कमल सेखरी
मोदी सरकार ने जैसा कहा वैसा आज कर दिखाया। तीनों विवादित कृषि बिल आज लोकसभा में भारी हंगामे के बीच बिना बहस कराए ही बहूमत के आधार पर वापिस ले लिए। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल जो पिछले कई दिनों से इन विवादित तीन बिलों को लेकर लोकसभा के पहले दिन ही सरकार को घेरने की बड़ी तैयारी कर रहे थे उनकी मंशा पूरी नहीं हो पाई और वो सरकार की चतुराई के आगे बगले झांकते रहे और सरकार अपने अनुसार बिना बहस के ही तीनों कृषि बिलों को वापस कराकर ले गई। ये तीनों बिल आनन फानन में कुछ देर बाद ही राज्यसभा में पेश किए गए और वहां भी ध्वनिमत से पारित करा दिए गए। सरकार का कहना था कि सभी विपक्षी दल इन तीनों कृषि बिलों को वापिस लिए जाने के लिए एक लंबे समय से विरोध कर रहे थे और अब जब सरकार इन्हें वापिस ले चुकी है तो उस पर इस बात को लेकर चर्चा क्यों कराना चाह रहे हैं। काफी शोर मचने पर राज्यसभा के सभापति ने कांग्रेस के नेता अर्जुन खड़गे को अपनी बात कहने के लिए दो मिनट का समय दिया और उनका वो समय पूरा होने पर कृषि मंत्री के अनुरोध पर तीनों कृषि बिल वापिस ध्वनिमत से वापिस ले लिए गए।
कांग्रेस सहित लगभग सभी विरोधी दलों के नेतागण पिछले कई दिनों से इस बात की तैयारी कर रहे थे कि आज संसद के शीतकाल के सत्र आरंभ होने के पहले दिन ही वो इन कृषि बिलों और किसान आंदोलन को लेकर सरकार को घेरेंगे। विपक्षी नेताओं की मंशा थी कि वो सरकार से पूछे कि क्यों कर तो बिल लाए गए और उसकी वापसी अगर करनी ही थी तो एक साल बाद ही ऐसा क्यों किया गया। इस दौरान जो सात सौ से अधिक किसानों की मौत हुई उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। आंदोलन के दौरान मौत का शिकार हुए किसानों के परिजनों को मुआवजा कब और कितना दिया जाएगा। मारे गए किसानों की याद में किसान शहीद स्मारक कब और कहां बनाया जाएगा और इन सबसे अधिक महत्व के प्रश्न कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा गारंटी के रूप में कानून बनाकर कब दी जाएगी।
विरोधी दलों की इस तरह की सभी तैयारियां धरी की धरी रह गर्इं और सरकार ने अपनी मंशा के मुताबिक तीनों विवादित कृषि बिल एकतरफा ध्वनिमत से पारित करा लिए। अल्पमत में बैठा विरोधी पक्ष लोकसभा और राज्यसभा के दोनों सदनों में असहाय और पंगु बने नजर आए। अब इन तीनों कृषि बिलों के वापिस लिए जाने के बाद यह माना जा रहा है कि सरकार हो सकता है आंदोलनरत किसानों को दिल्ली की सभी सीमाओं से हटाने पर जोर दे और परिस्थितियां ऐसी भी बना दे कि या तो किसान खुद से वापिस घर लौट जाएं नहीं तो बल का इस्तेमाल कर उन्हें घर वापिस लौटने पर विवश भी कर दिया जाए। कृषि बिल वापिस लिए जाने की मांग से अलग हटकर किसानों की जो अन्य मांगे केन्द्र सरकार के पास निर्णय के लिए पड़ी हैं उन पर क्या फैसला होगा यह समय बताएगा लेकिन आशंकाएं कुछ ऐसी भी बनती नजर आ रही हैं कि किसानों को या तो अपना आंदोलन वापिस लेना पड़े नहीं तो जन सहानुभूति संग्रहित कर सरकार किसानों को वापिस घर लौटाने के हालात भी बना सकती है।