चर्चा-ए-आमलेटेस्ट

होली के रंग और जुमे की नमाज!

The colours of Holi and Friday prayers!

कमल सेखरी
होली का दिन है अब तो गले लग जा ए दोस्त, रस्म -ए-उलफत भी है मौका भी है दस्तूर भी है। हमारी गंगा जमुनी तहजीब में ये दो पंक्तियां हर होली और हर ईद पर बोलकर आपस में गले लगा जाता था रंग लगाकर मिठाई खाई जाती थी और सेवइयां खाकर मुबारकबाद दी जाती थी। मुद्दत से चल रही इस रवायत को हिन्दू और मुस्लिम बिना किसी फिरकापरस्ती के एक आपसी सौहार्द के नियमों में बंधे एक परंपरा के रूप में निभाते चले आ रहे थे, ना मालूम इस परंपरा या चलन को किसकी नजर लगी कि पिछले कुछ वर्षों से ये रवायत ना सिर्फ टूटी बल्कि धीरे-धीरे नफरत में बदलती चली गई। उत्तर प्रदेश के संभल शहर में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने होली के इस मौके से पहले बुलाई गई एक पीस कमेटी की बैठक में कुछ असंतुलित शब्दों का इस्तेमाल करते हुए जो सरकारी संदेश लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की उस संदेश में इस्तेमाल किए गए शब्द कुछ ऐसे निकले जिसने उस क्षेत्र के पहले से बिगड़े माहौल को और अधिक बिगाड़ दिया। इस पुलिस अधिकारी के संदेश में कहे गए शब्द निसंदेह आपत्तिजनक थे और एक तरफा एक समुदाय को लेकर इंगित किए गए थे। इन शब्दों ने धीरे-धीरे राजनीतिक माहौल को गर्माया और पहले से ही मौके की ताक में बैठे राजनेताओं ने आग में घी डालकर इसमें लपटें निकालनी शुरू कर दीं। इलेक्ट्रोनिक मीडिया और गैर जिम्मेदार सोशल मीडिया ने इस आग को बड़ी तेजी से देश के दूसरे राज्यों में पहुंचाने का काम बड़ी पुरजोरता से किया। फिर क्या था नेताओं में एक ऐसी होड़ लगी कि कौन होली के दिन होने वाली जुमे की नमाज के इस मामले को और कितनी अधिक पुरजोरता से नफरत में बदलने का काम कर सकता है। उसने अपना चेहरा चमकाने के लिए इस मामले को अपने नफरती बयान से और अधिक गर्मा दिया। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में होली मनाने वालों को स्वतंत्र रूप से होली मनाने का पूरा अधिकार है और अगर उसी दिन जुमे की नमाज भी पढ़ी जानी है तो उन नमाजियों को भी नमाज अदा करने का उतना ही अधिकार है। पीस कमेटी की बैठक में यह तय किया जा सकता था कि जुमे की नमाज निर्धारित समय से और एक घंटे बाद अदा कर ली जाए ताकि होली खेलने वालों को अपना पर्व मनाने के लिए पूरा समय मिल सके। पीस कमेटी में यह बात बड़े आसानी से तय हो सकती थी क्योंकि ऐसा पहले भी कई बार हुआ है कि दोनों पक्ष ऐसी स्थिति बनने पर आपस में बैठकर तय कर लेते हैं और दोनों के त्योहार बड़ी ही सुगमता से शांतिपूर्वक ढंग से पूरे हो जाते हैं। यहां भी जुमे की नमाज का समय सहमति से एक से डेढ़ घंटा देरी से तय कर दिया गया है फिर विवाद काहे का बचा रह गया। लेकिन प्रस्ताव रखने वालों की नीयत मामले को शांतिपूर्वक ढंग से निपटाने की नहीं थी इसलिए ऐसे शब्द इस्तेमाल किए गए जो दूसरे पक्ष को भावनात्मक रूप से पीड़ा पहुंचा सकते थे। अब यह मामला कई राजनेताओं और मीडिया के माध्यम से फैलते-फैलते उत्तर प्रदेश से निकलकर बिहार व अन्य प्रदेशों में भी पहुंच गया। हमारे देश के शीर्ष नेताओं ने तनिक भी इस विषय पर सोचा नहीं कि होली का दिन देश में पहली बार माहौल का कुछ खराब भी कर सकता है। इन बड़े नेताओं ने अपनी पार्टी के उन छोटे नेताओं को जहरीले बयान देने से रोका भी नहीं जो आने वाले इस पवित्र दिन पर माहौल बिगाड़ने का काम कर सकते हैं। अब यूपी में जहां ऐसे मामलों का असर आमतौर पर अधिक रहता है वहां किन जिलों में स्थिति नाजुक दौर तक पहुंच सकती है इसका मूल्यांकन करना अभी जनहित में नहीं होगा लेकिन सरकार तो सभी की साझी होती है उसे निष्पक्षता से अपनी भूमिका निभाते हुए देश के माहौल को बिगड़ने से बचाना होगा। हम तो यही कामना करते हैं कि हमारे राजनेताओं ने मुददत से जो तस्वीर बदरंग बना दी है उस बदरंग तस्वीर में होली के दिन कोई नया रंग हम सब मिलकर भर सकें। इसी की नजर हैं ये पंक्तियां:-

वो हमसे खफा हैं, हम उनसे खफा हैं
मगर दिल मिलाने को जी चाहता है
है मुददत से बेरंग नक्श-ए-मुहब्बत
इसमें कोई रंग भरने को जी चाहता है

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