चर्चा-ए-आमस्लाइडर
संसद के अगले सत्र में कांग्रेसी घोड़े दौड़ेंगे या नाचेंगे !

- थरूर-खुर्शीद के स्वर बदल सकते हैं अगले सत्र में
- जातीय जनगणना हवा में उड़ा सकती है आपरेशन सिंदूर को!
- जुलाई के संसद सत्र से पहले बदल जाएंगे राजनीतिक समीकरण
कमल सेखरी
आपरेशन सिंदूर को लेकर पाकिस्तान के साथ जो भी चार दिन का छद्म युद्ध चला उसकी वास्तविकता को बताने के लिए और पाकिस्तान में पोषित किए जा रहे आतंकवादियों और पाक सेना द्वारा उन्हें दिये जा रहे प्रशिक्षण की विस्तृत जानकारी देने के लिए भारत सरकार ने जो सात प्रतिनिधिमंडल अलग-अलग पार्टियों के सांसदों को मिलाकर अलग-अलग देशों में भेजे उनमें से कुछ लौट आए हैं और कुछ अगले एक दो दिन में वापस लौट आएंगे। कुल मिलाकर 59 प्रतिनिधि भेजे गए जिनमें 51 सांसद थे और 8 अधिकारी शामिल थे। इन प्रतिनिधिमंडलों में कांग्रेस के भी आधा दर्जन से अधिक सांसदों को अलग-अलग दलों में शामिल करके भेजा गया। अब जब ये सभी प्रतिनिधिमंडल लौट आएंगे तो इनकी एक सामूहिक बैठक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दस जून को होगी। अब ये सभी सांसद प्रधानमंत्री से क्या बोलते हैं और विपक्षी दलों के सांसद इस विषय पर होने वाली बहस में संसद के दोनों भवनों में क्या बोलते हैं यह अधिक महत्व को विषय होगा। क्योंकि कांग्रेस एक तरफ लगभग हर रोज ही पुरजोरता से ये मांग उठा रही है कि आपरेशन सिंदूर के दौरान हम जो कुछ भी विदेशों में जाकर वहां विदेशियों को बता रहे हैं वो वास्तविकता हम अपने देश के नागरिकों को खुलकर क्यों नहीं बताते, उनसे क्यों छुपाना चाहते हैं। जो बातें जगजाहिर हो गई वो घर जाहिर ना हो यह कहां का इंसाफ है। कांग्रेस को एक तरफ यह डर भी है कि उसके दल से जो विभिन्न घोड़े चुनकर अलग-अलग प्रतिनिधिमंडलों में शामिल करके विदेशों में भेजे गए हैं वो वापस आकर संसद में अपने मुंह खोलकर क्या बोलते हैं। क्योंकि कांग्रेस को अभी से इस बात का संदेह है कि शशि थरूर और सलमान खुर्शीद जो विदेश जाने से पहले थोड़े से परिवर्तित नजर आ रहे थे वो वापस लौटकर पूरी तरह से बदले हुए नजर आ सकते हैं। बकौल राहुल गांधी वो कांग्रेस के उन घोड़ों में भी शामिल हो सकते हैं जो बारात में नाचने वाले घोड़े हैं, अब वो दौड़ में दौड़ने वाले घोड़े नहीं रह गए हैं, अगर ऐसा होता है विदेश से लौटने वाले कांग्रेस के इन प्रतिनिधियों में से अगर कुछ के स्वर बदलकर कांग्रेस से अलग हटकर भाजपा के स्वरों में मिल जाते हैं तो मानों कि ये घोड़े बदलकर नाचने वाले घोड़े बन चुके हैं। अब इन घोड़ों का बदलना पीठ थपथपाने की वजह से हुआ या फिर ईडी, सीबीआई व इनकम टैक्स का चाबुक दिखाकर बदला गया है। भाजपा के संसदीय मंत्री किरण रिजिजू ने बीते दिन अपने एक बयान में कह दिया है कि जुलाई के दूसरे सप्ताह में ही संसद के सत्र बुलाए जाएंगे और उनमें आपरेशन सिंदूर को लेकर विपक्षी दल जो कुछ भी पूछना चाहे , खुलकर पूछ सकते हैं यानि दोनों संसदों के नियमित सत्र अब 40 दिन बाद ही बुलाए जाएंगे। इसलिए जो कहना सुनना है उन्हीें सत्रों में कहा सुना जाएगा। जब तक इस मुददे को लेकर जो भी बयानबाजी होने के अवसर बन सकते थे वो भाजपा ने बड़ी चतुराई से कल जातीय जनगणना की छतरी खोलकर उसके नीचे ढक दिये हैं। अब विपक्षी नेता या तो आपरेशन सिंदूृर पर बातें कर लें या फिर जातीय जनगणना पर बयानबाजी करें। इन दो अलग-अलग घोड़ों की पीठ पर एक साथ चढ़कर सवारी करना संभव नहीं है। फिलहाल तो लग रहा है कि आपरेशन सिंदूर तो हवा में उड़ गया। अब आने वाले महिना-डेढ़ महीना में देश में जो भी विपक्षी दल गला फाड़कर चिल्लाते नजर आएंगे वो जातीय जनगणना का मुद्दा ही होगा। अब 40 दिन संसद सत्र बुलाने के बाकी हैं और उसमें बड़ी बहस जातीय जनगणना की नजर आएगी और सत्र की समाप्ति होते ही कुछ ही दिनों में बिहार के चुनावों की अधिसूचना जारी हो जाएगी। इसलिए ऐसी परिस्थितियों में भाजपा की राजनीतिक चतुराई को शत-शत प्रणााम।