- टीबी के अलावा डेंगू, मलेरिया, कोविड और फाइलेरिया समेत तमाम जांच होंगी
- जिला क्षय रोग विभाग के पास पहले से हैं 11 ट्रू-नेट मशीन
- हर माह 10 हजार से अधिक हो रहीं टीबी जांच
गाजियाबाद। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहता। वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जहां क्षय रोगियों को खोजने के लिए आयुष्मान भारत – हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स को शामिल किया गया है वहीं जांच बढ़ाने की भी व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए जिले को तीन अत्याधुनिक ट्रू-नेट मशीन आवंटित की गईं हैं। जिले में पहले से 11 ट्रू-नेट मशीन हैं, अब संख्या बढ़कर 14 हो गई है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. भवतोष शंखधर ने बताया – जिले में हर माह औसतन 10 हजार से अधिक टीबी जांच हो रही हैं। अभियान के दौरान यह संख्या बढ़ जाती है। तीन नई मशीन मिलने से जांच की संख्या और बढ़ जाएगी। दरअसल एनएचएम और क्षय रोग विभाग की ओर से लगातार क्षय रोगी खोजने की प्रक्रिया को तेज करने पर बल दिया जा रहा है, ऐसे में जांच के लिए अधिक मशीन की जरूरत होगी। उन्होंने बताया – शासन से मशीन इंस्टाल करने का काम एजेंसी को दिया गया है। दो मशीन डासना और एक मशीन मोदीनगर ब्लॉक के लिए है। जिला क्षय रोग अधिकारी (डीटीओ) डा. डीएम सक्सेना ने बताया कि नई ट्रू-नेट मशीन से टीबी के अलावा डेंगू, मलेरिया, कोविड, स्वाइन फ्लू, सिफलिस, पीलिया और हेपेटाइटिस-बी की भी जांच हो सकेगी। उन्होंने कहा – टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स को शामिल किए जाने के बाद स्क्रीनिंग में अधिक लक्षण युक्त व्यक्ति सामने आएंगे और सभी लक्षण युक्त व्यक्तियों की जांच होना जरूरी है। अधिक जांच और पुष्टि होने पर उपचार शुरू कर ही टीबी संक्रमण पर काबू पाया जा सकता है।
डीटीओ ने बताया कि फेफड़ों की टीबी संक्रामक होती है और जांच में देरी होने से संक्रमित के संपर्क में आने वालों को संक्रमण का खतरा रहता है, जबकि जांच के बाद पुष्टि होने पर उपचार शुरू कर दिया जाए तो दो सप्ताह बाद रोगी के संपर्क में आने वालों को संक्रमण फैलने की आशंका काफी कम हो जाती है।