विचार

यूक्रेन: भारत पहल क्यों न करे?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
यूक्रेन में चल रहे युद्ध पर भारतीय लोगों की नजरें शुरू से गड़ी रही हैं लेकिन एक भारतीय छात्र की मौत ने देश के प्रचारतंत्र को हिलाकर रख दिया है। भारत सरकार की तरह भारत की जनता भी अब तक बिल्कुल तटस्थ थी। वह रूस और यूक्रेन के इस युद्ध को एक तटस्थ दर्शक की तरह देख रही थी लेकिन कर्नाटक के छात्र नवीन की हत्या रूसी गोली से हुई है, इस खबर ने सारे देश में रोष पैदा कर दिया है। लोगों ने यूक्रेन-युद्ध को अब अपनी आखें तरेरकर देखना शुरू कर दिया है। भारत से रूस के एतिहासिक गहन संबंधों के बावजूद अब लोगों ने रूसी हमले की आलोचना शुरू कर दी है। सरकार को तो अपने राष्ट्रहितों की चिंता करनी है लेकिन आम लोग किसी भी मुद्दे पर अपना दृष्टिकोण शुद्ध नैतिक आधार पर बना सकते हैं। लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि यूक्रेन-जैसे सार्वभौम और स्वतंत्र राष्ट्र पर इस तरह का हमला करने का अधिकार रूस को किसने दिया? यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इससे भी ज्यादा, भारत के लाखों लोग इस बात से खफा हैं कि उनके हजारों नौजवान यूक्रेन के विभिन्न शहरों में अपनी जान नहीं बचा पा रहे हैं। यह तो एक छात्र को गोली लगी है तो यह खबर सार्वजनिक हो गई लेकिन जो छात्र बंकरों में छिपकर अपनी जान बचा रहे हैं, उनको पेटभर रोटी और पीने को पानी तक नसीब नहीं है, उनका क्या होगा? पता नहीं, हमारे कितने छात्र भूख से मर जाएंगे, कितने यूक्रेन की सीमा पैदल पार करते हुए कुरबान हो जाएंगे और कितने ही रूसी बमों और गोलियों के शिकार होंगे। हमारे सैकड़ों छात्रों के फोटो भी प्रसारित हुए हैं, जो यूक्रेन की भयंकर ठंड में मौत के कगार पर पहुंच रहे हैं। हमारी सरकार इन छात्रों की सुरक्षा की जी-तोड़ व्यवस्था कर रही है लेकिन यदि वह सतर्क होती तो यह पहल वह दो हफ्ते पहले ही कर डालती। मुझे खुशी है कि तीन-चार दिन पहले मैंने वायु सेना के इस्तेमाल का जो सुझाव दिया था, उस पर सरकार ने अब अमल शुरू कर दिया है। अब संयुक्तराष्ट्र महासभा और मानव अधिकार परिषद में भी वह क्या मौन धारण किए रहेगी? उसने फिलहाल, यह अच्छा किया है कि वह यूक्रेन को सीधी सहायता पहुंचा रही है जैसी कि उसने तालिबानी अफगानिस्तान को पहुंचाई थी। रूस और यूक्रेन या रूस और नाटो के बीच उसकी तटस्थता पूर्णरूपेण राष्ट्रहितसम्मत और तर्कसम्मत है लेकिन यही गुण उसे सर्वश्रेष्ठ मध्यस्थ बनने की योग्यता प्रदान करता है। वह रूस और अमेरिका, दोनों को अब भी समझा सकता है कि वे इस युद्ध को बंद करवाएं। यदि यह युद्ध लंबा खिंच गया तो रूस और यूक्रेन की बबार्दी तो हो ही जाएगी, जो बाइडन और पूतिन की प्रतिष्ठा भी पैंदे में बैठ जाएगी। यूक्रेन की जनता और उसके राष्ट्रपति झेलेंस्की अभी तक डटे हुए हैं, यह अपने आप में बड़ी बात है। भारत सरकार उनसे भी सीधे बात कर सकती है।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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