राहुल के ‘नरेन्द्र-सरेंडर’ से मचा घमासान

कमल सेखरी
‘नरेन्द्र-सरेंडर’ बीते दिन लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के दिये गये इस बयान के इस छोटे से अंश ने भाजपा के नेताओं को आग बबूला कर दिया। राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने टेलीफोन पर प्रधानमंत्री को कहा कि मोदी जी ये क्या कर रहे हो, ‘नरेन्द्र-सरेंडर’ यह सुनते ही मोदी जी ने आपरेशन सिंदूर को लेकर पाकिस्तान से चल रहे छदम युद्ध को उसी समय सीज फायर करने की घोषणा कर दी, यह पहली बार नहीं है कि सीज फायर की घोषणा को लेकर कांग्रेस के नेताओं ने कोई नया बयान दिया लेकिन इस बयान में मात्र दो शब्द ‘नरेन्द्र-सरेंडर’ ने भाजपा के नेताओं में एक ऐसी खलबली सी मचा दी कि उन्होंने लगे हाथ राहुल गांधी पर हर तरह की अभद्र और अश्लील भाषा इस्तेमाल करते हुए आरोपों की झड़ी लगा दी। यह प्रतिक्रिया स्वभाविक भी थी। इसी के बीच केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के नेशनल प्रेसीडेंट जेपी नड्डा ने उसी पुरानी शैली में राहुल को देश का सबसे बड़ा गददार और देशद्रोही बताने के साथ कांग्रेस ने अपने अलग-अलग कार्यकालों में कब-कब और कहां-कहां सरेंडर किया इसका पूरा एक कैलेंडर बनाकर अपने बयानों में सार्वजनिक कर दिया। अब अगर सरेंडर शब्द को हम आत्मसमर्पण मानकर इसकी व्याख्या करें तो इसका सीधा संबंध भारतीय सेना के मान-सम्मान से जुड़ जाता है लेकिन वहीं दूसरी ओर जेपी नड्डा ने 1962 में हुए चीन के साथ युद्ध, 1965 में लाहौर और रावल पिंडी तक पहुंचकर भारतीय सैनिकों का वापस लौटना, 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने के साथ ही जो 94 हजार पाक सैनिकों को वापस लौटाया, इन सबको गिनाते हुए 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले को भी बीच में लेकर अन्य कई और जगहों को जोड़ते हुए सरेंडर का कैलेंडर जो जारी किया उसमें तो श्रंखलाबद्ध कई बार भारतीय सैनिकों के शौर्य और मान-सम्मान को निसंदेह ठेस पहुंची है अब कांग्रेस को चाहे एक बार भारतीय सेना के शौर्य को ठेस पहुंचाने का गुनाहगार ठहराया जाए तो भाजपा अध्यक्ष ने तो एक दर्जन बार सरेंडर का कैलेंडर जारी करके भारतीय सेना के शौर्य को श्रंखलाबद्ध ठेस पहुंचाई। अब भारतीय सेना के शौर्य और मान सम्मान को इन राजनीतिक दलों ने जो भी ठेस पहुंचाई उसे अगर हम सेना और देश का अपमान बताते हुए एक तरफ रख भी दें तो भी इन दिनों हर रोज दर्जन ऐसे बयान ये राजनेता अपशब्दों को इस्तेमाल करते हुए भले ही एक दूसरे पर प्रहार कर रहे हों लेकिन भारतीय सेना अपमानित हो रही है यह चिंता का विषय है। अब जो प्रतिनिधिमंडल हमारी सरकार ने अलग-अलग देशों में भेजे आपरेशन सिंदूर की असलियत बताने के लिए वो लौट तो आए हैं लेकिन असलियत जग जाहिर करके भी देश के 140 करोड़ नागरिकों को वो असलियत बताने को सरकार तैयार नहीं है। अब वो असलियत आज से 46 दिन बाद 21 जुलाई को संसद का सत्र बुलाकर हो सकता है देश के सामने रखी जाए, हो सकता है वो असलियत ना भी रखी जाए। सरकार की मर्जी है संसद का एजेंडा जैसे चाहे वैसे तय करे। एनडीए के कुछ सहयोगी दलों ने तो यह कहना शुरू कर दिया है कि जरूरी नहीं है कि इस तरह की सभी बातें जो देश की खास गोपनीय बाते हैं वो अवाम के सामने रखी जाए। बीते कल ही इंडिया एलायंस से जुड़े दल शरद पवार की पार्टी एनसीपी प्रमुख नेता सुप्रिया सुले जो विदेशी प्रतिनिधिमंडल में शामिल भी थीं उन्होंने कांग्रेस से हटकर अपना नया रास्ता अपना लिया है यह कहकर कि आपरेशन सिंदूर के बारे में देश को कुछ भी बताने के लिए संसद के विशेष सत्र बुलाए जाएं यह जरूरी नहीं है। शरद पवार की पार्टी महागठबंधन से विमुख होकर अपना अलग रास्ता ले सकती है यह संदेह हमने अपने इसी कालम में छह महीने पहले ही लिखकर स्पष्ट कर दिया था। भारत के इतिहास में 47 दिन पहले संसद के सत्र बुलाए जाने की यह अनोखी घटना आजादी के बाद से पहली बार ही अनुभव की जा रही है। अब तक यह परिपाठी रही है कि अधिकतम 21 दिन पहले घोषणा करके संसद की कार्यवाही के लिए सांसदों को सूचित किया जाता रहा है। अब जो 46 दिन शेष बचे हैं संसद के मानसून सत्र के आरंभ में तब तक विपक्षी दल और सत्ता दल के बड़बोले नेता चुप्पी साधकर तो नहीं बैठने वाले। संसद सत्र आरंभ होने से पूर्व बचे 46 दिन आपरेशन सिंदूर को लेकर लगभग हर रोज ही सड़कों पर खुला संग्राम होगा और उसमें बोले जाने वाली अभद्र और अश्लील भाषा में जो आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे वो इस संबंध में देश की बची साख को भी गहरी चोट पहुंचाएंगे। जिन मुल्कों में हम सार्थक संदेश देकर लौटे हैं उन देशों में भी उनके मीडिया के विभिन्न माध्यमों से अगले 46 दिनों में हमारी अश्लीलता का वो स्वरुप भी सब तक पहुंच जाएगा जिन्हें हम आपरेशन सिंदूर का एक अलग रूप दिखाकर आए हैं।