कमल सेखरी
किस-किस को कहिए, किस-किस को रोइये, आराम बड़ी चीज है मुंह ढककर सोइये। व्यवस्था मृत प्राय: हो गई है आप कितना चिल्लाते रहिए आवाज उसके कानों में पहुंचती ही नहीं है। व्यवस्था की गोद में बैठकर एक लंबे समय से दोनों हाथों से लड्डू खा रहा मीडिया भी अब कहने लगा है कि बस अब बहुत हुआ। अब राजनीतिक रैलियां रोक दी जाएं। अब वो मीडिया भी चिल्ला-चिल्लाकर यही बात कह रहा है जो अब से पहले लाड़ला बना सत्ता की गोदी में ही बैठा रहता था और जिसका नाम आम जुबान में गोदी मीडिया कहा जाने लगा था। ये मीडिया अब इसलिए भी अब बोलने लगा है क्योंकि इसे मालूम है कि आने वाले समय के इतिहास में इसे जिस तरह से अंकित किया जाएगा वो न केवल शर्मसार होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियां उसे कोसती भी रहेंगी। कोरोना महामारी की तीसरी लहर जिसे अब हम ओमिक्रान के नाम से जानते हैं इसने इतनी तेजी से अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं कि आने वाले और एक महीने बाद यह इतने निरंकुशता से फैलेगा कि हमें इसे नियंत्रित कर पाना कठिन हो जाएगा। हम इस हकीकत को मान भी रहे हैं और महसूस भी कर रहे हैं। हमारी व्यवस्था ने इस ओमिक्रान से निपटने के लिए जनसाधारण को पुरजोरता से सचेत भी करना शुरू कर दिया है। देश के लगभग सभी राज्यों में रात्री कर्फ्यू लगा दिया गया है। कई राज्यों में धारा-144 लगाकर किसी भी सार्वजनिक स्थल पर पांच से अधिक लोगों के एकत्रित होने पर रोक लगा दी गई है। देश की राजधानी दिल्ली में ओमिक्रान के अभी से दिखाई दे रहे तेज फैलाव को देखते हुए स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। मॉल्स, सिनेमा हाल पर ताले लगा दिए गए हैं। सार्वजनिक पार्कों और धार्मिक स्थलों पर जाने पर पाबंदी लगा दी गई है। मेट्रो ट्रेन में आधी क्षमता से ही यात्रा करने के आदेश दिए गए हैं। होटल-रेस्टोरेंट में भी कई तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। दिल्ली के बाजारों में आधे-आधे के आधार पर दुकानें खोलने की ही अनुमति दी है। कुल मिलाकर जनसाधारण और समस्त सार्वजनिक सेवाओं पर कहीं रोक लगी है तो कहीं पाबंदियां लगा दी गई हैं। अगर कहीं कोई रोक नहीं अब तक लगी है तो वो राजनेताओं की चुनावी रैलियों पर नहीं लग पाई है। आज भी राजनीतिक नेता चुनावी जनसभाएं करके लाखों की भीड़ जगह-जगह जुटाते दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में तो हर दिन आधा दर्जन से अधिक बड़ी जनसभाएं हो रही हैं। आज मुख्य आयोग ने प्रेस वार्ता करके आने वाले चुनावों को लेकर जो जानकारी दी है उसमें सभी जानकारियां सफल चुनाव कराने की व्यवस्था को लेकर ही दी गई हैं। चुनाव समय पर होंगे यह घोषणा भी आज की प्रेसवार्ता में चुनाव आयोग ने कर दी है। लेकिन चुनाव आयोग इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया कि वो उन चुनावी रैलियों पर रोक लगाए जिन्हें लेकर पूरे देश में आज शोर मचा हुआ है और सभी अखबार और टीवी चैनल पूरे जोर लगाकर कह रहे हैं कि चुनावी जनसभाएं रोकी जाएं। चुनाव आयोग को ओमिक्रान के वर्तमान प्रभाव में तो कोई खतरा नजर आ नहीं रहा है और वो यह माने भी बैठा है कि अगले डेढ़ दो माह तक भी ओमिक्रान ऐसी स्थिति में नहीं आएगा जो चुनाव कराने की व्यवस्था पर भारी पड़ जाए।
हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग व केन्द्र सरकार से अपील की है कि वो ओमिक्रान के दुष्प्रभाव की संभावनाओं को देखते हुए या तो चुनावों को कुछ समय के लिए टाल दे या फिर चुनावी सभाओं पर तो तुरंत रोक लगा ही दे। उच्च न्यायालय ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि राजनीतिक दल जनसभाओं में जो संदेश देना चाहते हैं वो संदेश वो लोग अखबारों के माध्यम से या टीवी चैनलों में विज्ञापन देकर भी पहुंचा सकते हैं। लेकिन चुनावी जनसभाएं करना हमारे सियासी नेताओं के लिए न केवल अनिवार्य है बल्कि उनकी मजबूरी भी है। क्योंकि जातिय मतभेद और धार्मिक उन्माद ये नेतागण सिर्फ इन रैलियों से ही बना सकते हैं वो काम अखबारों या टीवी चैनलों में संदेश देकर नहीं किया जा सकता। सियासी जनसभाओं के माध्यम से ही सांप्रदायिकता फैलाकर चुनावों में वोटों का धु्रवीकरण किया जा सकता है। अखबारों और अन्य प्रचार माध्यमों के जरिए वोटों का यह धु्रवीकरण करना संभव ही नहीं है। सांप्रदायिक सदभावना बिगाड़े बिना और मतों का धु्रवीकरण किए बिना किसी भी दल के लिए सत्ता में आने का एक यही रास्ता बचा है क्योंकि किसी के पास भी चुनाव जीतने का कोई और आधार बचा ही नहीं है। लिहाजा कोरोना हो या ओमिक्रान इससे सियासी नेताओं को क्या लेना देना। उन्हें तो सत्ता में आने का अपना मार्ग सुनिश्चित करना है जो जनसभाओं के बिना सांप्रदायिक सदभावना बिगाड़े बिना संभव ही नहीं है अत: उच्च न्यायालय कुछ भी कहता रहे देशभर का मीडिया कुछ भी बोलता रहे इन सियासी नेताओं ने करना तो वही है जो इन्हें माफिक आता है और ऐसे में चुनाव आयोग का कोई अस्तित्व ही नहीं है कि वो उन्हें ऐसे काम करने से किसी तरह भी रोक सके।