गाजियाबाद। यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशाम्बी की निदेशिका डॉ. उपासना अरोड़ा ने बाल चिकित्सा सर्जरी दिवस के मौके पर कहा कि 1965 में स्थापित इंडियन एसोसिएशन आफ पीडियाट्रिक सर्जन इस दिन को बाल चिकित्सा शल्य चिकित्सा दिवस के रूप में मनाता है ताकि बाल चिकित्सा सर्जिकल समुदाय को कोमल प्रेमपूर्ण देखभाल में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जा सके, जो वे शिशुओं को प्रदान करते हैं। यह दिन बच्चों और उनके बाल सर्जनों के बीच सुरक्षा और बंधन की भावना को चिह्नित करता है और बढ़ाता है।
यशोदा हॉस्पिटल के वरिष्ठ पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. जयभारत पंवार ने बताया कि अब गर्भ में पल रहे शिशु की भी सर्जरी की जा रही है। इससे जन्मजात विकृतियों का प्रारंभिक अवस्था में ही इलाज हो जाता है। डॉ. पंवार ने कहा कि 13 से 18 सप्ताह के गर्भस्थ शिशु में जन्मजात विकृतियों का पता चल जाता है। रीढ़ की हड्डी में फोड़ा, किडनी के रास्ते में रुकावट सहित अन्य जन्मजात विकृति होने पर गर्भस्थ शिशु की फीटल सर्जरी की जाती है। इसके बाद नौ महीने तक शिशु गर्भ में रहता है और विकृति का इलाज हो जाता है। यही नहीं, फीटल सर्जरी के बाद शरीर पर आॅपरेशन के निशान भी नहीं होते हैं। इसके साथ ही बच्चों के आॅपरेशन के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी भी की जा रही है। यह सर्जरी एक दिन के नवजात में की जा सकती है।
यशोदा हॉस्पिटल के ही अन्य वरिष्ठ पीडिएट्रिक सर्जन एवं पीडियाट्रिक यूरोलॉजिस्ट डॉ. ब्रह्मानन्द लाल ने बताया कि जन्मजात विकृति के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। 100 में से दो बच्चों को जन्मजात विकृति हो रही है। इन बच्चों को समय से इलाज न मिल पाने पर विकृतियां जिंदगी भर दर्द देती हैं। इन बीमारियों में नवजात के फटे होठ, कटे तालु, पेट की दीवार और नाभि दोष, खाने की नली में रुकावट, मलद्वार का न होना, हर्निया, मूत्र नली की समस्या, सेक्स का पता न लग पाना, सिर में पानी भर जाना,ट्यूमर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रुकावट सामान्य तौर पर ज्यादा पायी जाती हैं।
डॉ. जयभारत पंवार के अनुसार बाल शल्य चिकित्सा के अंतर्गत ह्रदय की विकृतियों को छोड़ कर सभी जन्मजात विकृतियों का उपचार और प्रबंधन किया जाता है। ह्रदय रोगों की सर्जरी के लिए पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जन विशेष रूप से पारंगत होते हैं। नवजात शिशु और बच्चे का संपूर्ण शरीर विज्ञान अलग होता है और बीमारी के साथ-साथ उपचार के प्रति उनकी प्रतिक्रिया भी भिन्न होती हैं। हर बच्चा अलग होता है और जब बीमारियों की बात आती है तो हर बच्चा अलग-अलग व्यवहार भी करता है, भले ही वे एक ही आयु वर्ग में हों। बच्चे कई स्थितियों और बीमारियों से प्रभावित होते हैं, चाहे वह जन्म से पूर्व हों या कोई जन्म के बाद हुई बीमारी, जिसे शल्य चिकित्सा द्वारा ठीक करने की आवश्यकता होती है, बाल रोग सर्जन इसका सबसे अच्छा विकल्प हैं।
डॉ. ब्रह्मानंद लाल ने बताया कि बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करने की अपनी क्षमता के साथ बाल रोग विशेषज्ञ जानते हैं कि बच्चों की जांच कैसे की जाती है और बच्चों के साथ इस तरह से व्यवहार किया जाता है जिससे उन्हें आराम और सहयोग मिले। वे उन उपकरणों और सुविधाओं का भी उपयोग करते हैं जो विशेष रूप से सभी आकार के बच्चों के लिए और सभी जटिलताओं के साथ तैयार किए गए हैं।
चूंकि यह समझना आसान नहीं है कि बच्चा किस दौर से गुजर रहा है, क्योंकि वह बोलने में असमर्थ है और भले ही वह बोलने की उम्र में हो तो भी उसे अपनी बीमारी को सुसंगत रूप से व्यक्त करने में असमर्थता रहती है ऐसे में जहां एक ओर बच्चों के साथ एक मजबूत बंधन बनाकर एक बाल रोग सर्जन न केवल सटीक निदान करने में सक्षम होते हैं वहीं दूसरी ओर चिंतित और उत्तेजित माता-पिता को भी शांत करने में अपनी भूमिका निभाते हैं।