
सभी देवी-देवताओं की पूजा में मंत्रों का जाप विशेष रूप से किया जाता है। पूजा से जुड़ी सभी क्रियाओं के लिए मंत्र बताए गए हैं। प्रार्थना, स्नान, ध्यान, भोग के मंत्रों की तरह ही क्षमायाचना के मंत्र भी हैं। पूजा से जुड़ी भूलों के लिए क्षमायाचना मंत्र बोला जाता है। जब हम अपनी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगते हैं, तभी पूजा पूरी होती है।
ऐसा कहा जाता है कि मंत्रों का जाप करना केवल धार्मिक तौर पर ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद माना गया है। जब भी मंत्रों का जाप किया जाता है उस समय जो शरीर से एक कंपन आता है उससे शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। वहीं, मंत्रोच्चारण के बिना किसी भी पूजा का महत्व अधूरा रह जाता है।
हिंदू धर्म में पूजा करते समय कई तरह के विधि-विधान किए जाते हैं। इस दौरान सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है क्योंकि इन्हें सर्वप्रथम पूज्य माना जाता है। पूजा करते समय मंत्रों के उच्चारण का बेहद ही विशेष महत्व माना गया है।
मान्यता है कि मंत्रों के सही उच्चारण और सच्चे मन से कहे जाने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जितने भी देवी देवता हैं उन सभी के अलग-अलग मंत्र हैं। ऐसे में जिन देवी या देवता की पूजा की जा रही हो उस समय उनके ही मंत्र पढ़ें जाने चाहिए। ऐसे में हम आपको एक ऐसे ही मंत्र की जानकारी दे रहे हैं जिसका उच्चारण लगभग हर पूजा में किया जाना चाहिए।
मंत्र-
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
जानें मंत्र का अर्थ:
अर्थात् जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के अवतार हैं… संसार के सार हैं जो अपने गले में भुजंगों का हार धारण करते हैं… वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
मंदिरों में लगभग हर पूजा के दौरान इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है। जीवन और मरण शिव के ही अधीन हैं। ऐसे में पूजा के बाद शिव जी की आराधना करना बेहद आवश्यक है।
सभी देवी-देवताओं की पूजा में क्षमा याचना करना चाहिए, पूजा में हुई जानी-अनजानी भूल के लिए बोलना चाहिए क्षमायाचना का मंत्र
पूजा में क्षमा मांगने का संदेश ये है कि दैनिक जीवन में हमसे जब भी कोई गलती हो जाए तो हमें तुरंत ही क्षमा मांग लेनी चाहिए। क्षमा के इस भाव से अहंकार खत्म होता है और हमारे रिश्तों में प्रेम बना रहता है।
पूजा में क्षमा मांगने के लिए बोला जाता है ये मंत्र
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
ये है इस मंत्र का सरल अर्थ
इस मंत्र का अर्थ यह है कि हे प्रभु। न मैं आपको बुलाना जानता हूं और न विदा करना। पूजा करना भी नहीं जानता। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे न मंत्र याद है और न ही क्रिया। मैं भक्ति करना भी नहीं जानता। यथा संभव पूजा कर रहा हूं, कृपया मेरी भूलों को क्षमा कर इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें।
अहंकार दूर करने की प्रार्थना करें
इस परंपरा का आशय यह है कि भगवान हर जगह है, उन्हें न आमंत्रित करना होता है और न विदा करना। यह जरूरी नहीं कि पूजा पूरी तरह से शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार ही हो, मंत्र और क्रिया दोनों में चूक हो सकती है। इसके बावजूद चूंकि मैं भक्त हूं और पूजा करना चाहता हूं, मुझसे चूक हो सकती है, लेकिन भगवान मुझे क्षमा करें। मेरा अहंकार दूर करें, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं।