कमल सेखरी
देश की राजधानी दिल्ली में संसद भवन से मात्र एक किलोमीटर दूर जंतर-मंतर के बाहर खुलेआम एक धर्म विशेष के लोगों ने दूसरे धर्म के खिलाफ जो खुलकर नारेबाजी की और उसमें जिस तरह की उत्तेजित भाषा का इस्तेमाल किया उसे देखकर और सुनकर पूरा देश सकते में आ गया। बीते दिन देश के लगभग सभी राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर इस घटना को लेकर सुर्खियों में खबर दिखाई जाती रहीं और घटित हुई इस घटना पर लगभग सभी चैनलों ने विभिन्न वर्गों, विचारकों, राजनीतिक दलों के नेताओं और राजनीतिक विशेषज्ञों को बुला-बुलाकर पुरजोरता से बहस की। हालांकि दिल्ली पुलिस ने भाजपा के एक बड़े नेता सहित छह अन्य लोगों को गिरफ्तार किया जो इस जनसभा को आयोजित करने में शामिल थे। इस जनसभा के दौरान बड़ी संख्या में ऐसे लोग उभरकर सामने आए जिन्होंने हाथ में भारत बचाओ के बैनर पकड़ रखे थे और वे जोर जोर से चिल्लाकर आपत्तिजनक शब्दों में एक धर्म विशेष के खिलाफ नारे लगा रहे थे। प्रश्न यह पैदा होता है कि ऐसा सबकुछ तभी क्यों होता है जब देश के आम चुनाव या अन्य किसी बड़े राज्य के विधानसभा चुनाव नजदीक आते हैं। कल की इस सभा में जो माहौल उभरकर सामने आया वो देश में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के लिए काफी था। उद्देश्य भी शायद सांप्रदायिक वातावरण को प्रभावित कर आपसी सौहार्द बिगाड़कर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों का माहौल खराब करना ही था। जब सियासी दलों के पास जनहित और विकास के ऐसे मुद्दे नहीं होते जिन्हें लेकर वो आम जनता के बीच जाकर वोट मांग सकें तो सबसे सरल और प्रभावी रास्ता चुनावों को धार्मिक आधार पर मोड़कर लोगों के बीच एक ऐसा वातावरण पैदा करना रहता है जिसके आधार पर मतों का विभाजन हो और लोग उस विभाजन से प्रभावित होकर धार्मिक आधार पर मतदान करें। आज देश की आजादी के 74 साल बाद भी हम अपने चुनावी आधार सांप्रदायिक माहौल बिगाड़कर धार्मिक आधारों को ही बना रहे हैं। ऐसे वातावरण में हम राष्ट्रीय विकास और योजनाओं की बातें कैसे कर सकते हैं जब हम अपने चुनावी आधारों हिन्दू-मुस्लिम बनाकर ही मैदान में उतरते हैं। यह पीड़ाजनक दुर्भाग्य है और राष्ट्रीय सोच रखने वाले हर चिंतनशील व्यक्ति को ऐसे माहौल से परहेज रखकर इस तरह के सियासी नेताओं का बहिष्कार करना चाहिए। देश के सांप्रदायिक वातावरण को अपने सियासी स्वार्थों के लिए बार-बार बिगाड़ने वाले राजनेताओं की नजर हैं ये दो पंक्तियां:-
अपना असर दिखाएगा वो पीढ़ियों तलक।
बेचा है जो जहर मजहबी दुकानों में।।