ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है। हर महीने में दो एकादशियां होती हैं साल के 365 दिनों में 24 बार नियमपूर्वक एकादशी व्रत रखना होता है। हालांकि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से दो एकादशियां जुड़कर ये कुल 26 होती हैं। इस साल 2021 में यह व्रत 21 जून को सोमवार के दिन रखा जाएगा। जानते हैं निर्जला एकादशी की खास बातें।
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त :
इस बार होने वाला निर्जला एकादशी तिथि का प्रारम्भ 20 जून 2021 को शाम के 04 बजकर 21 मिनट पर पर होगा और इसका समापन 21 जून को दोपहर 01 बजकर 31 मिनट पर होगा। इसका पारण समय 22 जून को 05:23:49 से 08:11:28 तक रहेगा। वैसे किसी भी व्रत का प्रारंभ उदया तिथि यानि सूर्योदय से हीं माना जाता है। सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक व्रत रहेगा।
पद्मपुराण में निर्जला एकादशी व्रत द्वारा मनोरथ सिद्ध होने की बात कही गई है। शास्त्रों में निर्जला का अर्थ निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना है। इस दिन व्रती को अन्न तो क्या, जलग्रहण करना भी वर्जित है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के अलावा भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। भीमसेनी एकादशी और कुछ अंचलों में पांडव एकादशी पड़ा। कुछ ग्रंथों में माघ शुक्ल एकादशी व कार्तिक शुक्ल एकादशी को भी भीमसेनी एकादशी का नाम दिया गया है, परंतु ज्यादातर लोग निर्जला एकादशी को ही भीमसेनी एकादशी के रूप में स्वीकार करते हैं।
इस दिन प्रात:काल उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। पूजाघर में धूप दीप जलाएं। इसके बाद भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें और उन्हें पुष्प एवं तुलसी के पत्ते अर्पित करने के बाद व्रत का संकल्प लें। संकल्प के बाद उनकी और माता लक्ष्मी की आरती करके उन्हें भोग लगाएं। निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। निर्जला एकादशी को जल दान करना सौभाग्य की बात मानते थे। ज्येष्ठ माह वैसे भी तपता है तो भी जगह प्याऊ लगान और लोगों को पानी पिलाना पुण्य का कार्य है।
मान्यता है कि पांडव पुत्र भीम के लिए कोई भी व्रत करना कठिन था, क्योंकि उनकी उदराग्नि कुछ ज्यादा प्रज्वलित थी और भूखे रहना उनके लिए संभव न था। मन से वे भी एकादशी व्रत करना चाहते थे। इस संबंध में भीम ने वेद व्यास व भीष्म पितामह से मार्गदर्शन लिया। दोनों ने ही भीम को आश्वस्त किया कि यदि वे वर्ष में सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत ही कर लें तो उन्हें सभी चौबीस एकादशियों का फल मिलेगा। इसके पश्चात भीम ने सदैव निर्जला एकादशी का व्रत किया।
निर्जला एकादशी व्रत पौराणिक युगीन ऋषि-मुनियों द्वारा पंचतत्व के एक प्रमुख तत्व जल की महत्ता को निर्धारित करता है। पंचत्वों की साधना को योग दर्शन में गंभीरता से बताया गया है। अतः साधक जब पांचों तत्वों को अपने अनुकूल कर लेता है तो उसे न तो शारीरिक कष्ट होते हैं और न ही मानसिक पीड़ा। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिलता है।