोटे प्याज 2 नग पीसकर गुड़ में मिलाकर सुबह शाम 10-14 दिन तक खिलाएं। उन्होंने बताया कि खुले घाव के लिए देशी उपचार- नीम के पत्ते एक मुट्ठी, तुलसी के पत्ते एक मुट्ठी, महंदी के पते एक मुट्ठी, लहसून की कली 10 नग, हल्दी पाउडर 10 ग्राम, नारीयल का तेल 500 मिली को मिलाकर धीरे-धीरे पकाये तथा ठंडा होने के बाद नीम की पत्ती पानी में उबालकर पानी से घाव साफ करने के बाद जख्म पर लगाये। इस संबंध में उन्होंने बताया कि किसी भी पशु में बीमारी होने पर नजदीक के पशु चिकित्सालय पर संपर्क करके उपचार करायें एवं किसी भी दशा में बिना पशु चिकित्सक के परामर्श के कोई उपचार स्वयं न करें।
कोई भी हो दिक्कत तो करें इन नंबरों पर फोन
पशुपालकों की सुविधा के लिए कन्ट्रोल रूम का नम्बर- 0120-2823215, 9810705258 जारी किए गए हैं जिस पर पशुपालक जानकारी उपलब्ध कर सकते हैं।