चर्चा-ए-आमराष्ट्रीयस्लाइडर

पापा ट्रंप तुम बीच में क्यों कूदे!

  • क्या हमने सीमा पार का आतंक जड़ से हटा दिया
  • तीसरे मुल्क की मध्यस्थता हमें स्वीकार क्यों की
  • कहां छुपे हैं पहलगाम के खूनी दरिंदे
    कमल सेखरी
    कहा जाता है कि हर पैसे वाले और बड़े आदमी को दूसरों के मामले में बेबात टांग अड़ाने की बुरी आदत पड़ जाती है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी ऐसे ही पहले रूस और यूक्रेन के झगड़े में टांग अड़ानी चाही और बाद में अपने सबसे प्रिय मित्र इजराइल और फिलिस्तीन के बीच भी समझौता कराने के लिए अपनी ही तरफ से टांग अड़ा दी। ना तो रूस-यूक्रेन ने ट्रंप की मानी और ना ही उसके प्रिय इजराइल ने उसकी बात मानकर युद्ध विराम की घोषणा की। फिर जगत पापा ट्रंप ने ऐसा क्या मंत्र पढ़ा कि पाकिस्तान तो शुक्रिया बोलता रहा और भारत ने बिना कुछ कहे चुपचाप पापा ट्रंप की बात मान ली। इतना ही नहीं पापा ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान द्वारा सीज फायर की कोई घोषणा करने से पहले अपने टिवटर हैंडल से दुनिया को बता दिया कि मैंने मध्यस्थता करके भारत-पाकिस्तान दोनों देशों के बीच युद्ध विराम करा दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने संदेश में यह भी बोला कि उन्हें दोनों देशों पर गर्व है। हालांकि हमने ट्रंप की घोषणा किए जाने के कुछ क्षण बाद ही अपनी तरफ से भी दो लाइनें बोलकर युद्ध विराम घोषित कर दिया लेकिन देश में यह मलाल रहा कि आतंकवादियों से पीड़ित भारत और आतंकियों को शरण देने वाले पाकिस्तान दोनों मुल्कों को पापा ट्रंप महान देश कैसे बोल सकते हैं। भारत की 140 करोड़ जनता को इस बात का भी मलाल रहा कि हमने किसी तीसरे मुल्क को बीच में डालकर उसके फैसले को तरजीह देते हुए युद्ध विराम कैसे घोषित कर दिया। भारत की वीर सेनाओं का जो शौर्य हमने देखा क्या उस पर लेशमात्र भी हमें कोई शक या सुबा बना। 24 प्रमाणित आतंकियों के ठिकानों में से दस को पूरी तरह नेस्तानाबूद करके क्या हमने अपने घोषित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। इस छदम युद्ध के बीच अचानक हुए शांति समझौते से क्या हमें कोई ऐसी गारंटी मिली कि ये आतंकी फिर कभी भविष्य में ऐसी कायराना हरकत नहीं करेंगे। हमने यह कहकर आपरेशन सिंदूर शुरू किया था कि हम ना केवल आतंकियों को मारेंगे बल्कि उनके आकाओं और उन्हें शरण देने वालों की भी कमर पूरी तरह से तोड़ेंगे। क्या हमारी यह घोषणा हम पूरी कर पाएंगे। हम तो अभी तक उन चार या पांच आतंकियों को भी नहीं खोज पाए जिन्होंने नरसंहार कर 26 मासूम महिलाओं का सिंदूर उजाड़ा। जहां पहलगाम में यह घटना घटित हुई वहां से भारत-पाक की कोई भी निकटतम सीमा सौ किलोमीटर दूर है। फिर वो दरिंदे आतंकी हत्याएं करने के बाद कहां विलुप्त हो गए। उस पहाड़ी जटिल जंगली रास्तों पर सौ किलोमीटर चलकर सीमा पार करना तीन-चार दिन से कम का काम नहीं है फिर वो हैवान दरिंदे कहां छुप गए,उन्हें पहाड़ियां निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह तो हमें देश को बताना ही होगा। आज उस घटना को घटित हुए तीन सप्ताह से अधिक का समय हो गया है और हम अब तक उन खूनी दरिंदों तक नहीं पहुंच पाए हैं। अगर उन्होंने सीमा पार कर ली तो कैसे की और अगर वो सीमा के अंदर ही हैं तो कहां छुपे हैं और कौन उन्हें खाना-पीना और ठंडी रातों में रहने की सुविधा दे रहा है। हम सीमा पार आतंकियों को चुन-चुनकर मारने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और जो पहलगाम नरसंहार के दरिंदे हैं उन्हें हम अभी तक अपने भीतर ही खोज भी नहीं पाए हैं। हमें देश को बताना होगा कि हमने अपनी मजबूत और वीर सेना के दर्शाए गए शौर्य से पूरे राष्टÑ में बने बुलंद हौसलों के चलते बीच में ही तीसरे पक्ष की पैरवी पर शांति समझौते जैसा बड़ा फैसला कैसे स्वीकार कर लिया, सरकार के इस बड़े फैसले से कई बड़े प्रश्न खड़े हो रहे हैं जिनके जवाब आज नहीं तो कल देने ही होंगे। लोकतंत्र में देश की जनता और विपक्ष को सरकार के इस फैसले के कारणों का जानना अनिवार्य है लिहाजा इसके लिए लोकसभा का एक विशेष सत्र बुलाया ही जाना चाहिए। यह जमूहरियत का तकाजा है। पाकिस्तान चाहे पापा ट्रंप का शुक्रिया अदा करता रहे हमें यह स्पष्ट करना जरूरी है कि हमने अमेरिकी दबाव के चलते सीज फायर का यह फैसला नहीं लिया है।

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