चर्चा-ए-आम

लोकतंत्र में ये बेहूदा सियासी हंगामा क्यों?

कमल सेखरी
मानसून सत्र के तीसरे सप्ताह की शुरूआत भी जनतंत्र के मंदिर लोकसभा में फिर से एक बड़े हंगामे के साथ आरंभ हुई। बिना किसी ठोस कार्यवाही के ही लोकसभा की अब तक की कार्रवाई खत्म हो गई। कोरोनाकाल के दौरान बामुश्किल लोकसभा आरंभ हो पाई लेकिन आरंभ होते ही इतना जोरशराबा हुआ कि पहले ही दिन कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। तब से आज तक लोकसभा नियमित रूप से चल ही नहीं पा रही है। इस सत्र की अब तक हुई निष्फल कार्यवाही पर भी जनता का डेढ़ सौ करोड़ से अधिक का धन खर्च हो गया। कुल मिलाकर अब तक रखे गए प्रस्तावों में से केवल 12 प्रतिशत प्रस्ताव ही पारित हो पाए शेष 88 प्रतिशत प्रस्ताव हंगामे की बलि चढ़ गए। अब इन सांसदों से कोई पूछे कि ये लोकसभा में करने क्या जाते हैं। सत्ता के विपक्षी दल जासूसी कांड, बढ़ती महंगाई, किसान आंदोलन और सरकार द्वारा फर्जी तौर पर सियासी मुकदमों को दर्ज करने के खिलाफ आवाज उठाते रहे और सत्ता पक्ष बिना कोई जवाब दिए केवल इतना कहता रहा कि आप खामोश होंगे तभी हम कोई जवाब दे पाएंगे। लोकतंत्र के साथ ऐसा घिनौना मजाक हमारे देश के अलावा अन्य किसी लोकतांत्रिक देश में इस तरह से तो देखने को नहीं मिलता। आज की परिस्थितियों को देखते हुए तो अब यही लगने लगा है कि पूरा मानसून सत्र इसी तरह के हंगामे की बलि चढ़ जाएगा। शीत सत्र आरंभ होने से पहले अगर कोरोना महामारी की तीसरी लहर ने दस्तक दे दी तो शीतकालीन सत्र निसंदेह इस तीसरी लहर की भेंट चढ़ जाएगा। माना विपक्ष को पूरा अधिकार है कि वो जनहित के मुद्दों को लेकर पुरजोरता से प्रश्न पूछे और संतोषजनक उत्तर न मिलने पर अपना पुरजोर विरोध भी प्रकट करे। वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष का यह दायित्व है कि वो लोकसभा में ऐसा वातावरण बनाए कि विपक्षी दलों को लगे कि सत्ता पक्ष गंभीरता से उनके प्रश्नों का उत्तर देना चाहता है। लेकिन सत्ता पक्ष भी शायद ऐसा नहीं चाहता कि वो विरोधी दलों के तीखे प्रश्नों का स्पष्टता से उत्तर दे। आज की स्थिति में न तो विरोधी दल गंभीरताा से जनहित के प्रश्नों को पटल पर रखने का प्रयास करते हैं और न ही सत्ता दल उनके गंभीर प्रश्नों का उत्तर देने में किसी तरह की रुचि रखता है। ऐसे में जनहित सुरक्षित रह ही कहां पाएगा और जिस लोकतंत्र की हम दुहाई देते हैं वो लोकतंत्र देश में जीवित कैसे रह पाएगा। अब जैसे भी हो परिस्थितियों को सुधारना तो होगा ही, विरोधी अपनी भूमिका गंभीरता से निभाएं और सत्ता पक्ष अपने दायित्वों का गंभीरता से निर्वाह करें तभी देश में लोकतंत्र जिंदा रह पाएगा।

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