कमल सेखरी
उत्तराखंड के चारों धामों की यात्रा को सुगम बनाने की नजर से उत्तरकाशी में बनाई जा रही साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग के एक बड़े हिस्से के अचानक धंस जाने से 41 श्रमिक उसमें फंस गए। यह घटना दीपावली के दिन 12 नवंबर को घटित हुई और तब से अब तक पुरजोर निरंतर प्रयास करते रहने पर भी अभी तक हम वहां फंसे हुए श्रमिकों को बाहर नहीं निकल पाए। हालांकि हमने काफी कोशिशें कर यह रास्ता तो निकाल लिया कि उन फंसे हुए श्रमिकों की जान किसी तरह बची रहे, उन्हें आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा भी पहुंचती रहे, पेयजल व खादय सामग्री भी उन तक इतनी तो पहुंचती रहे कि वो उन विपरीत परिस्थितियों में भी अपने जीवन को बचा सकें। दुनियाभर की मशीनें और तकनीकी प्रणालियां अपनाकर भी हम अभी तक उनको निकालने में सफल नहीं हो पाए। इसी बीच हमने संकट की इस घड़ी में मौके पर ही ईश्वर से प्रार्थना करने का सहारा भी ढूंढा और इन प्रार्थनाओं में हमारे केन्द्रीय मंत्रियों सहित कई सियासी नेता भी शामिल हैं जबकि हम सब जानते हैं कि कर्म ही असली पूजा है और ईश्वर स्वत: ही उनके साथ रहता है जो कर्म करते हैं लेकिन हमने इतने बड़े हादसे के मौके पर सुरंग के बाहर अपने कर्मांे के विश्वास से कुछ निराश होकर ईश्वर से प्रार्थना का रास्ता चुन लिया जबकि जिन विकट परिस्थितियों में यह घटना हुई और अब तक जो भी सफलता मिली उसमें देश के लोगों की दुआओं के साथ ईश्वर तो पहले से ही साथ था। इस तरह के हादसे उत्तराखंड में पहले भी कई बार हो चुके हैं जब कभी भी हम लंबे पहाड़ी रास्तों को छोटा बनाने के लिए पहाड़ के बीच में से सुरंग बनाने की कोशिश करते हैं तो कई बार इस तरह की घटनाएं हो जाती हैं। हमें इस बार की इस घटना से यह सबक तो जरूर लेना ही होगा कि ऐसी घटनाओं का कारण क्या होता है। क्या हमने कभी विचार किया कि हम जिन पहाड़ों को काटकर लंबी-लंबी सुरंग बना रहे हैं उन्हें पहले से ही हमने कितना घायल कर दिया है। हमने प्रकृति की इस अनुपम भेंट को इतना चोटिल कर दिया है कि वो अपनी ऊर्जा शक्ति तो खो ही चुकी है उसका दम भी पूरी तरह से निकल चुका है। इन पहाड़ों पर हमने जगह-जगह जंगल काट दिए हैं। दिनदहाड़े बड़े-बड़े पेड़ों को काटने का काम सियासी संरक्षण में वन विभाग की देखरेख में खुलेआम चल रहा है। जहां पर से भी पेड़ काटे जाते हैं वहां विशाल वृक्षों की जड़ें जो वर्षों तक पहाड़ की मिट्टी को रोककर पकड़े बैठी थीं वो कटकर खोखली हो गई और हर पहाड़ पर बेतहाशा खनन होना शुरू हो गया। पहाड़ों के किनारों को काट-काटकर कई-कई मीटर तक उसकी दीवारों को उधेड़कर पहाड़ों के आधार को ही खत्म कर दिया। बेतहाशा खनन और खुलेआम जंगलों का कटना, नई-नई बहुमंजिली बस्तियों का बोझ पहाड़ों पर पड़ना कारण बन गया कि जब कभी भी आप किसी भी विकास के लिए पहाड़ों को छेड़ेंगे उसके अंदर से सड़कें बनाने की कोशिश करेंगे तो पहाड़ भर-भराकर गिरेंगे ही और वो गिर रहे हैं। हमारी केन्द्र सरकार और उत्तराखंड की प्रदेश सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए, उनकी व्यवस्था ही गुनहगार है पहाड़ों को इतना कमजोर बनाने में और उसका मूल रूप खंडित कर उसे खोखला और बेजान बनाने में। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे 41 मजदूर सकुशल बाहर आ जाएं और अपने परिवारों के बीच पहुंच जाए। लेकिन उत्तराखंड की सरकार इस घटना के साथ ही यह संकल्प भी ले कि इसी क्षण के बाद न तो पहाड़ों पर बचे हुए जंगल काटे जाएंगे और न ही उनका खनन करके शेष बचे कुछ पहाड़ों को और अधिक घायल किया जाएगा। ऐसा करने वाले माफियाओं को ऐसा सबक सिखाया जाए कि आगे से कोई लुक छुपकर भी ऐसा घृणित कार्य करने की हिम्मत न कर सके।