- मशहूर खलनायक प्राण का आज है जन्मदिन
- एक फिल्म में अमिताभ से भी ज्यादा फीस ली थी प्राण ने
नई दिल्ली। फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाने वाले प्राण आज भले ही हमारे बीच न हों लेकिन उनके द्वारा फिल्मों में निभाए गए किरदार आज भी लोगों के जहन में जिंदा हैं। एक नहीं बल्कि अनगिनत फिल्मों में अपने अभिनय की छाप छोड़ने वाले प्राण द्वारा फिल्माए गाए गाने भी बेहद मशहूर हुए हैं। उनके द्वारा बोले डायलाग भी लोगों की जुबान पर आ जाते हैं। भले ही लोग उनके द्वारा निभाए गए किरदार को लेकर सड़कों पर गालियां देते थे लेकिन कई मर्मनात्मक रोल भी काफी पसंद किए गए। उनके द्वारा बोले गए डायलाग जैसे शेर और बकरी जिस घाट पर एक साथ पानी पीते हों वो घाट न हमने देखा है और न देखना चाहते हैं। पहचाना इस इकन्नी को यह वही इकन्नी है जिसे बरसों पहले उछालकर तुमने मेरा मजाक उड़ाया था, राबर्ट सेठ तुम्हारे ही सोने से तुम्हारे ही आदमयिों को खरीदकर आज मैं तुम्हारी जगह पहुंच गया हूं, और तुम मेरे कदमों में। आवाज तो मैं तेरी एक दिन नीची करूंगा, शेर की तरह गरजने वाला बिल्ली की जबान बोलेगा। राम ने हर युग में जन्म लिया लेकिन लक्षमण कभी पैदा नहीं हुआ। प्राण के करियर की प्रमुख फिल्मों में कश्मीर की कली, खानदान, औरत, बड़ी बहन, जिस देश में गंगा बहती है, हाफ टिकट, उपकार ,पूरब और पश्चिम और डॉन हैं।
फिल्मों में उनके द्वारा निभाए गए रोल के बाद तो एक समय में लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना तक बंद कर दिया था। प्राण ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि फिल्म उपकार से पहले सड़क पर मुझे देखकर लोग कहते थे कि अरे बदमाश, ओ लफंगे, ओ गुंडे कहा करते थे। मुझ पर फब्तियां कसते। उन दिनों जब मैं परदे पर आता था तो बच्चे अपनी मां की गोद में दुबक जाया करते थे और मां की साड़ी में मुंह छुपा लेते। 12 फरवरी 1920 को एक सरकारी ठेकेदार लाला केवल कृष्ण सिंकद के घर पैदा हुए प्राण 12 जुलाई 2013 को हिंदी सिनेमा को 400 से भी ज्यादा फिल्मों का तोहफा देकर इस दुनिया से चले गए। बंटवारे से पहले उन्होंने अपना करियर बतौर फोटोग्राफर शुरू किया था और फिर इत्तेफाकन उनकी मुलाकात एक फिल्म निर्माता से हुई। प्राण ने अपने पिता को यह नहीं बताया था कि वह शूटिंग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर था कि उनके पिता को यह पसंद नहीं आएगा। जब अखबार में उनका पहला इंटरव्यू छपा था तो उन्होंने अखबार ही छुपा लिया, लेकिन फिर भी उनके पिता को इस सबकी जानकारी मिल गई। प्राण के इस करियर के बारे में जानकर उनके पिता को भी अच्छा लगा था जैसा कि प्राण ने कभी नहीं सोचा था। दिलचस्प है फिल्म में ब्रेक मिलने की कहानी
प्राण 12 साल की उम्र से ही सिगरेट पीने लगे थे। इसी कारण शहर की कई पान की दुकान वालों से उनकी पहचान-सी हो गई थी। एक दिन जब वे सिगरेट पीने पान की दुकान पर गए तो वहां उन्हें पटकथा लेखक वली मोहम्मद मिले। वली मोहम्मद ने उनको देखा, तो ध्यान से घूरने लगे। वली मोहम्मद ने वहीं एक छोटे से कागज पर अपना पता लिखकर प्राण को दिया और मिलने को कहा। मगर प्राण साहब ने वली मोहम्मद और उस कागज के टुकड़े को जरा भी तवज्जो नहीं दी। कुछ दिनों के बाद जब वली मोहम्मद प्राण से टकराए तो उन्होंने प्राण को फिर याद दिलाया। आखिर प्राण साहब ने चिड़चिड़ाकर उनसे पूछ ही लिया कि वे क्यों उनसे मिलना चाहते हैं। जवाब में वली मोहम्मद ने फिल्म वाली बात बतलाई। दिलचस्प बात यह है, तब भी प्राण ने उनकी बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, मगर मिलने को तैयार हो गए। आखिरकार, जब मुलाकात हुई तो वली मोहम्मद ने प्राण को राजी कर लिया। इस तरह प्राण पंजाबी में बनी अपने करियर की पहली फिल्म यमला जट में आए। इसी कारण प्राण साहब वली मोहम्मद वली को अपना गुरु मानते रहे। प्राण की जिंदादिली और संजीदा मिजाज को उनके चाहने वाले लोग बेहद पसंद करते थे। प्राण की पढ़ाई-लिखाई कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर जैसे शहरों में हुई। उनके पिता सड़कें और पुल बनाया करते थे। कहा जाता है कि देहरादून शहर का कालसी ब्रिज लाला केवल कृष्ण सिकंद ने ही बनवाया था। साल 1945 में प्राण की शादी शुक्ला अहलूवालिया से हुई, जिनसे उन्हें दो बेटे अरविंद और सुनील व एक बेटी पिंकी हुई।
बंटवारे के बाद प्राण को अपना फिल्मी करियर मुंबई आकर दोबारा से शुरू करना पड़ा। मुंबई में प्राण को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनकी मुलाकात इसी दौरान लेखक सआदत हसन मंटो से हुई, जिन्होंने उन्हें देव आंनद अभिनीत फिल्म जिद्दी में रोल दिलवाने में बड़ी भूमिका निभाई। यह साल 1948 की बात है। इसके बाद प्राण ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
यमला जट के बाद उन्होंने शौकत हुसैन निर्देशित फिल्म खानदान साइन की। इस फिल्म में वे मशहूर गायिका नूरजहां के हीरो बनकर आए। यह फिल्म सुपरहिट हुई, मगर प्राण नायक के रोल में काम करते हुए बड़ा संकोच करते थे। वे कहते थे कि पेड़ों के पीछे चक्कर लगाना अपने को जमता नहीं था। नूरजहां को वे तब से जानते थे जब वे दस साल की थीं। बाद में प्राण साहब की उनसे अच्छी दोस्ती हो गई। इस समय तक प्राण काफी लोकप्रिय कलाकार हो गए। लोग उनके अंदाज की नकल भी करने लगे थे। नाच-गाने में असहजता महसूस करने वाले प्राण ने जंजीर में इसी के चलते पहले काम करने से मना कर दिया था। दरअसल, इस फिल्म का एक गीत ‘यारी है ईमान मेरा…’ गीत उन्हीं पर फिल्माया जाना था। बाद में प्राण किसी तरह इस शर्त पर राजी हुए कि गाना पसंद न आने पर वह इसे हटवा देंगे।
जिद्दी फिल्म के लिए उनको पांच सौ रुपए फीस मिली। बाद में अपराधी के लिए उन्होंने हीरो से सौ रुपए ज्यादा फीस ली। इन फिल्मों के बाद प्राण के करियर का सिलसिला ऐसा चला कि फिर रुकने का नाम ही न था। एक दौर ऐसा भी था जब पर्दे पर दर्शक केवल और केवल प्राण को देखने के लिए आते थे। 60 और 70 के दशक की हिट फिल्मों में प्राण न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था। अपने करियर के चरम पर प्राण तब के हीरो अमिताभ और शत्रुघ्न सिन्हा से भी ज्यादा पैसे लेते थे। प्रकाश मेहता की जंजीर भी मनोज कुमार की फिल्म ‘उपकार’ की तरह प्राण के करियर की एक यादगार फिल्म है।