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कुशल राजनेता, कूटनीतिज्ञ व शस्त्र-शास्त्र से परिपूर्ण थे श्री कृष्ण: अनिल आर्य

  • श्री कृष्ण ने जीवन पर्यन्त कोई बुरा कार्य नहीं किया: हरिओम शास्त्री
    गाजियाबाद।
    केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान योगीराज श्रीकृष्ण का 5223 वां जन्मोत्सव आॅनलाइन सोल्लास मनाया गया । यह कोरोना काल में 272 वां वेबिनार था। वैदिक विद्वान आचार्य हरिओम शास्त्री ने कहा कि आज से लगभग 5222 वर्ष पहले द्वापर युग की समाप्ति पर भारत वर्ष के मथुरा में महात्मा योगीराज श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। योगीराज श्रीकृष्ण ने वैदिक मर्यादाओं की रक्षा करने हेतु समस्त दुष्टों और अत्याचारी राजाओं का नाश किया, इस क्रम में उन्होंने अपने सगे मामा कंस का भी विनाश कर डाला। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण ने आपत्काले मयार्दा नास्ति के अपूर्व सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उन्होंने वैदिक शास्त्रों के अनुसार श्रीमद्भगवद्गीता जैसे महान आध्यात्मिक ज्ञान ग्रन्थ का उपदेश अत्यंत कठिन समय में युद्धक्षेत्र से पलायन करते हुए अर्जुन को देकर उसे धर्मयुद्ध हेतु प्रेरित किया। अपने उपदेश का महत्व बताते हुए वे कहते हैं कि सर्वोपनिषदो गाव:,दोग्धा गोपालनन्दन:।
    पार्थो वत्सो सुधीर्भोक्ता,* *दुग्धं गीतामृतं महत्।। अर्थात सारी उपनिषदें गायें हैं और उनको दुहने वाला कृष्ण है।उत्तम और तीक्ष्ण बुद्धि वाला अर्जुन उस उपदेश का पान करने वाला बछड़ा है तथा उन उपनिषदों का ज्ञान ही गीता का अमृत दूध है, इसी उपदेश के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा, परमात्मा, मुक्ति, कर्तव्य -अकर्तव्य, बन्धन, जन्म, मृत्यु, ईश्वर की शरणागति आदि का विस्तृत विवेचन किया है। वे श्री राम जी की तरह पूर्वजों के द्वारा बनाए हुए पथ पर नहीं चलते बल्कि समय और परिस्थितियों के अनुसार स्वयं पथ का निर्माण करते हैं और उस पर चलते और चलने की प्रेरणा देते हैं। इसीलिए अन्त में वे कहते हैं कि हे अर्जुन! *सर्वधर्मान् परित्यज्य ममेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षिष्यामि मा शुच:।। तुम सभी संशयों को छोड़कर मेरी बात मानो मैं तुम्हें सभी समस्याओं से छुड़ा दूंगा, तुम परेशान न हो। योगीराज श्रीकृष्ण जी के लिए देश और समाज पहले हैं व्यक्ति और सम्बन्ध बाद में हैं। आज के परिप्रेक्ष्य में भारत और भारतीयों के लिए श्री कृष्ण महाराज के उपदेश बहुत अधिक उपयोगी और लाभप्रद हैं। अत: उनका पालन करने में ही देश का कल्याण है। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि श्री कृष्ण योगी थे,साथ ही शस्त्र व शास्त्र का पूर्ण ज्ञान था । वह कूटनीतिज्ञ व कुशल राजनेता भी थे । उन्होंने अपने बुद्धि कौशल से राजनीति की नई अवधारणा लिखी । आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने श्री कृष्ण के गुणों का वर्णन किया है, वह कहते है कि श्री कृष्ण ने जीवन से मृत्यु पर्यन्त कोई बुरा कार्य नहीं किया । उन्होंने विवाह के बाद 12 वर्ष तक पत्नी रुक्मिणी के साथ ब्रह्मचर्य का पालन किया और एक संतान हुई जिसका नाम प्रद्युम्न था । उनके साथ राधा का नाम जोड़ना घोर अन्याय है । आज श्री कृष्ण जी के सच्चे स्वरूप को जन जन तक पहुचाने की आवश्यकता है । मुख्य अतिथि देवेन्द्र सचदेवा व अध्यक्ष आचार्य अभय देव शास्त्री ने कहा कि उस महान योगी जैसा इतिहास में नहीं हुआ है । राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने श्री कृष्ण जी को महान मित्र,योगी की संज्ञा दी। गायिका प्रवीन आर्या,दीप्ति सपरा, प्रवीना ठक्कर,बिंदु मदान,रेखा गौतम, वेदिका आर्या,रवीन्द्र गुप्ता, नरेन्द्र आर्य सुमन,जनक अरोड़ा, प्रतिभा कटारिया, सरदार तरनजीत सिंह भसीन,सोनल सहगल आदि ने मधुर गीत गाये। आचार्य महेन्द्र भाई, राजेश मेहंदीरत्ता, कुसुम भंड़ारी, आशा आर्या,उर्मिला आर्या,आस्थाआर्या आदि उपस्थित थे।

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