कैसी प्रगति जब हो रही सामूहिक आत्म हत्याएं

- भारत बना विश्व का चौथा आर्थिक शक्तिशाली देश
- मामूली कर्जे के चलते कारोबारी परिवार के सात लोगों ने की आत्महत्या
- बैंक आधी दरों पर नेताओं को दे रहे हैं ग्रहित संपत्तियां
खुदकुशी करने की हिम्म्मत नहीं होती सब में
चलो कुछ देर और लोगों को सताया जाये।
कमल सेखरी
देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के एक व्यवसायी ने अपने परिवार के छह सदस्यों के साथ सामूहिक आत्महत्या कर ली। यह परिवार पिछले दस साल से आर्थिक संकट से जूझ रहा था और निरंतर व्यवसायिक हानि झेल रहा था। प्रवीण मित्तल नाम के इस व्यापारी ने खाने की किसी मिठाई में जहर मिलाकर खुद तो खाया ही साथ ही अपनी पत्नी और परिवार के पांच बच्चों को भी खिला दिया। यह परिवार किसी धार्मिक आयोजन में भाग लेने हरियाणा के पंचकुला शहर गया था और वापस लौटते समय सड़क किनारे बंद गाड़ी के अंदर इन सातों की लाशें पड़ी मिलीं। उत्तराखंड पुलिस ने मामले की रिपोर्ट दर्ज कर जांच आरंभ कर दी है। अब पूरे परिवार ने एकमत हो सामूहिक आत्महत्या की घटना को अंजाम क्यों दिया यह तो जांच का विषय है लेकिन जो भी सत्य सामने आ रहा है उसके मुताबिक मित्तल परिवार बैंक सहित निजी क्षेत्र के व्यवसाइयों के भारी ऋण के नीचे दबा था और जिस कार में सवार होकर पंचकुला से लौट रहा था वो कार भी एक या दो दिन बाद बैंक अपने कर्जे की रिकवरी में वापस ले लेता। एक परिवार में सात लोगों की एकसाथ आत्महत्या में मौत होना देश की मौजूदा परिस्थितियों पर कई प्रश्न चिन्ह लगा देता है। वो भी ऐसे समय में जबकि देश का पूरा मीडिया गला फाड़ फाड़कर चिल्ला रहा हो कि भारत विश्व की चौथी आर्थिक शक्ति बन गया है और उसने जापान जैसे प्रगतिशील देश को भी पीछे छोड़ दिया है। देश की ऐसी आर्थिक परिस्थितियों के दावों के बीच एक कारोबारी परिवार के सात सदस्य एकसाथ आत्महत्या कर लें तो हमें अपने आर्थिक विकास के दावों पर कई प्रश्नचिन्ह लगाने के कारण बन ही जाते हैं। पिछले दस वर्षों में हमने नई आर्थिक नीति बनाते हुए ऋणदाताओं से रिकवरी करने के जो कठोर नियम बनाए हैं उसकी अगर बारीकी से जांच की जाए तो इस तरह हो रही आत्महत्याओं की वजह हमें आसानी से ढूंढने को मिल जाएगी। अगर कोई कारोबारी बैंक से कोई छोटा या बड़ा कर्जा उठा लेता है और उसका एक बड़ा हिस्सा चुका भी देता है तो भी कुछ ही समय में बैंक का वो ऋण वसूली रकम के बावजूद भी दिये गये मूलधन से काफी ऊपर चला जाता है, ऐसे में बैंक अपनी लेनदारी को लेकर नेशनल कारपोरेट ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में चला जाता है और यहां अदालत में ऋणदाता की किसी बात को सुना ही नहीं जाता बल्कि एकतरफा फैसला देकर तीस दिन में मामले को बैंक के पक्ष में निस्तारित कर दिया जाता है। इस निस्तारण के कोर्ट आदेश के चौबीस घंटे के अंदर ही आईआरपी नियुक्त करके उसे तीस दिन के अंदर ऋणदाता की संपत्ति अपने कब्जे में लेकर उसे नीलाम करके बैंक की देनदारी को पूरा कर दिया जाता है। एनसीएलटी से लेकर आईआरपी के संपत्ति निस्तारण के दो माह के समय के अंदर ही आईआरपी से लेकर बैंक और सियासी नेताओं या मोटी रकम देने वाले व्यवसायियों के बीच एक बड़ा खेल खेला जाता है। इसमें बैंक अपनी मूल लेनदारी से भी काफी कम रकम पर उस महंगी संपत्ति को सियासी नेताओं या फिर मोटी रकम वाले व्यवसायियों को दे देते हैं। साहिबाबाद साइट फोर में स्थित भूषण स्टील लिमिटेड कंपनी भी इसी तरह का एक उदाहरण है जो संबंधित बैंक ने सियासी नेता के असर में आकर उसके किसी परिचित व्यवसायियों को बैंक की देनदारी से भी आधी कीमत पर बेच डाला। माननीय सर्वोच्च न्यायालय में किसी ने जनहित याचिका दायर करके बैंक के इस बड़े घोटाले को चुनौती दी तो सुप्रीम कोर्ट ने इसकी खुली नीलामी के आदेश दिये तो वही संपत्ति पूर्व में बेची गई रकम से तीन गुणा अधिक राशि में बेची गई। इसी तरह अगर कोई साहस करके गाजियाबाद स्थित कई हजार एकड़ों में फैली वेव सिटी की हुई बैंक नीलामी की भी जांच करा ले तो शायद यह भारत के अब तक हुए आर्थिक घोटालों में से सबसे बड़ा आर्थिक घोटाला प्रमाणित होगा जिसमें भाजपा के शीर्ष नेताओं के नजदीकी रिश्तेदारों की भागेदारी है। गाजियाबाद में ही इस तरह की 50 से अधिक बैंक नीलामियां इसी तरह से सियासी घोटालों की शिकार हुई हैं। ऐसे में देहरादून के व्यवसायी मित्तल परिवार को अगर मात्र तीस-चालीस लाख की देनदारी पर अपने परिवार के सात लोगों को एक साथ खत्म करना पड़ जाता है तो यह गंभीर चिंता का विषय है कि एक ओर सियासी नेता अरबों-खरबों के घोटाले बैंकों के साथ मिलकर कर रहे हैं और कुछ चुनिंदा देश के व्यवसायी कई हजार करोड़ रुपया लेकर देश से फरार हो जाते हैं तो ऐसे में हमारा यह दावा कि हम बड़ी तेजी से कई बड़े देशों को पीछे छोड़ते हुए आर्थिक शक्ति बन रहे हैं वो सभी दावे मित्तल परिवार उन्हें बौना और खोखला प्रमाणित करता दिखाई दे रहा है। इस तरह से हर साल कई लाख किसान और अन्य लोग दो-दो, चार-चार लाख रुपयों के लिए आत्महत्या कर रहे हैं, यह भी एक प्रमाणित सत्य है।