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अमृतसर को बसाने वाले गुरु रामदास जी का आज है प्रकाश पर्व

  • देश-विदेश के फूलों से सजाया गया दरबार साहिब
  • रंग बिरंगी रोशनी से नहाए दरबार साहिब को आप देखते रह जाएंगे
  • मुंबई के सौ से अधिक कारीगर कर रहे हैं फूलों की सजावट
  • एक दो नहीं 115 किस्म के फूलों से सज रहा है दरबार साहिब
    नई दिल्ली।
    सिखों के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास जी का आज 487वां प्रकाश पर्व है। अमृतसर साहिब को बसाने वाले गुरु रामदास ही थे।
    उनके प्रकाश पर्व पर दरबार साहिब को न केवल चमचमाती रोशनी से सजाया गया है बल्कि विदेशी फूलों से करीने के साथ सजावट की गई है। बताया गया है कि 115 किस्म के फूलों को देश-विदेश से मंगाया गया है। सजावट में करीब 222 क्विंटल फूल लगे हैं। यहां देशभर से श्रद्धालु आ रहे हैं। पिछले साल कोविडकाल में भी लगभग डेढ़ लाख श्रद्धालु पहुंचे थे लेकिन इस बार सबकुछ सामान्य होने पर श्रद्धालुओं की संख्या में अत्यधिक इजाफा होने वाला है। दरबार साहिब में माथा टेकने आने वाले श्रद्धालु के आकर्षण का विशेष केन्द्र रहेगा।
    गुरु रामदास लोगों के प्रति सहिष्णुता में विश्वास रखते थे। गुरु रामदास की शिक्षा से महान सम्राट अशोक भी प्रभावित हुआ था। इनके कहने पर ही अशोक ने पंजाब प्रांत में प्रजा का एक साल का लगान माफ कर दिया था। अमृतसर के मंदिर का निर्माण कार्य इन्हीं के समय में शुरू हुआ था। गुरु रामदास ने कई कविताओं और लावन की भी रचना की। आज भी सिख धर्म की शादियों में लावन गीत शगुन के तौर पर गाए जाते हैं। इन्हें 30 रागों का ज्ञान था। इन्होंने करीब 638 भजनों की रचना की। गुरु रामदास जी के लिखे गए 31 अष्टपदी और 8 वारां को सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित किया गया। गुरु रामदास ने सिखों के पवित्र सरोवर ‘सतोषर’ का निर्माण किया।
    गुरु रामदास जी के बचपन का नाम जेठा था। इनके पिता हरिदास और माता अनूप देवी जी थी। गुरु रामदास जी का विवाह गुरु अमरदास जी की पुत्री बीबी बानो से हुआ था। जेठा जी की भक्ति भाव को देखकर गुरु अमरदास ने एक सितंबर 1574 को गुरु की उपाधि दी और उनका नाम बदलकर गुरु रामदास रखा। रामदास जी ने एक सितंबर, 1574 ई. में गुरु पद प्राप्त किया था। इस पद पर वे एक सितंबर, 1581 ई. तक बने रहे थे। उन्होंने 1577 ई. में ‘अमृत सरोवर’ नामक एक नगर की स्थापना की थी, जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
    जानकारी के अनुसार उनका प्रकाश पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता था। साहिब को सजाने के लिए थाईलैंड, इंडोनेशिया के अलावा कोलकाता, दिल्ली, पूणे और बेंगलुरु से फूल मंगाए गए। गुलदाउदी, गुलाब, मैरीगोल्ड, जरबेरा, सोन चंपा, आॅर्किड, लिलियम, कार्नेशन, टाइगर फ्लॉवर, सिंगापुरी ड्रफ्ट, स्टार फ्लॉवर, एलकोनिया, कमल गेंदा, हाइलेंडर, कमल और मोतिया के फूलों का उपयोग सजावट के लिए किया गया है। मुंबई से 100 से अधिक श्रद्धालु सिर्फ फूलों की सेवा के लिए इकबाल सिंह के निर्देशन में अमृतसर आए। आज दरबार साहिब में सुंदर जलौ सजाए जाएंगे। वहीं रात के समय विशेष कवि सम्मेलन भी होगा। शाम को दरबार साहिब में आतिशबाजी होगी। लंगर में स्वादिष्ट पकवानों के साथ मिठाइयां भी बांटी जाएंगी। शाम को दीपमाला भी होगी और पूरे दरबार साहिब में परिक्रमा में दीप जलाए जाएंगे। गुरु रामदास का जन्म 9 अक्टूबर, 1534 को चूना मंडी में हुआ था, जो अब लाहौल में है।

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