देहरादून। आज सावन महीने का पहला सोमवार है। इस पर्व पर देवभूमि में महादेव के मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है। वहीं सावन के पहले सोमवार पर गढ़ी कैंट स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर में सुबह चार बजे से भगावन शिव का रुद्राभिषेक किया गया। इसके बाद से श्रद्धालु सुबह भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर रहे हैं। इसी के साथ कोरोना संक्रमण की वजह से टपकेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की कम भीड़ देखी जा रही है, वहीं सामान्य दिनों में टपकेश्वर महादेव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलती थी। टपकेश्वर महादेव मंदिर में कोविड-19 के नियमों का पालन कराए जाने को लेकर पुलिस के जवानों को भी तैनात किया गया है। वैसे तो देश भर में भगवान शिव शंकर के कई प्रसिद्ध मंदिर हंै जिनका इतिहास रामायण, महाभारत आदि से जुड़ा होता है। ऐसा ही एक मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है। देहरादून की हसीन वादियों की गोद में विराजमान टपकेश्वर मंदिर की प्राकृतिक छटा निराली है। जहां पहाड़ी गुफा में स्थित यह स्वयंभू शिवलिंग भगवान की महिमा का आभास कराती है
यह है पौराणिक मान्यता
देहरादून से सात कि.मी. की दूरी पर टपकेश्वर मंदिर स्थित है। बाबा के इस धाम पर देशभर के कई लोग दर्शन को करने आते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार टपकेश्वर मंदिर देवताओं का निवास स्थान था। इस गुफा में सभी देवता भगवान शिवजी का ध्यान लगाया करते थे जब भगवान शिवजी की देवताओं पर कृपा हुई तो भगवान शंकर ने भूमार्ग से प्रकट होकर देवताओं को देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए।
एक और कथा के अनुसार इसी जगह को द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थली माना गया है, इसी के साथ अश्वत्थामा के माता-पिता गुरु द्रोणाचार्य व कृपि की पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। जिसके बाद ही उनके घर अश्वत्थामा का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि अश्वत्थामा ने अपनी माता कृपि से दूध पीने की इच्छा जाहिर की, जब उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी तब अश्वत्थामा ने घोर तप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने वरदान के रूप में गुफा से दुग्ध की धारा बहा दी। तब से ही यहां पर दूध की धारा गुफा से शिवलिंग पर टपकने लगी, जिसने कलियुग में जल का रूप ले लिया। इसलिए यहां भगवान भोलेनाथ को टपकेश्वर कहा जाता है। एक लोक मान्यता यह भी है कि गुरू द्रोणाचार्य को इसी स्थान पर भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। स्वयं महादेव ने आचार्य को यहां अस्त्र-शस्त्र और पूर्ण धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था। वहीं मंदिर के पास से गुजरती टोंस नदी की कलकल बहतीं धाराएं श्रद्धालुओं का मन मोह लेती हंै। बता दें मंदिर किनारे बेहती नदी में अक्सर तैरता हुआ एक नाग भक्तों को दर्शन देने पहुंचता है और यही वजह है कि श्रद्धालुओं की इस मंदिर से अलग ही अस्था जुड़ी हुई है।