कमल सेखरी
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा किए जाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। आज से लगभग दो महीने बाद किसी भी दिन चुनाव आयोग यूपी में चुनाव कराए जाने की घोषणा कर सकता है। इन विधानसभा चुनाव से पहले पूरे प्रदेश में जो चुनावी सरगर्मियां इस बार देखने को मिल रही हैं वो अभी तक पहले कभी देखने को नहीं मिलीं। भाजपा अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए पुरजोरता से लगी हुई है वहीं विरोधी दल उसे सत्ता से बाहर कर विपक्ष की मिलीजुली सरकार बनाने की पैंतरेबाजी में जुट गए हैं। भाजपा के लिए सबसे कठिन और परीक्षा की घड़ी इसलिए बन रही है कि इस बार सूबे का चुनाव नरेन्द्र मोदी के नाम से नहीं योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर लड़ा जा रहा है। इस बार भाजपा को यह नुकसान भी उठाना पड़ सकता है कि इन बीते पांच वर्षों के दौरान वर्तमान योगी सरकार की कई ऐसी खामियां सामने आई हैं जो नकारात्मकता बनकर उसके वोट बैंक में चोट पहुंचाने का काम करेगी। दूसरा अभी से चुनावी प्रचार में भाजपा का ना तो कहीं नाम सामने आ रहा है और ना ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम का जो अब तक पार्टी को फायदा होता रहा है वो भी होता नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि इस बार का चुनाव मुख्यमंत्री योगी के नाम से लड़ा जा रहा है और उन्हीं के चेहरे को वोट मिलनी है जो निसंदेह पहले की अपेक्षाकृत काफी कमजोर पड़कर ही सामने आएगी। दूसरी ओर विपक्षी दलों में दो युवा शक्तियों की गठजोड़ की संभावना जो बनती नजर आ रही है वो भी भाजपा को भारी नुकसान पहुंचा सकती है, हो सकता है उसके दोबारा सत्ता में आने की राह में रोड़ा भी अटका दे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के आपस में मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना अगर सिरे चढ़ गई तो भाजपा को सत्ता में वापस लौटने की संभावनाएं खंडित भी हो सकती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद एक नई शक्ति बनकर उभर रहा है वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अपनी पुरानी स्थिति को फिर से पाने की स्थिति बना सकती है। ऐसे में पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में चुनाव की प्रभारी बनाई गर्इं कांग्रेस की बड़ी नेता प्रियंका गांधी जिस तेजी से उभरकर सामने आ रही हैं उससे यह अनुमान लगने शुरू हो गए हैं कि कांग्रेस यूपी में अगले विधानसभा चुनाव के सभी समीकरण अकेले खुद से ही बदलने की स्थिति में आ सकती है। प्रियंका गांधी का चुनावी अभियान आंधी की तरह चल रहा है और उसमें कुछ ऐसे दिमाग काम कर रहे हैं जो नए-नए नारे कांग्रेस को दे रहे हैं और ऐसी घोषणाएं भी करा रहे हैं जो आगामी विधानसभा चुनाव में धोबीपाट का दाव लगाकर हालात बदल सकते हैं। इन सब परिस्थितियों के बीच बहुजन समाज पार्टी जो अपने नेतृत्व की व्यक्तिगत कमजोरियों की वजह से वजूद खो चुकी है वो इस चुनावी संघर्ष में फिर से कोई मजबूती पाने की स्थिति में फिलहाल नजर नहीं आ रही है। लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि बसपा का नेतृत्व कठपुतली बनकर भाजपा के इशारों पर चल रहा है जो उसके बचाव की एक बड़ी मजबूरी है। अब दो महीने बाद जब तक चुनावी घोषणा सरकारी तौर पर होती है तब तक यह चुनावी समर इतना उग्र और तेज रूपधारण कर जाएगा यह जल्दी हमारे सामने आ जाएगा। कांग्रेस इसमें अगर कुछ ठोस स्थिति बना लेती है तो 2024 के आम चुनाव में भाजपा का वजूद दिक्कत में आ सकता है। भाजपा-कांग्रेस, सपा-रालोद और अन्य छोटे-छोटे पिछलग्गू दल अगले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश में मिलकर जो घमासान मचाएंगे वो भारत के चुनावी इतिहास में एक अलग ही दर्जा कायम करेंगे।