मीर कासिम कौन है और कौन है जयचंद

- सीज फायर के दो दिन बाद ही बिखर गई सारी एकजुटता
- ना प्रायोजित प्रश्न होंगे ना होगा गोदी मीडिया
- विदेशी मीडिया से कैसे निपटेंगे हमारे प्रतिनिधिमंडल
कमल सेखरी
पहलगाम में हुए नरसंहार के बाद से लेकर भारतीय सेना द्वारा किये गये आपरेशन सिंदूर के बीच जो प्रारंभिक पन्द्रह से बीस दिन का समय निकला वो भारत के इतिहास में एक मिसाल बनकर अंकित हो गई। उस दरिंदगी और हैवानियत के नरसंहार के बाद पूरे भारत में एक शोक की लहर सी उठ खड़ी हुई और उसके साथ ही सारा देश यानी सभी 140 करोड़ नागरिक एक साथ एक मत और एकजुटता के साथ भारत सरकार और भारतीय सेना के साथ खड़े हो गए। सभी के मन में एक क्रोध और आक्रोष ऐसा था कि पाकिस्तान से बदला लेना है, आतंकियों को सीमा पार जाकर नेस्तानाबूद करना है और ऐसा मुंहतोड़ जवाब देना है जिससे कभी भविष्य में आतंकियों और सीमा पार उनके आकाओं की हिम्मत ही नहीं हो सके कि वो भारत के खिलाफ फिर से ऐसा षडयंत्र रच सकें। प्रारंभ में लगा कि ऐसा ही कुछ होता नजर आया और हमारी मजबूत वीर सेना ने ना केवल आतंकियों के कई अड्डे नेस्तानाबूद किए बल्कि पाकिस्तान की सेना और सियासी आकाओं को घुटनों पर बैठा दिया। फिर अचानक यकायक सीज फायर हो गया और हमारी मजबूती और बढ़त सब एक सिरे से वहीं रुक गई और हमारे अवाम की सभी ख्वाहिशें अधूरी रह गई। इस सीज फायर के बाद देश जितना एकजुट जुड़ा था उतना या उससे कहीं अधिक नीचे गिरकर सियासी नेताओं की बदौलत बिखर गया है। हमने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कई मुल्कों में सात अलग-अलग सांसदों के प्रतिनिधिमंडल भेजे लेकिन उनकी रवानगी से पहले हमारे सियासी नेताओं ने एक दूसरे के कपडेÞ फाड़ने शुरू कर दिये। देश पहले से ही दुखी था इस बात को लेकर कि हमारे जिम्मेवार सत्ता दल के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के लिए एक नहीं कई बार असंतुलित भाषा में अश्लील टिप्पणियां की जिन्हें यहां दोहराने में भी हमें कष्ट हो रहा है। अब हमारे सात प्रतिनिनिधि मंडल चले तो गए लेकिन उनमें गए विभिन्न दलों और विभिन्न मतों के सियासी नेता रवानगी से पहले मुंह से तो राम राम बोलते गए लेकिन बगल में सभी के एक दूसरे का विरोधाभास करने और एक दूसरे की बातों को काटने की छुरियां लगभग सभी की बगलों में दबी हुई हैं। हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि जो लोग भी प्रतिनिधिमंडल में भेजे गए हैं वो कितने योग्य व सक्षम हैं जो बाहर जाकर अलग-अलग देशों के मीडिया के साथ रूबरू बात करने की क्षमता और योग्यता रखते हैं। अभी तक का तो यही हिसाब रहा है कि हमारे शीर्ष नेता भी विदेशी मीडिया के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाए हैं तो ऐसे में जो लोग अब भारत की स्थिति स्पष्ट करने विदेशों में भेजे गए हैं वो वहां की मीडिया के प्रश्नों का उत्तर कैसे दे पाएंगे वहां हिन्दुस्तानी मीडिया नहीं होगा जो प्रायोजित प्रश्न पूछेगा वहां का मीडिया खाल में से बाल निकालने वाली बातें जब करेगा तब हमारे इन प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य एक दूसरे की बगले झांकने लग जाएंगे। हकीकत यह कि अगर भारत के मीडिया को भी प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता सत्ता दल से मिल जाए तो देश की सियासी शक्ल ही बदल जाएगी। ऐसे में विदेशी मीडिया जो ना तो प्रायोजित होगा, ना ही किसी की गोदी में बैठेगा, वो अगर अपने पर आ गया तो ऐसे प्रश्न भी पूछ सकता है जो पूरा परिदृश्य ही बदल दे। हमें ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारे सातों प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्य विदेशी मीडिया के प्रश्नजाल में फंसे बिना ससम्मान वापस लौट आएं। अभी तो हकीकत यह है कि हमारे सियासी नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हुए एक दूसरे को मीर कासिम और जयचंद बताकर कई तरह के गंभीर आरोप लगा रहे हैं। मीर कासिम कौन है और जयचंद कौन है यह कौन तय करेगा।