नई दिल्ली। इस्लाम में मुहर्रम को गम का महीना माना जाता है। मुस्लिम समाज खासकर शिया समुदाय के लोग इस माह के नौवें या दसवें दिन रोजा रखते हैं। मुहर्रम में पैगम्बर हज़रत मोहम्मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की शहादत को याद करते हुए मातम मनाया जाता है। इस साल मुहर्रम 19 अगस्त को है। इस दिन ताजिया जुलूस निकाला जाता है और उनको कर्बला में दफन किया जाता है।
कर्बला की जंग बादशाह यज़ीद की सेना और हज़रत इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई थी। इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार और दोस्तों के साथ सर्वोच्च कुर्बानी दी थी। उनकी शहादत मुहर्रम के 10वें दिन हुई थी। इस दिन को आशूरा कहा जाता है। उन शहीदों की याद में हर साल ताजिए बनाए जाते हैं और जुलूस निकाले जाते हैं। ये ताजिए उन शहीदों के प्रतीक होते हैं। मातम मनाने के बाद उन ताजिए को कर्बला में दफनाया जाता है। इराक में आज भी इमाम हुसैन का मकबरा है।
मुहर्रम के दिन जब मातम मनाया जाता है तो शिया समुदाय के लोग कहते हैं कि ‘या हुसैन, हम न हुए।’ इसका एक विशेष महत्व है। मातम मनाने वाले लोग कहते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन हम बहुत दुखी हैं क्योंकि आपके साथ कर्बला की जंग में नहीं रहे। हम भी इस्लाम की रक्षा के लिए आपके साथ शहादत देते। हालांकि इस साल भी कोरोना महामारी को देखते हुए कई राज्यों में मुहर्रम पर सख्त निर्देश दिए गए हैं, ताकि भीड़भाड़ से बचा जा सके।