कमल सेखरी
भारत जैसे 140 करोड़ आबादी के विशाल देश में आज भी नेतृत्व का अभाव है। इस बात की पुष्टि एक राष्टÑीय टीवी चैनल ने दो दिन पहले ही प्रसारित अपनी एक सर्वे रिपोर्ट में दी है। इस चैनल पर चली दो दिन की डिबेट ने पूरे देश को ही सकते में डाल दिया है। इस सर्वे का निचोड़ अगर निकालकर रखा जाए तो यह निकलकर आता है कि भारत आज नेतृत्वहीन देश बनकर तेजी से सामने आ रहा है और विश्व गुरु बनने के उसके सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। इस सर्वे में यह बताया गया कि पिछले दो साल में जब से मोदी सरकार दोबारा सत्ते में आई है तब से अब तक न केवल भारतीय जनता पार्टी का ही ग्राफ गिरा है बल्कि केन्द्र सरकार के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता भी काफी तेजी से नीचे आई है। इस सर्वे में एक तालिका बनाकर यह दर्शाया और बताया गया कि केन्द्र सरकार की लोकप्रियता 52 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत पर आ गई है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता जो दो साल पहले 65 प्रतिशत आंकी जा रही थी वह भी अब कम होकर 35 प्रतिशत पर आ गिरी है। इतना कुछ होने के बावजूद भी इस सर्वे में भाजपा और प्रधानमंत्री के लिए एक बड़ी राहत की बात यह बताई गई है कि इन दोनों का ही इन स्थितियों में भी कोई दूसरा विकल्प नहीं है और देश को इन हालातों में भी इन्हीं राजनीतिक परिस्थितियों के साथ आगे चलने होगा। उस चैनल के अनुसार श्री मोदी की जो लोकप्रियता घटकर 35 प्रतिशत रह गई है उसके समकक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता 12 प्रतिशत, मनमोहन सिंह की लोकप्रियता 9 प्रतिशत, सोनिया गांधी की लोकप्रियता 7 प्रतिशत, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता चार प्रतिशत, ममता बनर्जी की लोकप्रियता 3 प्रतिशत और प्रधानमंत्री पद के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता मात्र दो प्रतिशत आंकी गई है। विरोधी दल सत्ता की गोद में बैठे इस सूरजमुखी टीवी चैनल के इस सर्वे को प्रायोजित करार दे रहे हैं। विरोधी दलों का कहना है कि जब भी प्रधानमंत्री मोदी का ग्राफ नीचे आता है तभी कुछ टीवी चैनल फर्जी सर्वे करके श्री मोदी को उन गिरी परिस्थितियों में भी संभालने की कोशिश करते हैं और उन्हें इन हालातों में भी देश के अन्य नेताओं से काफी ऊपर आंककर दर्शाते हैं। अगर हम इन गोदी मीडिया की बातों को वजन देने लगे तो यह तस्वीर उभरकर सामने आती है कि 140 करोड़ की आबादी के इस देश में क्या किसी एक व्यक्ति का विकल्प बन ही नहीं पा रहा है। लेकिन यह मीडिया की चालाकी है कि वो ऐसे सर्वे बनाता है जो देखने और सुनने में ऐसे लगे कि वो किसी नेता विशेष के साथ नहीं हैं लेकिन पात्रों को चुनने की उनकी चालाकी स्पष्ट संकेत देती है कि मीडिया पक्षपात कर रहा है। हम प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प विपक्षी दलों के नेताओं को ही सामने रखकर क्यों दर्शाते हैं। क्यों नहीं हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विकल्प भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेताओं को सामने रखकर तलाशने की कोशिश करें। भाजपा के अंदर ही इतने सुलझे हुए नेता मौजूद हैं अगर हम उनको इस तरह के तुलनात्मक सर्वे में सामने रखें तो एक नहीं कई ऐसे नाम निकल आएंगे जो प्रधानमंत्री का विकल्प बनकर हमें मिल सकते हैं। लिहाजा किसी एक मीडिया को हिम्मत करके यह पहल करनी चाहिए कि वो नकारा विरोधी दलों को छोड़कर सत्ता दल के अंदर ही प्रधानमंत्री के दूसरे नाम को सामने रखे। अगर कोई ऐसा करता है तो निसन्देह इतने बड़े विशाल देश के सामने एक व्यक्ति के अलावा और भी कई नाम निकलकर आ सकते हैं। लेकिन आवश्यकता है इस तरह हिम्मत करने की। भाजपा विश्व का सबसे बड़ा राजनैतिक दल है। इसमें नेतृत्व का अभाव नहीं है। कोई एक व्यक्ति इतना बड़ी नहीं है कि वो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी से भी बढ़ा हो जाए।