ममता की नई हुुंकार, नया खेला हौवे

कमल सेखरी
जिसने पहले धावा बोला वो ही बाजी मार गया। हमारे देश में यह एक नया राजनीतिक चलन पिछले कुछ सालों से सामने आ रहा है कि किसी भी चुनाव से पहले जितनी जल्दी हो सके विपक्षियों पर धावा बोल दिया जाए ताकि चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही विपक्षी नेता मनोवैज्ञानिक दबाव में आ जाएं। भाजपा इसी प्रणाली पर पिछले कई साल से लगातार काम कर रही है और यह कहकर करती है कि हम चौबीस घंटे सातों दिन चुनावी मूड में रहते हैं और हमारे नेता एक चुनाव के खत्म होते ही अगले ही दिन दूसरे किसी और चुनाव के लिए मैदान में कूद जाते हैं। ऐसा ही उन्होंने आम चुनाव के बाद हरियाणा के चुनाव में किया और यही तरीका उन्होंने महाराष्टÑ में अपनाया और दिल्ली में भी उसी तर्ज पर चलते हुए अब भाजपा की टीम बिहार पहुंच गई है और बिहार में अचानक ही चुनावी गतिविधियां तेजी पकड़ गई हैं जबकि अभी वहां चुनाव होने में नौ महीने का समय बाकी है। लेकिन पश्चिमी बंगाल में ममता दीदी ने भाजपा की ये नब्ज पकड़ते हुए पश्चिमी बंगाल में भाजपा के हमले से पहले खुद ही चुनावी हुंकार भरनी शुरू कर दी है। हालांकि बंगाल में प्रदेश के चुनाव होने में अभी एक साल का समय बाकी है लेकिन टीएमसी की मुखिया अभी से आक्रामक तेवर के साथ खेला होवे-नया खेला होवे की हुंकार भरते हुए मैदान में कूद गई हैं। उन्होंने भाजपा को नकली हिन्दू बताते हुए उन्हें भगवा कामरेड का नया नाम दे दिया है। भाजपा का कहना है कि ममता बनर्जी ऐसा कुछ बोलकर बंगाल में मुस्लिम तुष्टिकरण करने की कोशिश में अभी से जुट गई हैं। दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ममता बनर्जी को मुस्लिम तुष्टिकरण करने की आवश्यकता नहीं है। भाजपा उन्हें यह तोहफा पहले से ही अपनी तरफ से दे चुकी है। बंगाल मेें 34 साल तक मजबूती के साथ चली कम्युनिस्ट सरकार को खालिस मुस्लिम वोटों के आधार पर नहीं हटाया जा सकता था और अब भी टीएमसी को जो 46 से 48 प्रतिशत वोट पिछले चुनावों में मिली हैं उसका एक बड़ा हिस्सा हिन्दू मतदाताओं का है। बंगाल में मुस्लिम मतदाता कुल मिलाकर 28 प्रतिशत तक हैं, ऐसे में ममता बनर्जी को 48 प्रतिशत तक वोट मिलना किसी एक धर्म की तुष्टिकरण के आधार पर संभव नहीं है। इसमें दोराय नहीं कि भाजपा ने पिछले दस वर्षों में बड़ी तेजी से अपना जनविश्वास पश्चिम बंगाल में बढ़ाया है लेकिन उसे यह बढ़त केवल और केवल कांग्रेस व कम्युनिस्ट पार्टियों के निरंतर कमजोर होने की वजह से ही मिली है। अब आने वाले समय में भाजपा
कितनी और आगे जा सकती है या फिर पिछले लोकसभा चुनाव की तरह और कितना नीचे गिरकर आ सकती है, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन अभी अगले 5 वर्षों में ममता दीदी को पटखनी लगाना भाजपा के लिए बड़ी टेड़ी खीर है। बंगाल में जो विधानसभा चुनाव एक साल बाद होगा वो यह निश्चित कर देगा कि भाजपा कुछ और आगे बढ़ेगी या फिर कुछ और नीचे खिसककर गिर जाएगी।