कमल सेखरी
किले की तरह मजबूत बनाए गए नए संसद भवन जिसको लेकर अभी तक यह दावा किया जाता रहा कि यह इतना सुरक्षित है कि इसमें कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। उस संसद भवन के भीतर जहां हमारे जनप्रतिनिधि बैठकर देश के भाग्य का फैसला करते हैं उन पर कुछ युवाओं ने हमला कर दिया जिसमें एक महिला भी शामिल थी। हमने अब तक अधिकांश हमलावरों को पकड़ लिया लेकिन अभी तक यह पता नहीं लगा पाए कि हमला किया क्यों गया और हमलावरों का इतना बड़ा काम करने के पीछे उद्देश्य क्या था। हालांकि दिल्ली पुलिस ने इसे आतंकवादी गतिविधि मानते हुए मुकदमा दर्ज किया है और सत्ता दल भी इन युवाओं को प्रारंभ से अब तक तो आतंकवादियों का नाम ही देता आया है। दूसरी ओर हमलावर परिवारों के परिजनों का कहना है कि उनके बच्चे आतंकवादी नहीं हैं उन्होंने देश की कुछ परिस्थितियों के विरुद्ध अपना आक्रोश दर्ज करने के लिए इस कृत्य को अंजाम दिया है। जो युवक पुलिस ने पकड़े भी हैं उन्होंने भी मीडिया के सामने तो यही कहा है कि वो बेरोजगार हैं और परेशानियों से ग्रस्त स्थिति में उन्होंने यह अपना आक्रोश एक आंदोलन के रूप में दर्ज किया है। केन्द्र सरकार इस विषय पर अभी मौन साधे बैठी है और संसद में काफी शोर शराबा होने पर भी इस मामले में कोई बयान जारी नहीं किया है। विरोध प्रकट करने पर सरकार ने एक दर्जन से अधिक विपक्षी दलों के सांसदों को संसद की कार्यवाही से पूरे सत्र के लिए निलंबित भी कर दिया है। इस पूरे प्रकरण में जो गंभीर चिंतन का विषय है वो यह है कि सरकारी पक्ष का यह कहना माना जाए कि यह कोई आतंकवादी गतिविधि थी या हमलावरों या विपक्षी दलों का यह कहना माना जाए कि ये युवा आतंकवादी नहीं थे इन्होंने अपना आक्रोश एक आंदोलन की शक्ल में दर्ज किया है। मामला दोनों नजर से ही संजीदा है। यदि इसे आतंकवादी गतिविधि माना जाए तो हम पूरे विश्व को यह कैसे समझा पाएंगे कि आतंकवाद के प्रति दृढ़ता प्रबल है और हम मजबूती के साथ आतंकवाद का मुकाबला करने में सक्षम हैं। जैसा कि हम पूरे विश्व के सामने छाती ठोककर यह दावा करते हैं। अगर इस मामले में दूसरे पक्ष को भी नजर में रखा जाए तो यह और अधिक चिंता का विषय है कि हम अपनी लोकप्रियता का कितना भी ढोल बजा रहे हों युवा पीढ़ी में बेरोजगारी और सरकार की कथित तानाशाही को लेकर आक्रोश चरम पर पहुंच गया है। अगर ऐसा है तो इन हमलावर युवकों का यह कृत्य आतंकवाद की श्रेणी में ना गिनकर आंदोलनकारियों की श्रेणी में गिना जाएगा जैसा कि एक वक्त में कभी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ शहीद भगत सिंह ने उस समय की पार्लियामेंट में पर्चे बांटकर अपना आक्रोश आंदोलन के तौर पर व्यक्त किया था। हालांकि मौजूदा सरकार इन युवकों के इस हमले को सियासी नजर से विपक्ष का एक षडयंत्र बता रही है और यह कहते नहीं थक रही है कि इन युवा हमलावरों के तार विपक्षी दलों से जुड़े हैं। लेकिन सरकार का यह दावा उस समय खोखला साबित हो जाता है जब यह सच्चाई सामने आती है कि इन हमलावरों को संसद भवन में प्रवेश पत्र पाने की संस्तुति भाजपा के ही एक सांसद ने की थी। यह मामला सियासी नजर से जैसे भी देखा जाए लेकिन देश के चिंतनशील लोगों की नजर से यह बहुत ही संजीदा मामला है क्योंकि इसमें न तो कोई बाहरी ताकत का हाथ शामिल होने के संकेत मिले हैं और ना ही सांप्रदायिक आधार पर इस मामले को जोड़ा जा सकता है। अगर यह आंदोलन है तो मौजूदा सरकार को सोचना होगा कि चाहे वो कितने भी अपने नगाड़े बजाती रहे युवा पीढ़ी में आक्रोश पैदा होना शुरू हो गया है और उस आक्रोश के अंकुर संसद के अंदर हुई इस घटना से निकलते नजर आने लगे हैं।