कमल सेखरी
दीपावली हमारे देश का एक बड़ा त्योहार है। यह त्योहार आनंद, खुशी, उल्लहास और उमंग का प्रतीक है। इस दिन देश के अधिकांश परिवारों में दीप जलाकर प्रसन्नता का इजहार किया जाता है और घर की साफ-सफाई करके उसे रोशन करके इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार हो सकता है इस पर्व पर लोगों का जोश कुछ कम नजर आए। एकतरफ तो कोरोना महामारी के डर से आज भी लोग सहमे बैठे हैं और दूसरा इन दिनों देश में जो महंगाई ने अपनी सीमाएं लांघी हैं उससे भी आम आदमी परेशान है और इस महंगाई के चलते इस त्योहार को मनाने का उसका जोश पहले से काफी कम नजर आ रहा है और आम आदमी की खाली जेब त्योहार मनाने की इस खुशी पर काफी भारी पड़ती नजर आ रही है। हालांकि हमारे राजनेता न तो आम आदमी की इस परेशानी से जुड़े हैं और न ही यह ध्यान कर पा रहे हैं कि ऐसी परिस्थितियों में एक आम सामान्य गरीब परिवार दीपावली मना पाएगा तो कैसे। ऐसी परिस्थितियों में हम अपनी आस्थाएं दिखाने के लिए श्री राम की नगरी अयोध्या की सरयू नदी के तटों पर कई लाख दीपक जलाकर यह संदेश देना चाहते हैं कि भगवान श्री राम के प्रति हमारी आस्था पहले से कहीं अधिक प्रबल हुई है और यह प्रबलता धीरे-धीरे और मजबूत होती जा रही है। हम प्रदेश और देश की वास्तविक परिस्थितियां को अनदेखा कर यह जो राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं उससे प्रभु श्री राम कैसे प्रसन्न होंगे यह उन आम लोगों की सोच से परे है जो इस बार की दिवाली पर निरंतर तेजी से बढ़कर आई महंगाई से दुखी हैं और जो चाहते हुए भी खुशी और उल्लाहास के इस पावन पर्व को वैसे नहीं मना पा रहे जैसा कि वो अब से पूर्व के सालों की दिवाली पर मनाते आ रहे थे। देश के आम नागरिक की क्षमता और स्थिति कमजोर पड़ रही हो और हम राजनीतिक स्तर पर दिखावे को और मजबूती से दिखाने के प्रयास में जुटे हों तो उन गरीब परिवारों पर क्या बीत रही होगी जो चाहते हुए भी इस पर्व को अपनी इच्छा अनुसार नहीं मना पा रहे। सरसों का तेल जो मिट्टी के दीयों में डालकर जलाया जाता है वो आज दो सौ रुपए प्रतिकिलोग्राम से कम नहीं है, ऐसे में एक गरीब अपने घर में गिनती के कुछ दीये भी जलाए तो कैसे जलाए। घर को रोशन करने के लिए बल्बों की दो लड़ी भी जलाए तो कैसे जबकि बिजली प्रति यूनिट दस रुपए की दर से हो। बाजार में हल्के स्तर की मिठाई भी चार सौ रुपए किलोग्राम से कम नहीं है तो कोई गरीब परिवार ऐसे में दो टुकड़े मिठाई के खाये भी तो कैसे खा पाए। हम प्रभु राम के नाम का राजनीतिक दिखावा कर रहे हैं। सरयू नदी के तट पर हम कई लाख दीये जलाकर उसकी रोशनी से किसको आकर्षित करना चाहते हैं। प्रभु राम तो एक दीया जलाने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं तो ऐसे में हम कई लाख दीये जलाकर किसे प्रसन्न करना चाहते हैं। न तो प्रभु को इतने दीयों की आवश्यकता है और न ही वो घर इतने लाख दीये देखकर खुश हो सकता है जिसका घर रोशनी के इस पर्व पर भी अंधेरे में पड़ा हो। दिवाली के इस पावन पर्व पर हमें यह सोच मनानी होगी कि हम कुछ ऐसे दीपक जलाएं जो हमारी धरती के इन देवताओं यानी राजनेताओं के दिल और दिमाग के अंधेरे को दूर कर पाएं। प्रभु राम के नाम पर दिखावा करने वाले राजनेताओं को दिवाली का यही संदेश है, ‘देखो ओ दीवानो ये काम न करो, राम का नाम बदनाम न करो’।