नई दिल्ली। देश कोरोना टेस्ट के एक नए फार्मूले को खोज निकाला गया गया है। इस खोज को आईसीएमआर ने भी अपनी मंजूरी दे दी है। गले व नाक में रुई लगी स्टिक डालने की जरूरत नहीं है। अब सिर्फ गरारा करने से कोरोना का सैंपल लिया जा सकेगा। सीएसआईआर की एक घटक प्रयोगशाला नागपुर स्थित नीरी ने एक ऐसा द्रव्य तैयार किया है, जिसे मुंह में लेकर 15-20 सेकेंड गरारा करके एक शीशी में रख लिया जाता है। गरारा किए इसी द्रव्य को लैब में ले जाकर उसका परीक्षण करने से व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने या न होने का पता चल जाता है। इसे स्टेराइल सैलाइन गार्गल टेक्निक नाम दिया गया है। नीरी का दावा है कि इस पद्धति से टेस्ट करना आसान हो जाएगा। इसमें सैंपल रखने के लिए सिर्फ एक शीशी एवं द्रव्य की जरूरत पड़ेगी। एवं इसका परिणाम आरटी-पीसीआर टेस्ट जैसा ही विश्वसनीय भी होगा। रुई लगी सलाई के जरिए नाक एवं मुंह से निकाले जाने वाले सैंपल की भांति इसमें स्वैब कम मिलने का खतरा नहीं है। सलाई से निकाले गए सैंपल को लैब तक पहुंचाने की मुश्किल भी इसमें नहीं है। सलाई से लिए जाने वाले सैंपल को एक ट्रांस्पोर्ट मीडिया सोल्यूशन की जरूरत पड़ती है। उसे एक निश्चित तामपान पर ही लैब तक पहुंचाना जरूरी होता है। जबकि स्टेराइल सैलाइन गार्गल टेक्निक में गरारा करके लिया गया नमूना सामान्य तामपान पर भी लैब तक पहुंचाया जा सकता है। जानकारों का मानना है कि एक सरकारी लैब द्वारा खोजी गई यह पद्धति भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में बहुत कारगर हो सकती है। क्योंकि इस पद्धति से लिए गए नमूनों को एक साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। यह तकनीक संसाधनों की कमी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक लाभप्रद हो सकती है। देखा गया है कि अभी प्रचलित एंटीजेन टेस्ट या आरटी-पीसीआर तकनीक में टेस्ट कराने वाला व्यक्ति अक्सर नाक एवं मुंह में रुई लगी सलाई डलवाने से डरने लगता है। जिसके कारण वह टेस्ट करवाने से ही कतरा जाता है। प्रचलित तकनीक महंगी भी है। लेकिन नीरी द्वारा खोजी गई स्टेराइल सैलाइन गार्गल टेक्निक को कोई भी व्यक्ति बिना डरे अपना सकता है, और यह तकनीक सस्ती भी है।