भूखे सो गए बच्चे गरीब विधवा के,
मां ने सुलाया यह बहकाकर,
बेटा जब तुम सो जाओगे,
फरिश्ता आएगा रोटी लेकर।।
सुबह उठकर पूछा बच्चों ने,
मां फरिश्ता आया था क्या,
भूख तो पेट मे लगी है मां,
तुने हमे नहीं जगाया था क्या।
कहां है वो फरिश्ते वाली रोटी,
दे दे, अब हम खा लेंगे,
कुछ तू खा लेना मां,
कुछ हम भूख मिटा लेंगे,
मां बोली आंखों में आंसू लाकर,
बच्चों को गोदी में बिठाकर,
काश ऐसा फरिश्ता होता,
कोई ना तब भूखा सोता,
बिन दवाई के ना कोई,
अपनों को खोता,
ना करता बेटा आत्महत्या,
ना बाप असहाय सा रोता।
मैं लाऊंगी रोटी बेटा,
मिली अगर, मजदूरी कर लूंगी,
चिल्लाऊंगी इस सत्ता से मैं,
बहरा इनको न होने दूंगी।
ऊपर वाले से भी करूंगी लड़ाई,
मंदिर में उसको भी न मुस्कराने दूंगी,
छीन कर लाऊंगी मैं अपना हक,
बेटा आज भूखा तुम्हे ना सोने दूंगी।।।।
लेखक
नरेंद्र राठी
सलाहकार – श्री हरीश रावत (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड)
सदस्य – अखिल भारतीय कांग्रेस