चर्चा-ए-आमलेटेस्टस्लाइडर

सदन में मीडिया के प्रवेश पर रोक क्यों?

कमल सेखरी
देश की जनता से हम क्या छुपाना चाहते हैं। हम ऐसा क्या कर रहे हैं जिसके सार्वजनिक होने से हम डरते हैं। देश की संसद के दोनों सदनों में मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। केन्द्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ बीते दिन देश के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने प्रेस क्लब आॅफ इंडिया की इमारत से बाहर निकलकर राजधानी की सड़कों पर प्रदर्शन किया। सैकड़ों की संख्या में सड़क पर निकले इन मीडियाकर्मियों का आरोप था कि केन्द्र सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी है। इन मीडियाकर्मियों को दोनों सदनों के मध्य कक्ष में जाकर कवरेज करने की अनुमति केन्द्रीय सूचना मंत्रालय ने खुद दे रखी थी। प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों की इस भीड़ में शत-प्रतिशत वही मीडियाकर्मी अपना आक्रोश प्रकट करते नजर आ रहे थे जिनके पास दोनों सदनों की कवरेज करने की अनुमति प्राप्त थी। इनमें से कई वरिष्ठ मीडियाकर्मी तो ऐसे थे जो पिछले तीन या चार दशक से लोकसभा और राज्यसभा के सेंट्रल हॉल में बैठकर सदन की कार्यवाहियों की कवरेज करने का काम अभी तक नियमित रूप से कर रहे थे। इन प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों का यह भी आरोप था कि दोनों सदनों में लगभग डेढ़ सौ मीडियाकर्मियों के बैठकर कवरेज करने का प्रावधान है लेकिन अब अंदर प्रवेश करने की अनुमति मुट्ठीभर चुनिंदा मीडियाकर्मियों को ही दी गई है। प्रदर्शनकारी मीडियाकर्मियों का यह आरोप भी था कि अब दोनों सदनों की कवरेज करने की इजाजत केवल उन मीडिया हाउस के पत्रकारों को ही दी जा रही है जो सरकार के लाड़ले हैं और जो संकल्पित भाव से एकतरफा सरकार के पक्ष की बातें ही जनता के सामने रखते हैं।
आज देश के आम नागरिक के बीच ऐसे संकल्पित मीडियाकर्मियों को या तो गोदी मीडिया के नाम से पुकारा जाता है या फिर उन्हें सूरजमुखी की संज्ञा दी जाती है। बरहाल स्थिति जो भी हो यह विषय तो गंभीर सोच का है ही कि अगर हम देश में लोकतंत्र के जीवित होने का दावा पुरजोरता से करते हैं तो फिर अपने फैसलों और अन्य योजनाओं के बारे में जनता को खुलकर बताने में गुरेज क्यों रखते हैं। लोकसभा और या राज्यसभा दोनों ही सदनों में हमारे जनप्रतिनिधि जो भी प्रस्ताव रखते हैं और उन्हें पारित कराकर कोई नया नियम या कानून बनाते हैं तो उसे जनता की जानकारी में लाने में हमें परेशानी ही क्या है? इन दोनों सदनों में हम गुपचुप तरीके से खामोशी के साथ ऐसा तो कुछ कर नहीं रहे जो जनहित का ना हो और जिसे सार्वजनिक कर पाने की हम हिम्मत न जुटा पाते हों। अगर हमारे सारे फैसले जनहित के ही हैं और नियमानुसार बिना स्वार्थ के लिए जा रहे हैं तो हमें उन्हें सार्वजनिक करना ही चाहिए।
लोकसभा और राज्यसभा में मीडिया के उन कर्मियों के प्रवेश पर रोक लगाना जिन्हें तमाम खुफिया एजेंसियों की जांच के बाद कवरेज करने की अनुमति दी गई है उन्हें अंदर प्रवेश करने से रोकना निसंदेह हमारे लोकतंत्र पर कई तरह के प्रश्न उठा देता है। मीडिया देश के उन चार स्तंभों में से एक ऐसा मजबूत स्तंभ है जो जनहित में निष्पक्ष रहने के लिए बाध्य है उसके साथ हम यह कहकर मतभेद नहीं कर सकते कि मीडिया का यह वर्ग हमारा पक्षधर है और यह वर्ग पक्षधर नहीं है। मीडिया स्वतंत्र है तो देश बचा हुआ है, लोकतंत्र बचा हुआ है। मीडिया अगर अपनी निष्पक्षता खोता है और अपने निजी स्वार्थ में शासक या व्यवस्था का पक्षधर बन जाता है तो ऐसा मीडिया आवाम की नजर में कलंक का भागेदार है। हमें काजल की इस कोठरी से दूरी बनाए रखनी चाहिए।
सत्ता को अपने हर निर्णय और कार्यवाही को जनता के सामने मीडिया के सभी माध्यमों से सार्वजनिक करना ही चाहिए और मीडिया को निजी स्वार्थ का मोह त्याग जनहित में निष्पक्ष रहना ही चाहिए। संसद के दोनों सदनों में मीडियाकर्मियों के प्रवेश पर लगी रोक को तुरंत वापस लेकर सरकार को अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता का परिचय देना चाहिए।

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