कमल सेखरी
उत्तर प्रदेश के संभल में 24 नवंबर को शाही मस्जिद परिसर के अंदर और बाहर जो कुछ भी हुआ वो पूरे देश के लिए एक गहरी चिंता का विषय है। इस मामले में क्या हुआ, क्यों हुआ, किसने क्या किया और जिम्मेवार कौन है, अगर हम इन सभी बातों में ना जाकर सिर्फ यही विचार करें कि क्या ऐसा होना आज के समय में मुनासिब था और देश हित में इस तरह की घटनाओं का होना जायज है जबकि हम इस बात का दावा करते हैं कि हम विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने जा रहे हैं और आने वाले कुछ सालों में हम विकसित देशों की सूची में भी शामिल हो जाएंगे। बेहद पीड़ा पहुंचाने वाली इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की तह तक अगर हम ना भी जाएं तो भी यह सोचना तो जरूरी होगा कि आज 11 दिन बीत जाने के बाद भी वहां की स्थिति शासन-प्रशासन के नियंत्रण में पूरी तरह से क्यों नहीं आ पा रही है। संभल के प्रशासन ने सार्वजनिक रूप से यह घोषित कर रखा है कि संभल की स्थिति अभी ठीक नहीं है और ऐसे में दस दिसंबर तक किसी भी बाहरी व्यक्ति को संभल आने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। प्रशासन के इस प्रतिबंध में यह स्पष्ट नहीं है कि वहां 24 नवंबर को मरे 5 लोगों और घायल हुए दर्जनों लोगों के रिश्तेदार भी क्या उसी श्रेणी में आंके जा रहे हैं जिसके चलते यह आदेश दिए गए हैं कि संभल में किसी भी बाहरी व्यक्ति के आने की अनुमति नहीं है। अगर ऐसा है तो संभल के बाजारों का क्या हो रहा है अगर वो खुल रहे हैं तो वहां दूध, ब्रेड, सब्जियां और अन्य अनिवार्य वस्तुएं कैसे पहुंच रही हैं। जो लोग मरे हैं उनके सुपुर्द-ए-खाक और अगले दिन फातेहा पढ़े जाने की रस्म पर उनके वो नजदीकी रिश्तेदार भी संभल कैसे पहुंचे होंगे जबकि वहां बाहरी व्यक्तियों के आने पर प्रतिबंध लगा है। या फिर ऐसा सबकुछ केवल राजनीतिक नजर से किया जा रहा है ताकि विपक्षी दल के नेता संभल पहुंचकर पीड़ित परिवारों के लोगों से ना मिल पाएं। पिछले चार-पांच दिन से राजनीति का यह लुकाछिपी का खेल खेला जा रहा है, लखनऊ से आने वाले विपक्षी दलों के नेताओं को लखनऊ से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा और दिल्ली से संभल जाने वाले विपक्षी नेताओं को यूपी की सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। आज सुबह विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी और उनके साथ सांसद प्रियंका गांधी व अन्य लगभग एक दर्जन सांसदों को यूपी के गाजीपुर बॉर्डर पर ही रोक दिया गया। हालांकि वहां राहुल गांधी ने कहा कि वो अकेले ही संभल जाना चाहेंगे, उन्हें अनुमति दी जाए या फिर उन्हें यूपी की शासन की गाड़ी में बैठाकर अकेले ही संभल तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट ने सांसद श्री गांधी के ये दोनों प्रस्ताव भी ठुकरा दिये। अब विचार का विषय यह है कि अगर लखनऊ से समाजवादी पार्टी के कुछ नेता और दिल्ली से कांग्रेस के कुछ नेता संभल के पीड़ितों से मिलने वहां जाते भी हैं तो इसमें क्या ऐतराज हो सकता है जबकि दिल्ली और लखनऊ से बड़ी संख्या में मीडिया के लोग पहले से ही संभल में कई दिनों से डेरा डाले हुए हैं। ऐसे में अगर एक छोटा प्रतिनिधिमंडल बनाकर विपक्षी दल के नेता लखनऊ और दिल्ली से आकर संभल के पीड़ितों से मिलना चाहते हैं तो उन्हें क्यों रोका जा रहा है। यह तो निश्चित है कि इन नेताओं के साथ स्थानीय पुलिस और प्रशासन की पूरी टीम साथ रहेगी और दर्जनों मीडिया के कैमरे भी इन विपक्षी नेताओं के साथ साये की तरह कवरेज करते हुए चलेंगे तो ऐसे में ये विपक्षी दल के नेता ऐसा क्या कर लेंगे जिससे वहां की स्थिति जो पहले ही इतनी खराब है जो और खराब हो जाए। उन्हें कहीं भी किसी भी पीड़ित परिवार से अकेले में मिलने की अनुमति नि:संदेह नहीं दी जाएगी और ना ही वो किसी समूह विशेष को संबोधित कर भाषण दे पाएंगे। यह एक राजनीतिक तकाजा है कि जब भी कहीं किन्हीं भी लोगों पर ऐसा कुछ हो जिसे उन पर किसी पीड़ा के होने के संकेत मिलते हों तो राजनेताओं का यह राजनीतिक धर्म है कि वो उनसे जाकर मिलें और उन्हें सांत्वना दें यह कहकर कि उनकी पीड़ा में हम उनके साथ खड़े हैं। ऐसे में अगर कोई राजनेता स्थिति बिगाड़ने का प्रयास करता है तो वहां उपस्थित पुलिस-प्रशासन के अधिकारी और खुफिया विभाग के लोग उन्हें ऐसा करने से ना केवल रोक सकते हैं बल्कि उनके खिलाफ स्थिति बिगाड़ने की गंभीर धाराओं में कार्रवाई भी कर सकते हैं। इन राजनेताओं को संभल जाने से रोकने पर लोगों के मन में अनावश्यक ही एक ऐसी शंका पैदा हो सकती है कि ऐसा क्या है जिसे वहां का शासन और प्रशासन छिपाना चाहता है।
अगर उत्तर प्रदेश सरकार को विपक्षी नेताओं पर भरोसा नहीं है तो सरकार अपने मंत्रियों का एक छोटा प्रतिनिधमंडल जांच करने और लोगों से मिलने संभल भेज सकती है, इसके अलावा उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और भाजपा के कई श्रेष्ठ मुस्लिम नेताओं की रहनुमाई में प्रतिनिधिमंडल बनाकर संभल भेजा सकता है। संभल में जो भी हुआ है वो अप्रिय तो है ही लेकिन उस अप्रिय घटना में मरने वाले लोग हिन्दू-मुस्लिम ना होकर देश के नागरिक हिन्दुस्तानी ही थे, यह तो तय है।