नई दिल्ली। सीएए विरोधी दंगों के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सु्रपीम कोर्ट योगी सरकार को तत्काल प्रभाव से सीएए के खिलाफ हुई हिंसा के मामले में वसूली के नोटिस लेने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में जिला प्रशासन द्वारा दिसंबर, 2019 में आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की वसूली के लिए कथित सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को जारी किए गए नोटिस पर कार्रवाई करने के लिए यूपी सरकार को फटकार लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कार्रवाई वापस लेने का आखिरी मौका देते हुए 18 फरवरी को मामले की अगली सुनवाई तय की है। कोर्ट ने कहा कि राज्य की कार्रवाई को डुंगल्लूर फिल्म सोसाइटी (2018) में और इन रि : रि: डिस्ट्रक्शन आॅफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज (2009) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन में है, जहां कानून की अनुपस्थिति में, जहां भी विरोध के कारण संपत्ति का सामूहिक विनाश होता है, वहां हर्जाने और मुआवजे का आकलन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। यूपी सरकार ने आरोपियों की संपत्तियों को जब्त करने की कार्रवाई के लिए खुद ही शिकायतकर्ता, न्यायकर्ता की तरह काम किया है।
बता दें कि 19 दिसंबर साल 2019 को सीए एनआरसी आंदोलन के दौरान लखनऊ में हिंसा हुई थी। इसमें पुलिस और मीडिया के वाहन तक फूंके गए थें। पुलिस ने इस आंदोलन में 54 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। सरकारी सम्पत्ति को जलाने वाले लोगों से एक करोड़ 64 लाख रुपए की वसूली करनी थी। इस दौरान दंगा करने के आरोप में 57 लोगों के नाम और पते उजागर किए गए थे। इसमें लखनऊ के ट्रांस गोमती के 13, हजरतगंज-24 और पुराने लखनऊ के 16 उपद्रवियों का पोस्टर लगाया गया था। इसमें 1 करोड़ 55 लाख वसूली होनी है।
19 दिसंबर को लखनऊ के परिवर्तन चौक से लेकर हुसैनाबाद इलाके में हंगामा हुआ था। इसमें उपद्रव रोकने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली भी चलाई थी। इसमें ठाकुरगंज के मोहम्मद वकील नामक शख्स की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई थी। इसके बाद दीपक कबीर, सदफ जफर ,मुस्लिम शिया धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास समेत कई लोगों का नाम सामने आया था। शहर के सभी प्रमुख चौक चौराहों पर उनके पोस्टर लगा दिए गए थे। सीएए- एनआरसी के विरोध में 100 से ज्यादा संगठन और एनजीओ लखनऊ में एकत्र हो गए थें। शहर के सभी इलाके के लोग परिवर्तन चौक पर आने लगे थे। सुबह 10 बजे से शुरू हुआ आंदोलन दोपहर एक बजे तक उग्र होने लगा था। बताया जा रहा है कि आंदोलन जब अपने चरम पर पहुंचा तो कुछ उपद्रवी लोगों ने अचानक पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। जवाब में लाठी चलाई गई, लेकिन तभी आगजनी शुरू हो गई। इस दौरान में बड़े स्तर पर मुस्लिम लड़कियों ने भी हिस्सा लिया था। भगदड़ की स्थिति में कई लोगों को गंभीर चोट भी आई थी।
19 दिसंबर से करीब 22 दिसंबर तक लखनऊ में नेट सेवा ठप कर दी गई थी। केवल ब्राडबैंड, वह भी कार्यालय में काम करने के लिए लोग इंटरनेट सेवा का इस्तेमाल कर सकते थे। उस दौरान कोई भी व्यक्ति ह्वाट्सएप और फेसबुक जैसे ऐप न चला पाए, इसके लिए यह कदम उठाया गया था। दलील थी कि सोशल मीडिया के माध्यम से लोग हंगामा कर सकते हैं। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि मार्च, 2021 में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान वसूली विधेयक, 2021 पारित किया। कानून के तहत, प्रदर्शनकारियों को सरकारी या निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने का दोषी पाया जाने पर (सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाले दावा ट्रिब्यूनल द्वारा) को एक साल की कैद या 5,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के जुमार्ने का सामना करना पड़ेगा।