कमल सेखरी
लोकसभा चुनाव 2024 के खत्म होते ही देश ने राहत की सांस ली, ये सोचकर कि आम चुनावों के दौरान हमारे राजनेताओं ने अश्लीलता, आपसी द्वेष और राजनीति के सभी मापदंडों को दरकिनार करते हुए पूरे देश में जो माहौल अपने आचरण से पैदा किया इससे पूरे विश्व में हमारे देश की छवि तो गिरी ही साथ ही देश में अराजकता का माहौल भी बन गया। चुनाव खत्म होने के बाद समझा यही जा रहा था कि अब कुछ समय तक देश में शांति रहेगी और चुनाव के दौरान जो गंदगी राजनेताओं ने परोसी उससे भी हमें कुछ राहत जरूर मिल पाएगी। लेकिन अभी तीन महीने भी पूरे नहीं हुए कि देश फिर वहीं आकर खड़ा हो गया जहां लोकसभा के चुनाव के दौरान खड़ा दिखाई दे रहा था। संविधान बदलकर आरक्षण खत्म करने का जो दांव इंडिया गठबंधन के नेताओं ने खेला, उसका परिणाम हमें लोकसभा चुनावों के नतीजों में देखने को मिल ही गया। विपक्ष की उस राजनीतिक चतुर चाल का असर कुछ ऐसा दिखाई पड़ा कि सत्ता दल भाजपा के खाते में जो पिछड़ा और दलित मतदाता जुड़ गया था वो बिखरकर विपक्ष के पीडीए फार्मूले से प्रभावित होकर इंडिया गठबंधन की तरफ काफी हद तक झुक गया। इस वोट बैंक के खिसकने से बौखलाई भाजपा के नेताओं ने अब ऐसा आचरण अपनाना शुरू कर दिया है जो बहुत घातक है और आने वाले समय में देश को एक बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनावों के दौरान जो अस्सी हमारे और बीस तुम्हारे का नारा दिया वो एक सिरे से विफल हुआ। पीडीए फार्मूले के शोर ने कुछ ऐसा रंग दिखाया कि योगी आदित्यनाथ के अस्सी प्रतिशत में जितने भी वोटर आते थे उनमें से 85 फीसदी खिसककर विपक्षी खेमे में पहुंच गए। परिणाम स्वरूप भाजपा जो 62 सीटों पर थी वो गिरकर 34 सीटों पर आ गई। योगी जी ने अब एक नया नारा दिया है कि ‘बंटोगे तो कटोगे’, ‘एक रहोगे तो नेक रहोगे’। अब पता नहीं योगी जी किनके बंटने की बात कर रहे हैं और उन बंटने वालों में किनके कटने की बात कर रहे हैं। इस नारे का राजनीतिक गलियारों में अच्छा असर तो नहीं पड़ा है। भाजपा भले ही 50 स्पष्टीकरण देती रहे लेकिन संदेश बहुत स्पष्ट है जिसमें डराने और धमकाने की बू भी आ रही है। बंगाल में भी पिछले एक पखवाड़े से जो कुछ भी सड़कों पर अराजकता के माहौल के साथ हो रहा है वो भी अच्छे संकेत नहीं दे रहा है। हमारे राजनेता अपने निजी स्वार्थों के लिए पूरे देश में ही एक ऐसा माहौल बनाकर रखना चाहते हैं जिससे उनके दलों को तो राजनीतिक लाभ मिलता रहे भले ही देश की शांति सूली पर चढ़ा दी जाए। हमारे ये राजनेता देश को किस ओर ले जाना चाहते हैं यह आज सबसे बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। देश का हर चिंतनशील व्यक्ति राजनेताओं के इस आचरण से काफी दुखी है।