ट्रंप को अब ऊपरी अदालत का सहारा !

- चीन की नीयत में खोट, खुलकर देगा पाक का साथ
- भारत के सभी पड़ोसी मुल्क बने चीन के आर्थिक गुलाम
- चीन ने सीमाओं पर किये सैनिक तैनात
कमल सेखरी
अमेरिका की एक निचली अदालत ने विश्व के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति अपने ही देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ आदेश पारित कर दिये। यह आदेश ट्रंप द्वारा ट्रेड टेरिफ में पिछले कई दिनों से निरंतर हस्तक्षेप करने के विरुद्ध डाली गई एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद दिये। डोनाल्ड ट्रंप के वकील ने ऊपरी अदालत में इस अदालती आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका डाली जिसमें अपील की गई कि राष्ट्रपति ट्रंप से ट्रेड टेरिफ में हस्तक्षेप करने का अधिकार वापस ना लिया जाए। ऊपरी अदालत में डाले गए एक शपथ पत्र में ट्रंप के एडवोकेट ने अदालत से कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले चुनाव के दौरान अमेरिका के नागरिकों से यह वादा किया था कि वो अगर जीतकर आते हैं तो विश्व शांति के लिए भरपूर प्रयास करेंगे और दुनिया में एक शांत वातावरण बनाने की कोशिश करेंगे। इस शपथ पत्र में यह भी लिखा गया कि चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने आते ही रशिया और यूक्रेन के बीच तथा इजराइल और हमास के बीच शांति के समझौते कराने की कोशिशें की और अब भारत-पाकिस्तान युद्ध के बीच ट्रेड टेरिफ की धमकी देकर दोनों मुल्कों में सीज फायर करा दिया है। लिहाजा राष्ट्रपति ट्रंप से ट्रेड टेरिफ में हस्तक्षेप करने और उन्हें बदलने के अधिकार को वापस ना लिया जाए क्योंकि उनके पास एक यही हथियार है जिससे वो विश्व में किन्हीं दो मुल्कों के बीच होने वाली जंग को रुकावाने की ताकत रखते हैं। जहां एक ओर हम डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ एक निचली अदालत द्वारा दिये गये आदेश को लोकतंत्र का सबसे बड़ा उदाहरण मानकर चल सकते हैं। वहीं दूसरी ओर हमें यह चिंता भी सता रही है कि अगर आपरेशन सिंदूर कहीं भविष्य में सीज फायर के दायरे से बाहर निकलकर टूटता नजर आया तो वो अब भारत के लिए आगे एक बहुत बड़े खतरे की घंटी भी बन सकता है। अभी बीते कल ही रक्षा मंत्रालय की एक बैठक में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ एयर चीफ मार्शल एपी सिंह कई गिले-शिकवे कर चुके हैं, इस बात को लेकर कि वायुसेना के पास पर्याप्त संख्या में लड़ाकू विमान नहीं हैं और हम आज भी दशकों पुराने अपने मिग विमानों पर निर्भर होकर चल रहे हैं। यह बात कल एक नेशनल टीवी के ऊपर चली सेना के पूर्व अधिकारियों की बहस के दौरान सुनने को मिली। इस डिबेट में यह पहलू भी सामने आया कि हमारी राफेल विमानों की आवश्यकता कम से कम 126 विमानों की है, हमने आदेश भी इतनी ही संख्या के लिए किया है परंतु हमें अभी तक केवल 34 राफेल विमान ही प्राप्त हुए हैं बकाया 92 राफेल विमान भारत को 1934 तक प्राप्त होने की बात कही जा रही है जबकि ये राफेल विमान पांचवीं जेनरेशन के हैं। हम कई सालों से लगातार भारत में निर्मित लड़ाकू विमान तेजस की बातें कर तो रहे हैं लेकिन अभी तक उसके कुछ माडल ही हम तैयार कर पाए हैं क्योंकि बकाया ढांचे में इंजन अमेरिका से आने हैं जो अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। यह तेजस विमान भी चौथी जनरेशन का विमान माना जाता है। इसके समकक्ष चीन ने जो लड़ाकू विमान एफ 22 तैयार किए हैं उसे छठी जेनरेशन का विमान यानी सबसे अधिक आधुनिक लड़ाकू विमान माना जा रहा है। चीन बड़ी संख्या में इन विमानों को पाकिस्तान को उधार दे रहा है। हम अपनी ब्रहÞ्माशस्त्र मिसाइल के अलावा जो देश में निर्मित रक्षा उपकरणों पर निर्भर कर रहे हैं वो इतने सक्षम नहीं हैं जो विश्व के समानंतर मुकाबले में अधिक मजबूत उतर पाएं। इन परिस्थितियों में देश के हर चिंतनशील व्यक्ति को यह चिंता तो हो ही रही है कि चीन जो रवैया भारत के खिलाफ खुलकर अपना रहा है वो हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। चीन इतना तो कर ही चुका है कि वो हमारे पड़ोसी देश म्यांमार जिसकी हमने पिछले दिनों भूकंप त्रासदी में खूब मदद की उसे बहुत कम ब्याज पर ऋण देकर हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है। इसी तरह तुर्की जिसकी हमनें पिछले भूकंप में दिल खोलकर मदद की वो भी चीन और पाक की वजह से आज हमारे खिलाफ खड़ा है। नेपाल जहां हम बिना पासपोर्ट के आते जाते हैं वो भी चीन से आर्थिक मदद लेकर हमसे मुंह टेढ़ा किए बैठा है, ऐसे ही बांग्लादेश जिसे हमने आजादी की सांसे दिलाई आज पूरी तरह से हमारे खिलाफ खड़ा नजर आ रहा है, यही स्थिति श्रीलंका की भी बनी हुई है वो भी चीन से बड़ा कर्जा लेकर उसका हमजोली बन गया है। हमारा कोई एक पड़ोसी मुल्क भी आज हमारे साथ नहीं है। ये सभी चीन से कर्जा ले लेकर उसके आर्थिक गुलाम बन चुके हैं। ऐसे में हमारी नार्थ-ईस्ट सीमाओं पर चीन ने अपनी सेनाएं तैनात कर दी हैं और अगर पाकिस्तान के साथ हमारा आपरेशन सिंदूर या आतंकवाद के खिलाफ कोई युद्ध छिड़ता है तो चीन बिना कोई दूसरा विचार बनाए पाकिस्तान के साथ खड़ा होगा और अपनी सेनाएं भी नार्थ ईस्ट के साथ-साथ पाकिस्तान की सीमाओं के अंदर भी भारत के खिलाफ तैनात कर सकता है। हमें आने वाली संभावित और अपेक्षित परिस्थितियों पर अभी से गंभीरता के साथ चिंता करनी होगी।