कमल सेखरी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने खिलाफ लाए गए विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को बड़ी ही चतुराई से आखिरी बॉल पर क्लीन बोल्ड कर दिया। उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव रखे जाने के कुछ ही क्षण पहले अपने एक काबिना मंत्री से रखे जा रहे अविश्वास प्रस्ताव पर विरोध जतवाया और संसदीय कार्यवाही का उस समय संचालन कर रहे उपसभापति ने आनन-फानन में अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में रखे गए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और अविश्वास प्रस्ताव आनन-फानन में खारिज कर दिया। यह समस्त कार्यवाही घड़ी देखकर पांच मिनट से भी पहले पूरी कर दी गई और सत्ता दल के विरोध में एकत्र हुए सभी विपक्षी दल जो उस समय भारी संख्या में बहुमत में थे एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए। प्रधानमंत्री इमरान खान अपने खिलाफ लाए जा रहे इस प्रस्ताव का सामना करने के लिए देश की अवाम को पहले ही यह कह चुके थे कि वो चिंता न करे मैं आखिरी गेंद तक खेलूंगा और कोई चमत्कारिक परिणाम आपके सामने आएंगे। लेकिन पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने इमरान खान की इस आखिरी गेंद पर दिखाए इस चतुराई के चमत्कार को नॉ-बॉल घोषित करते हुए उन्हें आदेश दिए कि वो फिर से मैदान में जाएं और संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करें। इमरान खान की सारी चतुराई और पूर्व निर्धारित स्क्रिप्ट पर की गई साजिश को राष्टÑपति की मुहर लगने के बाद भी वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने हवा में उड़ा दिया और इमरान खान को मात्र दो दिन का समय देते हुए आदेश दिए कि वो संसद में अपना बहुमत साबित करें। पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के इस एतिहासिक फैसले का दुनिया के वे सभी देश और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले वो सभी लोग सराहना कर रहे हैं यह कहकर कि किसी भी देश में अगर इंसाफ जिंदा है तो उसे कानून की रक्षा ऐसे ही करनी चाहिए जैसे कि पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने करके दिखाया है। हम अपने पड़ोसी मुल्क को चाहे कितने कारण गिनाते हुए अपना दुश्मन मानते रहे और उसकी आलोचना करते रहें लेकिन वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने देश के संविधान की रक्षा करते हुए जिस तरह से देश के लोकतंत्र को बचाया है वो विश्व के सामने एक मिसाल है और हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था को इससे सबक लेना चाहिए और इतनी ही हिम्मत जुटानी चाहिए कि वो जनहित में कानून की रक्षा करने और लोकतंत्र को बचाने के लिए इतनी हिम्मत जुटा पाए जैसा कि हमारे पड़ोसी देश की न्यायिक व्यवस्था ने करके दिखाया है। हमारे यहां यह सर्वविदित है कि जिला स्तर तक की न्याय व्यवस्था में व्यापकता से घर कर गया है और उच्च न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया में भी ऐसा माना जा रहा है कि अब न्याय सरल, सुगम और पूर्ण ईमानदार नहीं बचा है। सर्वोच्च न्यायालय के लिए भी लोगों का मानना है कि न्यायिक व्यवस्था शासकीय व्यवस्था के खिलाफ कोई बड़ा फैसला लेने में उतना साहस नहीं जुटा पाती जिससे उसमें निहित जनविश्चास कायम रह पाए। हम चाहे अन्य कई मामलों में अपने पड़ोसी मुल्क की कई मामलों में आलोचना करते रहें लेकिन आज इतना तो मानना होगा कि वहां संविधान और लोकतंत्र विषम परिस्थितियों में भी इतना तो जीवित है कि अवाम का विश्वास उस गुरबत में भी कायम रह पाए।