कमल सेखरी
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा महायुद्ध आज सातवें दिन में प्रवेश कर गया और बढ़ते समय के साथ-साथ इसकी तेजी, उग्रता और भीषणता भी बढ़ती जा रही है। यह दीये और तूफान में एक ऐसी लड़ाई छिड़ी है जिसमें तूफान रुकने का नाम नहीं ले रहा है और दीये को न जाने कौन सी ऐसी ताकत अभी तक रौशन किए हुए है कि वो अभी जल रहा है और कई बार तो ऐसा लगता है कि इसकी लौ और तेज हो रही है। एक बलवान और निर्बल के बीच यह लड़ाई हर रोज ही ऐसी अजीबो गरीब स्थिति में आ जाती है कि अनुमान लगाना भी कठिन हो जाता है कि यह लड़ाई कितने दिन और चलेगी आने वाले कल इसकी शक्ल क्या बनेगी और अगले ही पल ये किस अंजाम तक पहुंच जाएगी। दुनियाभर के युद्ध विशेषज्ञ अलग-अलग टीवी चैनलों पर बैठकर इस महायुद्ध का सही आकलन करने में विफल ही नजर आ रहे हैं। सभी टीवी चैनल दायं-बायं की सच्ची झूठी खबरें दिखाकर अपने दर्शकों को बांधकर रखे हुए हैं। अमेरिका जैसी ताकतवर शक्ति कभी कुछ खुलकर बोलती है और कभी दबे शब्दों से पीछे हटती नजर आती है। अमेरिका सहित यूरोप के लगभग सभी देश जिनके पास बेशुमार धन और हथियार हैं वो रह रहकर यूक्रेन को हर तरह का आर्थिक सहयोग देने की बात तो कर रहे हैं लेकिन युद्ध में कहीं भी उसके साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं। क्योंकि ये सभी देश जानते हैं कि यूक्रेन और रूस के इस युद्ध के बीच अगर कोई देश अपनी सेना के साथ भौतिक रूप से खड़ा हो गया तो यह महायुद्ध विश्व युद्ध की शक्ल ले जाएगा और उसमें दुनिया के सभी देशों को इतना अधिक नुकसान होगा जिसकी भरपाई धरती पर आने वाले कई सालों तक की जानी मुश्किल होगी लिहाजा इस महायुद्ध की मार झेल रहे यूक्रेन के साथ बकाया यूरोपीय देश मुंहजुबानी जंग दूर से ही लड़ रहे हैं और सहयोग के नाम पर मुंहजुबानी जमा खर्च कर रहे हैं। यूक्रेन के प्रति अपनी संवेदनाएं और सहयोग व्यक्त करने वाले ये सभी देश बखूबी जानते हैं कि मौजूदा परिस्थिति में यूक्रेन को ये मार अकेले ही झेलनी होगी। इन कथित सहयोगी देशों ने रूस पर कई दर्जन आर्थिक पाबंदियां लगा दी हैं और उसके साथ किसी भी तरह के व्यापारिक लेनदेन पर भी रोक लगा दी है। लेकिन रूस के राष्टÑपति पुतिन जो स्वभाव से हटी और जिददी हैं और सियासी तौर पर तानाशाह भी माने जाते हैं उन पर इन देशों की पाबंदियों व अन्य व्यापारिक लेनदेन पर लगी रोक का कोई असर होने वाला नहीं है। क्योंकि जब कभी भी किसी देश पर इस तरह की पाबंदियां लगती हैं तो वो पाबंदियां कुछ दिनों बाद ही खुद से ही खत्म होनी शुरू हो जाती हैं क्योंकि आज के समय में हर देश का दूसरे देश से आर्थिक लेनदेन कुछ ऐसे जुड़ा है जो दोनों ही पक्षों के लिए लाभकारी है और रोके जाने पर दोनों ही पक्षों को बराबर की हानी होती है। इसका जीता जागता उदाहरण भारत-चीन की सीमा पर गलवान घाटी में हुई वो बड़ी घटना है जिसमें भारत के करीब तीन दर्जन सैनिक मारे गए थे और भारत ने विरोध प्रकट करते हुए चीन पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए और उसके साथ व्यापारिक लेनदेन पर रोक भी लगाई। लेकिन कुछ ही महीनों में ये सभी प्रतिबंध और रोक दूर हो गए और आज भारत-चीन के बीच व्यापार इतना बढ़ा है जो गलवान घाटी में घटित घटना से पहले नहीं था। अफगानिस्तान में हुए तालिबानी कब्जे को लेकर भी कई देशों ने इसी तरह की पाबंदियां लगार्इं लेकिन आज वो पाबंदियां उतनी प्रभावी नहीं हैं जितनी लगाते समय थीं। बरहाल रूस और यूक्रेन के बीच जो ये युद्ध अब छिड़ा है उसका अंजाम क्या होगा और यह कब तक खत्म होगा इसका अनुमान मौजूदा सामान्य परिस्थितियों में तो लगाना कठिन है लेकिन यह तय है कि रूस के पास अपने इरादों की जिद पूरी करने की जितनी बड़ी शक्ति है उतनी ही बड़ी ताकत यूक्रेन के लोगों के पास अपने राष्टÑ के प्रति जुड़ी भावनाओं में है। यह युद्ध अगर अगले दो-तीन दिन और चल गया तो यह विकराल रूप ले सकता है और दुनिया के कई देश इसकी जद में आ सकते हैं।