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कट गए पंख कागज के

कमल सेखरी

हम राष्ट्र से बड़े हो गए, हम परिस्थितियों से बड़े हो गए, हम आवाम से बड़े हो गए, हम संविधान से बड़े हो गए, हम आपदाओं को चुनौती देते हुए वैश्विक महामारी से भी बड़े हो गए, हमारे इस आचरण का दंड हमें ये मिला कि हम सशस्त्र बाहुबलियों की सेना लेकर भी एक अकेली महिला से शर्मनाक शिकस्त खा गए। बंगाल विधानसभा चुनाव में व्हीलचेयर पर बैठी टूटी टांग वाली निहत्थी महिला ने राजधानी और कई सूबों से गए बड़े-बड़े सूरमाओं को धरती चटा दी। बंगाली मिजाज को जाने बिना वहां के कल्चर का ज्ञान लिए बिना आपने कागज के पंख लगाकर आसमान में उड़ने की कोशिश की, वहां के जनमानस ने आपके वो कागजी पंख काट डाले, आप जमीन पर आ गिरे, बंगाल में आपकी शिकस्त होनी ही थी सो हुई भी, लेकिन आप बंगाल की हार का वो गम लेकर लौटने से पहले बंगाल को वो दुखदायी पीड़ा दे आए जिस पर मरहम लगा पाने में लंबा समय लगेगा और भारी नुकसान भी होगा। कोरोना महामारी का जो फैलाव बंगाल में हो चुका है उस पर नियंत्रण पाने में समय लगेगा और हजारों मासूमों की जाने जाएंगी। आपने एक प्रदेश की मुखिया को देश की सबसे बड़ी नेत्री बना दिया। दो-चार दिन में वो फिर से सत्ता के घोड़े पर चढ़ जाएंगी और इस बार वो बंगाल की दीदी मात्र नहीं भारत देश की झांसी की रानी बनकर सामने आएंगी। अब तो तलवार म्यान से निकलेगी, उसकी धार कई सताने वाले विरोधियों को धराशाई करेगी और राजधानी दिल्ली में रह-रहकर चमकेगी। बंगाल चुनाव से आए परिणामों और देश में कोरोना महामारी से बने मौजूदा गंभीर हालातों के चलते एक नई सोच बनाने वालों की नजर हैं ये पक्तियां:-
जैसे भी बने बात, बात बनानी होगी।
वरना इस दौर की रुसवा कहानी होगी।।
इन बहारों को सोख लेते हैं बड़े पेड़ सभी।
अब गुलिस्तां से हर बड़ी शाख हटानी होगी।।

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