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एक सच यह भी: चुनावी हार के डर से लिए कृषि बिल वापस

सामंत सेखरी
देश के किसानों से माफी मांगते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज सुबह बड़े ही भारी मन से उन तीन कृषि कानूनों को वापिस लेने का ऐलान किया जिन्हें किसानों का हितकारी बताते हुए केन्द्र सरकार पिछले एक साल से भी अधिक समय से सभी विरोधों को दरकिनार करते हुए बड़ी ही दृढ़ता से अड़ी हुई थी। प्रधानमंत्री ने यह ऐलान देश को एक विशेष संबोधन करते हुए किया और कहा कि यह कानून सरकार ने किसानों के हित में बनाया था लेकिन अफसोस कि हम देश के कुछ किसानों को इसके लाभ के बारे में समझा नहीं पाए। प्रधानमंत्री ने इसे सिक्ख पंत के गुरु नानकदेव जी के प्रकाश पर्व पर देश के नाम एक तोहफा कहकर संबोधित किया जबकि प्रधानमंत्री की इस घोषणा को सभी विपक्षी नेता भाजपा की राजनीतिक मजबूरी बता रहे हैं।
कांग्रेस की महासचिव एवं यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी ने खुले शब्दों में इसे भाजपा का नाटक बताते हुए उसकी चुनावी मजबूरी बताया और कहा कि चुनाव पास आते ही यह घोषणा की गई है जो आगामी चुनावों में अपनी संभावित हार को बचाने की नजर से की गई है। प्रियंका गांधी का कहना था कि देश के प्रधानमंत्री तब कहां थे जब दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे सात सौ किसानों ने दम तोड़ दिया था। पीएम नरेन्द्र मोदी तब कहां थे जब लखीमपुर खीरी में भाजपा कार्यकर्ताओं ने अपनी गाड़ियों के नीचे आंदोलन कर रहे निर्दोष किसानों को कुचल दिया और उनकी जान चली गई। किसानों की हत्या को प्रोत्साहित करने वाले देश के गृहराज्य मंत्री को अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया।
रालोद के महासचिव त्रिलोक त्यागी ने भी प्रधानमंत्री की इस घोषणा को उनकी राजनीतिक मजबूरी बताया है। श्री त्यागी का कहना है कि प्रधानमंत्री की इस घोषणा से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण नहीं बदल सकते क्योंकि उत्तर प्रदेश के मतदाता यह जानते हैं कि यह फैसला भाजपा ने अपनी संभावित हार के डर से ही लिया है। श्री त्यागी का कहना है कि देश के किसान केन्द्र सरकार पर तब तक भरोसा नहीं कर सकते जब तक ये तीनों काले कृषि बिल संसद से भी वापस नहीं लिए जाते। श्री त्यागी ने इस बात का समर्थन किया है कि आंदोलनरत किसानों में जिनकी जान गई है उन्हें शहीदों का दर्जा दिए जाए और उनके परिवारों की आर्थिक मदद की जाए।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा को लेकर आज समाजवादी पार्टी ने भी प्रदेश मुख्यालय लखनऊ में एक आपात बैठक बुलाई और उसके बाद मीडिया को भी संबोधित किया। सपा के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि प्रधानमंत्री के कृषि बिल वापस लिए जाने के ऐलान का कोई असर उत्तर प्रदेश के किसानों पर पड़ने वाला नहीं है। श्री चौधरी के मुताबिक प्रधानमंत्री के इस ऐलान को न तो किसान गंभीरता से ले रहे हैं और न ही उत्तर प्रदेश के आम नागरिक पर इसका कोई असर पड़ने वाला है। सपा नेता का यह भी कहना है कि उनके दल द्वारा उत्तर प्रदेश में निकाली जा रही विजय रथ यात्रा और उसे मिल रहे व्यापक जनसमर्थन के चलते भी भाजपा नेतृत्व भौखलाया हुआ है और अब मजबूरी में वो ऐलान कर रहा है जो उसे एक साल पहले ही कर देना चाहिए था।
प्रधानमंत्री के आज के इस ऐलान के बाद देश के समूचे राजनीतिक गलियारों में एक खलबली सी मची हुई है। एक तरफ जहां भाजपा इसे किसानों के लिए एक बड़ा तोहफा बताते हुए प्रधानमंत्री की एक बड़ी सौगात का नाम दे रहे हैं वहीं विपक्षी दल इसे भाजपा की मजबूरी और चुनावी नाटक बताकर इसे एक चुनावी घोषणा ही मान रहे हैं। लेकिन इस पूरे मामले में एक सच यह भी है कि भाजपा पिछले कुछ उपचुनावों व प्रदेश चुनावों में मिली शिकस्त से डरी हुई है और यह मान रही है कि अगर आने वाले अगले विधानसभा चुनावों में देश के नाराज किसानों को राजी नहीं किया गया तो इन चुनावों में उसका सूपड़ा साफ हो सकता है। यह बात भाजपा के कई बड़े नेता भी कह चुके हैं और सरकार की खुफिया एजेंसियां भी ऐसी ही रिपोर्ट केन्द्र सरकार को दे रही हैं।
कुछ भी कहो यह सच है कि भाजपा दूध से जली पड़ी है और अब फूंक-फूंककर कदम रख रही है। किसानों को दिया गया यह तोहफा भी उसकी ऐसी ही मजबूरी का एक हिस्सा है।

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