- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 18 साल तक निशुल्क जांच और उपचार मिलता है
- सेंटर में आक्यूपेशनल थेरेपी से किया जाता है जन्मजात कुरूपता का उपचार
गाजियाबाद। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत संजयनगर स्थित संयुक्त जिला चिकित्सालय में संचालित डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर में बच्चों में होने वाली जन्मजात कुरूपता का आक्यूपेशनल थेरेपी (ओटी) के जरिए निशुल्क उपचार किया जाता है। जैसा कि सेंटर के नाम से ही विदित है, इसकी शुरूआत इस उद्देश्य से की गई है ताकि किसी भी परेशानी की जल्दी पहचान और उपचार शुरू हो सके। सेंटर की मेडिकल आफिसर डा. रुचि मिश्रा का कहना है बच्चों में जन्म से ही कई कुरूपता होती हैं जिनका समय से पता न चल पाने के कारण उपचार मुश्किल हो जाता है। इसलिए बच्चे के जन्म के पहले माह में ही (हो सके तो दो-तीन दिन का होने पर ही) एक बार डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर में जरूर दिखाएं। उन्होंने जोर देकर कहा जन्म के बाद जो बच्चे एसएनसीयू (स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट) में रखे गए हों, उन बच्चों को सेंटर में लेकर आना और भी जरूरी हो जाता है।
डा. मिश्रा बताती हैं जन्म के बाद बच्चे को एसएनसीयू में तभी रखा जाता है जब उसके स्वासथ्य को लेकर कोई दिक्कत होती है, जाहिर तौर पर ऐसे बच्चे की अच्छे से जांच होना जरूरी हो जाता है ताकि यदि उसे किसी तरह की थेरेपी या फिर उपचार की जरूरत हो तो उसे समय से शुरू किया जा सके। उन्होंने बताया सरकारी चिकित्सालय में जन्म लेने वाले बच्चों के माता-पिता को तो इस बात की जानकारी दी ही जाती है कि वह बच्चे को लेकर अर्ली इंटरवेंशन सेंटर पर जाएं लेकिन निजी चिकित्सालयों में पैदा होने वाले बच्चों को हम यह जानकारी नहीं दे पाते। उन्होंने कहा ह्लयहां सभी बच्चों की जांच और उपचार की ?सुविधा निशुल्क उपलब्ध है। सेंटर में उपलब्ध सुविधाओं के अलावा यदि बच्चे को किसी सुविधा की जरूरत होती है तो हम उसे रेफर करके सुविधा प्रदान कराते हैं।ह्ल
दरअसल, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का उद्देश्य 18 साल की उम्र तक के हर बच्चे को ह्लबर्थ डिफेक्टह्व का निशुल्क उपचार उपलब्ध कराना है। डा. मिश्रा ने बताया वर्तमान में डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर में करीब सात सौ बच्चों का उपचार चल रहा है। इन बच्चों को फालोअप के लिए सेंटर से कॉल करके बुलाया जाता है। न आने पर उन्हें फालोअप कॉल भी की जाती हैं। शून्य से छह वर्ष तक के बच्चों को उपचार देने के साथ ही छह से 18 वर्ष तक के बच्चों को जांच के बाद उपचार के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक के पास भेज दिया जाता है। इतना ही नहीं जरूरतमंदों को उनके लिए शासन की ओर से चल रहे कार्यक्रम की भी जानकारी दी जाती है, ताकि वह कार्यक्रम का लाभ उठा सकें।