डॉ. वेदप्रताप वैदिक
यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन टीकों पर से पेटेंट का बंधन उठा लेता है तो 100-200 करोड़ टीकों का इंतजाम करना कठिन नहीं है। अमेरिकी, यूरोपीय, रुसी और चीनी कंपनियां चाहें तो भारत को करोड़ों टीके कुछ ही दिनों में भिजवा सकती हैं। खुद भारतीय कंपनियां भी इस लायक हैं कि वे हमारी टीकों की जरुरत को पूरा कर सकती हैं। खुशी की बात है कि जर्मनी के अलावा लगभग सभी देश इस मामले में भारत की मदद को तैयार हैं लेकिन असली सवाल यह है कि यदि टीके मिल जाएं तो भी 140 करोड़ लोगों को वे लगेंगे कैसे? अभी तो हाल यह है कि विदेशों से आ रहे हजारों आॅक्सीजन-यंत्र और लाखों इंजेक्शन मरीजों तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। वे या तो हवाई अड्डों पर पड़े हुए हैं या नेताओं के घरों में ढेर हो रहे हैं या कालाबाजारियों की जेब गर्म कर रहे हैं। हमारी सरकारें बगलें झांक रही हैं। कुछ नेता लोग मन की बातें मलोर रहे हैं, उनके विरोधी मुंह की बातें फेंट रहे हैं और काम की बात कोई नहीं कर रहा है। देश की राजनीतिक पार्टियों के लगभग 15 करोड़ सदस्य, अपने-अपने घरों में बैठकर मक्ख्यिां मार रहे हैं। हमारे देश में डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या लगभग 60 लाख है और फौजियों की संख्या 20 लाख है। यदि इन सबको टीका-अभियान में जुटा दिया जाए तो अगले 50-60 दिन में ही हर भारतीय को टीका लग सकता है लेकिन अफसोस है कि हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और समाजसेवी संगठन भी घरों में दुबके बैठे हुए हैं। उनके कुछ स्थानीय और छुटपुट उत्साही कार्यकर्ता जन-सेवा की पहल जरुर कर रहे हैं लेकिन इंसानियत, राष्ट्रवाद और देशभक्ति का नारा लगाने वाले इन संगठनों को लकवा क्यों मार गया है ? वे राष्ट्रीय पैमाने पर सक्रिय क्यों नहीं हो रहे हैं? यदि वे ज्यादा कुछ न कर सकते हों और उनके नेता डर के मारे घर में ही दुबके रहना चाहते हों तो कम से कम वे इतना तो करें कि अपने अनुयायियों से कहें कि वे कालाबाजारियों को पकड़ें, उनका मुंह काला करें और उन्हें बाजारों में घुमाएं। अदालतें और सरकारें उनके खिलाफ कोई सख्त कदम उठाने लायक नहीं हैं लेकिन जनता को सीधी कार्रवाई करने से कौन रोक सकता है? कुछ राज्यों ने टीकाकरण मुफ्त कर दिया है और कुछ ने गरीबी-रेखा के नीचे वालों के पूरे इलाज का भी इंतजाम कर दिया है। हरियाणा की सरकार ने घरों में एकांतवास कर रहे मरीजों को 5 हजार रु. की चिकित्सा-थैली (कोरोना किट) भी भेंट करने की घोषणा की है। आश्चर्य तो इस बात का है कि हमारे नेता लोग, जो चुनावों में लगातार भाषण झाड़ते थकते नहीं हैं, वे जनता को कोरोना से सावधान रहने के लिए प्रेरित क्यों नहीं कर रहे हैं?