कमल सेखरी
हमारे यहां बोलने और सुनने में इतनी सारी किदवंतियां और मुहावरे चलन में हैं जिन्हें हम चुटकियां ले लेकर बोलते और सुनते हैं। हमारे यही मुहावरे राजनीति की कई घटनाओं को लेकर कुछ इस तरह जुड़ते हैं जिनके मतलब बड़े गहरे और रोचक बन जाते हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने बहुत समय बाद अपना मुंह खोला और शायद बड़ी हिम्मत करके यह कहा कि पश्चिम बंगाल में महिला डाक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या की जो दरिंदगी वाली घटना हुई उस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल इस पर जो राजनीति कर रहे हैं वो बेहद शर्मसार है। अब यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मायावती ने जो बोला उसके पीछे उनका मतलब क्या है। क्योंकि पश्चिम बंगाल में जो विपक्षी दल है वो सबको मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी है और पश्चिम बंगाल में जो भी राजनीतिक बातें या बयानबाजी महिला डॉक्टर पर हुए इस अत्याचार को लेकर हो रही है उसमें सर्वविदित है कि वो भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही हो रही है। लिहाजा दबे शब्दों में भी सुश्री मायावती ने जो कहा है उसका सीधा संबंध भाजपा से ही है। पिछले दस साल में बसपा सुप्रीमो ने एक बार भी केन्द्र या उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ कोई ऐसा शब्द नहीं बोला है जिससे सत्तादल नाराज हो जाए और उनके खिलाफ आदतन कोई कठोर कार्रवाई ना कर सके। हालांकि कांग्रेस और सपा के नेतागण बड़े खुले शब्दों में यह आरोप लगाते आ रहे हैं कि मायावती सत्तादल भाजपा से डरकर खामौश बैठी हैं क्योंकि उन्हें डर है कि भाजपा के खिलाफ कुछ बोलते ही जांच एजेंसियां उनके पीछे लगा दी जाएंगी और वो दिल्ली और झारखंड के नेताओं की तरह ही प्रताड़ित की जाएंगी। मायावती के इसी खामोशी या डर के व्यवहार को लेकर उनके विरोधियों ने उन्हें भाजपा की बी पार्टी का नाम भी दे रखा है। अब मायावती दबे स्वर में भी जो कुछ बोली हैं उससे यही लगने लगा है कि देर आए दुरुस्त आए। लेकिन ये देरी उनके लिए कितनी दुरुस्त है यह समय बताएगा। क्योंकि यह मुहावरा भी साथ चिपकता है बड़ी देर कर दी सनम आते-आते। अब सनम लग रहा है देर से आ गए लेकिन यह सच्चाई भी मुहावरा बनकर साथ चिपक जाती है अब पछतावा क्या करे जब चिड़ियां चुग गई खेत। मायावती ने पिछले दस साल में चाहे जिन कारणों से ही एक लंबी चुप्पी साधे रखी, उसने बसपा की तीस साल की कमाई को इस चुप्पी के नाम पर बलि चढ़ा दिया। अब मायावती महसूस कर रही हैं कि उनका वोट बैंक खाली हो गया और वो राजनीति में हाशिये पर आकर खड़ी हो गई। निरतंर हार के चलते जो चोट बसपा के वोट बैंक को पड़ी है वो चोट नगीना लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर बड़ी गहरा गई है। नगीना लोकसभा क्षेत्र जिसकी सभी विधानासभा सीटों पर और संसदीय सीट पर भी बसपा का जो एकतरफा वर्चस्व था उसे दलितों के युवा नेता चन्द्रशेखर आजाद ने तार-तार कर दिया। नगीना लोकसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी की ना केवल जमानत जब्त हुई बल्कि उसे कुल मतदान का 1.33 प्रतिशत वोट ही मिला जबकि चन्द्रशेखर आजाद को उस सीट पर कुल मतदान का 56 फीसदी वोट प्राप्त हुआ। चन्द्रशेखर की इस अपार जीत से दलितों और जाटवों में जो माहौल बना वो मायावती के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया। सुश्री मायावती के हाथ से अब हाथी तो निकल गया अब सिर्फ पूंच बाकी है। यह पूंच भी ना हाथ से फिसल जाए, मायावती को इस पर चिंतन करना चाहिए। अब डर काहे का। विपक्ष के लगभग सभी नेता भाजपा की उस भय की परिधि से बाहर आ चुके हैं जहां उन पर गाज गिरने की कोई गुंजाईश बनती हो। सुश्री मायावती भी प्रारंभ में ही समय रहते अपने भय और खौफ के इस दायरे से बाहर निकल आतीं तो बसपा वोट बैंक की सुप्रीमो बनी रहतीं। अब वो ही मुहावरा है जो डर गया वो मर गया लेकिन डर के आगे जीत भी है, इस मुहावरे को मायावती अभी भी प्रमाणित कर सकती हैं अगर वो निडर होकर खुलकर सामने आएं और अपने विपक्ष की भूमिका को पुरजोरता और ईमानदारी के साथ निभाएं। बरहाल सुश्री मायावती से नाराज उनके वोट बैंक की तसल्ली के लिए नजर हैं ये दो पंक्तियां:-
कोई वजह तो जरूर रही होगी।
वरना आदमी यूं ही बेवफा नहीं होता।।